गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मोबाइल कॉमर्स: एक नयी उड़ान



मोबाइल कॉमर्स की शुरुआत सन 1997 से हो गयी थी जब फ़िनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में कोको कोला ने मोबाइल मेसेज के द्वारा पेमेंट करने की सुविधा अपने स्वचालित दुकानों में कराई। इसी साल मेरिट बैंक ऑफ़ फ़िनलैंड ने भी मोबाइल बैंकिंग के शुरुआत का प्रस्ताव रखा।  


मोबाइल कॉमर्स एक अनोखी पहल 
1998 तक मोबाइल फोंस में डाउनलोड करने की काबिलियत आ गयी थी। सन 2000 तक मोबाइल कॉमर्स नए पायदान चढ़ चुका था जहाँ मोबाइल  ट्रेन टिकट से लेकर मोबाइल पार्किंग पेमेंट तक की बातें आम हो रही थीं। M-कॉमर्स पर पहला पाठ्यक्रम ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय 2003 में शुरू हो जाना एक बड़ा कदम था। इस तरह इस सदी के शुरुआत में ही दुनिया के विकसित देशों ने मोबाइल कॉमर्स एक मजबूत ज़मीन तैयार करनी शुरू कर दी थी। दीगर बात यह थी अभी भी यह समग्र विकास की संभावना से काफी दूर था।

विकासशील देश हमेशा की तरह बड़े अनमने ढंग से इस तकनीक को अपना रहे थे। आशंकाओं और अपेक्षाओं से घिरी सरकारें यह समझ नहीं पा रही थी के इसका स्वागत किया जाए या विकसित देशों की साजिश मान कर पल्ला झाड़ लिया जाए। भारत में उस समय टेलीफोन लाइन की अर्जी देने और फ़ोन का वास्तव में इस्तेमाल करने में कम से कम छः महीने लगते थे। पासपोर्ट बनवाना और फ़ोन कनेक्शन पाना संभ्रांत लोगों के चोंचले थे। हमारे गाँव में दो हज़ार की आबादी थी उस वक़्त, लोगो के पास पैसे भी थे लेकिन कुल मिलकर तीन लैंडलाइन कनेक्शन हुआ करता था। और जिसके पास फोंस थे उनके रिश्ते गाँव के सभी लोगों के साथ आश्चर्य जनक रूप से काफी अच्छे थे। या कहिये रखना पड़ता था। गाँव में एक बार भी फ़ोन इस्तेमाल करने का मौका तो नहीं मिल पाया लेकिन शौक ने घर कर लिया था।


पहली बार जब मैंने फ़ोन किया था उस समय कलकत्ता में था  समझ में नहीं आ रहा था के पप्पा से बात कैसे की जाए अपनी देसी बोली बज्जिका में बात करें या खड़ी हिंदी में। पता नहीं कोई सुन रहा हो तो क्या सोचेगा भला। एक रूपये का फ़ोन किया था और यकीन  मानिए चोगा हिलाने पे चार पांच सिक्के भरभरा के गिर पड़े थे। दोस्तों के साथ हमने वो पैसे उडाये थे। रोमांच था के कम ही नहीं होता था और कई दिन तक हम कम से कम एक बार वहां जाकर लोगो को फ़ोन पर बाते करते देख आते थे। हमारे घर लैंडलाइन फ़ोन कभी नहीं आया। मैंने मोबाइल लिया था 2004 में जब मैं स्नातकोत्तर की पढाई रबिन्द्र भारती विश्वबिद्यालय से कर रहा था। अब इसके क्या मायने थे मेरी ज़िन्दगी में इसकी चर्चा अलग से करनी होगी। 


बहरहाल, सन 1997 में ही भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की भी स्थापना हुई जिसे स्वायत्तता और सुविधा दोनों दी गयी ताकि देशहित को ध्यान में रखते हुए दूरसंचार जैसी संवदनशील 

विभाग की नीतियों को ज्यादा पारदर्शी बनाया जा सके। 


निर्वाण की ओर मोबाइल के साथ 
मार्च 2000 तक सरकार ने इस क्षेत्र को पर्याप्त प्रोत्सान देते हुए 74% तक के विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी। विदेशी निवेश के कारण प्रतिस्पर्धा बढी, कॉल दरों में कमी आनी शुरू हुई और 2001 तक भारत में तीन करोड़ से भी ज्यादा मोबाइल सेट्स की बिक्री हो चुकी थी। आज भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 80 करोड़ से ज्यादा है जो विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक है, वहीँ मोबाइल सेवाओं की दरें दुनिया में सबसे कम है।


मोबाइल एक जनमाध्यम 
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की सफलता पूरी तरह इस बात पर टिकी है के मोबाइल एवं टेबलेट की पँहुच कैसे ज्यादा से ज्यादा बढाई जा सके। इस कोशिश का सीधा असर मोबाइल कॉमर्स की लोक्रियता निर्धारित करेगा। इतने सारे सार्थक कदमो के बावजूद मोबाइल कॉमर्स की वृधि दर अपेक्षा से काफी कम रही है। बोस्टन कंसल्टिंग सरीखे बडे प्रेक्षकों का दावा है की भारत में मोबाइल कॉमर्स की प्रचुर संभावनाएं हैं और पक्के तौर पर इसके द्वारा 2015 तक 4.5 बिलियन डॉलर का कारोबार  होगा। मोबाइल उपयोगी वेबसाइट बनाने वाली अग्रणी कमर्शियल प्लेयर्स में शामिल snapdeal.com के VP-प्रोडक्ट अंकित खन्ना कहते हैं के मोबाइल साईट (msite) बनाने और उसे चलाने में उन्हें काफी परेशानियाँ आईं मसलन उपभोक्ताओं का भरोसा जीतना, क्रेडिट कार्ड की कमी, इन्टरनेट का स्लो होना इत्यादि। लेकिन ये सारी समस्याएँ मूल रूप से इ-कॉमर्स की ही है और रोचक बात यह है के इन सब नकारात्मकता के बावजूद इ-कॉमर्स का विस्तार होता ही चला जा रहा है। 


अंतरजाल 
तकनीक की अगर बात करें तो मोबाइल ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है कंप्यूटर की अपेक्षा और यह माध्यम आज जन माध्यम बन चूका है। इसमें नयी पहल की आवश्यकता है, नए विचारों की जरूरत है, नया दृष्टिकोण चाहिए होगा ताकि जहाँ भरोसे की बात आये वहां भी मोबाइल कॉमर्स खरा  उतरे। 
मोबाइल कॉमर्स: बढ़ता दायरा 
हमारी दिलचस्पी जितनी बढ़ेगी इसका उपयोग भी उतनी जल्दी परवान चढ़ेगा। समग्र विकास का सपना देश इस माध्यम के द्वारा देख सकता है। सरकारी अनुदान जैसी आवश्यक पहल में बिचौलियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। मोबाइल कॉमर्स और मोबाइल बैंकिंग के द्वारा इसपे अंकुश लगाया जा सकता है।
भविष्य की चाबी 
ब्रॉडबैंड और अंतरजाल की सुविधा अबतक देश के ज्यादातर हिस्से में नहीं पंहुच पायी है लेकिन यह समस्या मोबाइल के साथ नहीं है। 21वीं सदी में हमारा भविष्य बहुत कुछ मोबाइल और इससे जुडी तकनीकों से जुडा रहेगा।

आइये रिकैप करें मोबाइल की लोकप्रियता और उसकी पंहुच को एक इन्फोग्रफिक के जरिये। नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें: मोबाइल की लोकप्रियता 2012.
  

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

नयी व्याधि फोमो (FOMO): फियर ऑफ़ मिसिंग आउट

अरस्तु ने कहा था "मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है।" 

दो हज़ार साल से भी पहले कही गयी ये बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है। सामाजिक होना मानव जीवन के मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है जिसके आभाव में हम एक सामान्य जीवन की परिकल्पना भी नहीं कर सकते। पाषाण युग से अंतरिक्ष युग तक का लम्बा सफ़र मनुष्य इसी सामाजिक ताने-बाने को समझते-निभाते हुए करता रहा है। हर नयी खोज, चाहे वह आग हो या अंतरिक्षयान, का उपयोग उसने सामाजिक संरचना को मजबूत करने के लिए ही किया है।

ताना बाना 
हर पीढ़ी इस संरचना को अपने नजरिये से देखता है उसे अपने हिसाब से परिभाषित करता है। इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। आइये कुछ आंकड़ों पर नज़र डालें:
  • - विश्व की आधी से भी अधिक आबादी की उम्र 30 साल से कम है 
  • रेडिओ ने 5 करोड़ लोगो तक पंहुचने के लिए थे 38 साल
  • उतने ही लोगो तक टीवी 13 सालों में पंहुचा
  • अंतरजाल ने यह करतब 4 सालो मे कर दिखाया
  • एक साल से भी कम समय में फेसबुक 20 करोड़ लोगो तक पंहुचा
  • फेसबुक को अगर एक देश माना जाए तो यह चीन और भारत के बाद दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा    आबादी वाला देश होगा।
सबको पता है के फेसबुक एक सोशल  नेटवर्किंग वेबसाइट है और इसकी पूरी कार्यप्रणाली एक व्यक्ति को  दूसरे से जोड़ने पर निर्भर है। इस तरह के अनेक वेब साइट्स मानव रिश्तों को भुनाकर अपना धंधा चला रहे हैं। अगर हम यह मान बैठे की फेसबुक या ट्विटर या फिर लिंक्डइन ने सामाजिक रिश्तों का इजाद किया है या कोई चमत्कारी बदलाव किया है तो यह सर्वथा अनुचित होगा। मनुष्य हमेशा से प्रगतिवादी रहा है और हर काल खंड में उसने नया जुगाड़ लगाया है ताकि वह सामाजिक रिश्तों को और मजबूत कर सके। फेसबुक या ट्विटर या फिर लिंक्डइन इसी का विस्तृत रूप भर है।

समाज और तकनीक 
शैरी टुर्कले, जो MIT में सामाज और तकनीक के रिश्तों के बारे में पढ़ाती हैं, अपने हाल में ही प्रकाशित किताब 'अलोन टुगेदर' में यह समझाने का प्रयास करती हैं की आज की तकनीक ने सामाजिक रिश्तों को कैसे नाटकीय तौर पर प्रभावित किया है। वह कहती हैं के हम अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं के हमें इस सोशल मीडिया से चाहिए क्या? और इस उलझन में हम कैसे अपने सामाजिक ताने बाने को ही जोखिम में डालते जा  रहे हैं। हमारी अगली पीढ़ी के हाथों में होगा के वह इस व्यक्तिगत अलगाव और सामाजिक जुडाव के उलझन को कैसे परिभाषित करे। अब हमारे लिए विकल्प यह नहीं है के हम इससे जुड़ें या न जुड़ें इसका इस्तेमाल हम सार्थक रूप से कैसे करें यह यक्ष प्रश्न है और हमें इसका हल ढूंढना ही होगा।

आपने कभी सोचा है के आखिरी बार आपने बिना TV चलाये कब खाना खाया था। ऐसी क्या जल्दी है जुड़ने की के हम गाडी चलाते हुए फ़ोन का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। किसी से कोई महत्वपूर्ण बात हो रही है और हर पांच मिनट में आपकी नज़र आपके फ़ोन पे चली जाती है। 
अंतर्द्वंद 
कोई मेसेज अगर नहीं आता तो आप सोचने लग जाते हो क्यूँ नहीं आया अबतक कुछ भी। कई बार तो एक लाइन पे बात हो रही है दूसरे फ़ोन की घंटी बजती है हम पहले बन्दे को होल्ड पे रख दूसरे फ़ोन को रिसीव कर लेते हैं मज़े की बात यह है के हमें इस बात का एहसास भी नहीं है के यह स्वाभाविक नहीं है। मनुष्य ने तकनीकें बनायी है अपनी सुविधा के लिए तकनीक को सर पे बिठाना कहाँ तक उचित है। अरे! सोशल मीडिया न हुआ शेर की सवारी हो गयी। किसी ने सही फरमाया है :

"अज़ीज़ इतना ही रखो के दिल संभल जाए,
अब इस कदर भी न चाहो के दम निकल जाए!..."

तकनीक जब तंदरुस्ती पर हावी हो जाए तो बड़ा अटपटा लगता है। हैं न? हमें पता भी नहीं हैं और हम गुलाम हुए जा रहे हैं। सोशल होना अच्छा है सोशल मीडिया का अतिशय प्रयोग होना सराहनीय नहीं कहा जाएगा। इसी अति प्रयोग का नाम है FOMO, एक ऐसी अवस्था जहाँ तकनीक से जुड़ाव ही जीवन का ध्येय लगता है और इस नकली जुडाव से दूरी की बात ही पीड़ित को तनावग्रस्त कर देता है। यह मोटे तौर पे एक  मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसका उपचार दवाइयों में न होकर यह समझने में है की इस जुडाव की सीमायें क्या हैं। मान  लीजिये आप रास्ते में चलते चलते गिर पड़े, आपने तुरंत ट्वीट भी कर दिया के आप गिर चुके हैं, लोगों ने जान लिया है के आप गिर पड़े हैं। आगे क्या? पता चला जो लोग आस पास हैं जिन्हें आपने कुछ नहीं कहा उन्होंने आपकी  मदद की आपको उठाया, आपकी तबियत पूछी।  


फोमो
सिद्ध हो चुकी बात है के किसी भी समाज का सर्वांगीण विकास तब तक सम्भव नहीं है जबतक उसकी कुछ नयी करने की पहल को प्रोत्सान नहीं मिले। यही बात व्यवसाय के लिए भी सटीक बैठता है। और क्रियात्मकता का विकास, नयी पहल करने की हिम्मत हममे तभी आ पाएगी जब हम खुद से बात कर पायेंगे। विवेकानंदजी ने कहा था खुद को पहचानना ही सच्चा ज्ञान है। अतः कभी कभी अपने आप को इस निरंतर प्रवाहित तकनीक के प्रवाह से विलग होकर भी देखना चाहिए। फेसबुक ट्विटर या लिंक्डइन अपडेट के परे जो दुनिया है उसका आनंद लेना हमें फिर से सीखना होगा।     

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

मोबाइल बैटरी कैसे चले ज़्यादा...?

भई समस्याएँ न जीवन में कभी कम हुई हैं न होंगी। इनको ढूंढना नहीं पड़ता जिधर नज़र डालो मुंह बाए खड़ी रहती हैं। जीवन को सरलतम बनाने की चेष्टा मनुष्य न जाने कब से करता आ रहा है लेकिन आप बताओ हम कहाँ पंहुचे हैं अब तक।  छः महीने बीतते नहीं हैं के सारी अपडेटेड तकनीक पुरानी पड़ने लगती है।

का से कहें 
मोबाइल की तो बात ही न पूछो, रोज़ सुबह उठके अपना मोबाइल चेक करता हूँ यह कन्फर्म करने के लिए के कहीं दुनिया अपडेट तो नहीं हो गयी, मेरे मोबाइल की मासूम पर पुरातन तकनीक का कही नयी तकनीक ने गला तो नहीं घोंट दिया। नयी मोबाइल लेने की सोच रहा हूँ पर इस रोज़ की अपडेट से बड़ा सहम जाता हूँ। पता चला पैसे भी खर्च हुए और घर में लोग कहें कचरा उठा लाये "अब तो जेली बीन आ गया ये क्या आइस  क्रीम सैंडविच अब कौन खरीदता है।" कल तक तो लेकिन इसी के कसीदे पढ़े जा रहे थे।  

सुविधाएं बड़ी दीं हैं मोबाइल ने और हम इंसान शायद मर के भी इसका क़र्ज़ नहीं उतार सकेंगे। मजाल है के आप कही अकेले रहने की सोच भर लें। प्रकृति से और उससे भी महत्वपूर्ण खुद से छीन कर इसने आपको पूरी मानव जाती से जोड़ दिया है। ऐसा जुडाव सभ्यता के इतिहास में मनुष्य ने कभी महसूस नहीं किया था। जाने अनजाने मैंने इस जुडाव को रोकने का भरसक प्रयत्न किया है लेकिन फिसड्डी रहा हूँ।

अलग राह 
हुआ यूँ के पिछले मोबाइल के गुम होने के बाद जानबूझ कर लगभग तीन महीने मैंने मोबाइल नहीं खरीदा और मन बनाया के इस हठधर्मी का भी चस्का लिया जाए। वाकई बड़ी सुकून की ज़िन्दगी थी, लेकिन रोटी कमाना और सुकून के सपने देखना दो अलग अलग बातें हैं मजबूरन मुझे फिर से संसार से जुड़ जाना पडा।  

सोचिये आपने दुनिया से जुड़ने की हामी भर दी है, मोबाइल तकनीक का मज़ा मिस कॉल के अलावा भी लेना चाहते हैं, बड़ी महत्वपूर्ण गुफ्तगू परवान पे है और बैटरी ने दागा दे दिया।
उर्जा घर 
इस तरह की आकस्मिक आपदा का सामना कैसे कर पायेंगे आप। बड़ी खीज आती उस समय और लानत भेजने का मन करता है उसको जिसने मोबाइल फ़ोन का इजाद किया था। स्मार्ट फ़ोन का फीचर जितना उन्नत होगा वह उतनी बैटरी सोखेगा, बिलकुल न्यूटन के तीसरे नियम की तरह। इन रक्त पिपासु संयत्रों से कैसे काम लिया जाए कैसे इनकी बैटरी का चतुराई से इस्तेमाल किया जाए यह तोड़ जानना भी आज उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है जितना बड़े रेस्तरां में लंच करने के बाद सौंफ खाना। छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखकर आप भविष्य में ऐसी परेशानी से बच सकते हैं। कैसे? चलिए जाने!

1. मोबाइल स्विच ऑफ कर दें: 

नया साथी 
अगर आप कही ऐसी जगह पे हैं जहाँ चार्जिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो मोबाइल स्विच ऑफ कर देना उपयुक्त होगा। कई बार सोते समय भी मोबाइल का बजना खलता है ऐसे मौकों को भी आप प्लान कर सकते हैं और फ़ोन बंद कर सकते हैं, इसके दोहरे फायेदे हैं और इनका आपको अच्छी तरह पता हैं, हैं न? आजकल के उन्नत स्मार्ट फोंस आपको पॉवर सेविंग मोड की भी सुविधा देते हैं उसका उपयोग करें। एक बात पक्की है के आपके थोड़ी देर शांति से सो लेने से दुनिया में सुनामी नहीं आने वाली।

2. सिग्नल सर्चिंग से बाज आयें: 
पीड़ा 
आपको जानकार हैरानी होगी के ये मासूम दिखने वाले संयंत्र सिग्नल ढूँढने के वक़्त सबसे सक्रिय होते हैं। अच्छे रिसेप्शन की तालाश करते -करते ये बैटरी की उर्जा का सत्यानाश कर देते हैं। इसलिए धैर्य रखें जबतक सिग्नल सही नहीं है तबतक पहली टिप को पालन करें, जी हाँ! मोबाइल बंद कर दें। अब रिसेप्टर या रिसेप्शन बूस्टर भी आने शुरू हो गए हैं आप इनका इस्तेमाल रिसेप्शन स्ट्रेंथ बढाने में कर सकते हैं।

3. फुल रिचार्ज और फूल डिस्चार्ज विधि अपनाएँ:
थोडी बैटरी बाकी है और आपका मन मोबाइल को रिचार्ज करने का होता रहता है। अगर आवश्यक न हों तो ऐसा करने से बचें, इसे पूरा डिस्चार्ज होने दें फिर फुल चार्ज करें।

4. वाइब्रेशन विकल्प हमेशा न चुनें:
वाइब्रेशन मोड में आपके फ़ोन की खुराक काफी बढ़ जाती है अतः कोशिश करें के फ़ोन वन बीप मोड पे हो अथवा रिन्गेर मोड पे। रिन्गेर मोड पे आप भरसक नियंत्रण रख सकते हैं।

5. स्क्रीन ब्राईटनेस कम रखें: स्क्रीन ब्राइटनेस कम रखना सबसे चतुराई का काम है क्यूंकि आज के टच स्क्रीन रक्त पिपासु स्मार्ट फ़ोन स्क्रीन को चलाने में अपनी अधिकतर ऊर्जा नष्ट करते हैं। इस समस्या का पक्के तौर पे कोई समाधान नहीं है लेकिन कंट्रोल करना बिलकुल सम्भव है।

मै यहाँ मधुमेह की बात बिलकुल नहीं कर रहा। क्यूंकि फोंस में ऑटो ब्राइटनेस मोड भी उपलब्ध होता है मधुमेह में ऐसा कुछ नहीं होता।

एक और बात, आज के आधुनिकतम अमोलेड स्क्रीन्स श्याम रंग (हाँ हाँ काला रंग) को दिखाने में सबसे कम ऊर्जा खर्च करते हैं और श्वेत में सबसे अधिक। इसलिए श्याम पृष्ठभूमि को प्राथमिकता दें।

6. फ़ोन जी एस एम पर इस्तेमाल करें बजाए 3G के:
3G पे इन्टरनेट स्पीड लाजवाब होती है, छू मंतर से सारे काम हो जाते हैं। इसका दूसरा पहलू ये है की बैटरी भी उतनी ही जल्दी हवा हो जाती है। आजकल 3G और GSM दोनों मोड या यूँ कहे दो सिम एक साथ एक्टिव रहते हैं और ये दोनों मिलकर बैटरी की जान निकालते रहते हैं। अगर फ़ोन चार्ज करने की सुविधा उपलब्ध न हो तो GSM सिम एक्टिव रक्खें।

7. एनिमेटेड वालपेपर से बचें:
एनिमेटेड वालपेपर का क्रेज है और इससे फ़ोन बेशक काफी आकर्षक दीखता है लेकिन जब आपके पास बैटरी चार्ज करने की सुविधा देर तक उपलब्ध न हो तो स्थिर वालपेपर रखने की ही सलाह दी जायेगी। कई बार स्मार्ट फोंस के स्लो हो जाने में भी एनिमेटेड वालपेपर का बड़ा हाथ होता है। RAM- जो फ़ोन के प्रतिक्रिया देने की रफ़्तार को तेज़ करता है- का एक बड़ा हिस्सा इसी की खातिरदारी में गवां बैठता है और वह स्लो प्रतिक्रिया देना शुरू करता है।

8. अनुपयोगी एप्लीकेशन बंद रखें:
ऐसे एप्लीकेशन जिनका आप यदा-कदा ही इस्तेमाल करते हों उन्हें बंद ही रखें। कई बार ऐसा होता है के हमने कई फाइल्स इकट्ठे खोल लिए और इस्तेमाल सिर्फ दो का ही कर रहे होते हैं। हमे ये भले ही न दिखें लेकिन बैकग्राउंड में बैटरी और RAM दोनों पे आफत ढाते होते हैं।  ब्लूटूथ, Wi-Fi, GPS जैसे जरूरी सुविधाओं का लाभ लें लेकिन उपयोग के पश्चात उन्हें बंद करना न भूलें। सोशल नेटवर्किंग निहायत जरूरी है लेकिन फ़ोन को नेटवर्क अपडेट मोड पर रखना बैटरी को नहीं सुहाता।

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रोमिंग फ्री से बदलेगी तस्वीर?

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) ने 20 दिसंबर, 2012 की प्रेस विज्ञप्ति में यह संकेत दिया है के भारत में मोबाइल रोमिंग के कायदे कानूनों में बदलाव की संभावनाएं हैं जिसके अंतर्गत प्राथमिक तौर पर यह निर्धारित किया जाएगा के मोबाइल सुविधाओं को रोमिंग शुल्क से मुक्त किया जाए। इस बदलाव से न सिर्फ नंबर बदलने की परेशानियों से छुटकारा मिलेगा अपितु अनर्गल चार्जेज से भी मोबाइल उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। TRAI ने मोबाइल सुविधा देने वाली सभी निकायों से 17 जनवरी 2013 तक इस बाबत राय मांगी है ताकि सभी सम्बंधित पार्टियों के दृष्टिकोण पर विचार किया जा सके।

मोबाइल सुविधा देने वाली सभी कंपनियां TRAI के इस कदम से खुश नहीं दिखती और अपनी मजबूरी का रोना रोती है। उनका कहना है पहले से ही उनकी खस्ता हो रहे मुनाफे में यह एक बड़ी सेंध होगी और अगर ऐसा हुआ तो शुल्कों में बढ़ोत्तरी अवश्यम्भावी हो जायेगी। यहाँ यह समझना भी जरूरी होगा के भारत में मोबाइल सुविधा शुल्क दुनिया में सबसे कम है।

24 सितम्बर 2011 में ही दूरसंचार मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने अपने बयान में यह साफ़ कर दिया था के 2013 की पहली तिमाही तक पूरे भारत में रोमिंग फ्री हो जायेगी। TRAI की प्रेस विज्ञप्ति इसी पहल की अगली कड़ी है। इस तरह की संभावनाओं की बात पिछले एक साल से लगातार होती रही है। आम उपभोक्ताओं को क्या मिल पायगा यह तो वक़्त ही बताएगा। रोमिंग फ्री होना एक सकारात्मक कदम है लेकिन व्यावसायिक दृष्टी से यह कितना सही हो पायेगा, कैसे सरकार एक बीच का रास्ता निकालेगी? यह सारे अनुत्तरित प्रश्न उत्तर की तालाश में रहेंगे।

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

भविष्य के स्मार्ट फ़ोन!

कयासों का बाज़ार गर्म है के 2013 के अंत तक स्मार्ट फोंस अंतरजाल से जुड़ने का सबसे सरल माध्यम हो जाएगा। अब इस रिपोर्ट की माने या एक दूसरे रिपोर्ट  की जो दावा करता है के भविष्य में मनुष्य को तीन चीज़े पशुओं से अलग रखने में कारगर सिद्ध होंगी- पहला स्मार्ट फ़ोन जिसका हम आलरेडी गुणगान कर रहे हैं , दूसरा होगा टेबलेट PC और तीसरा TV. चौंकिए मत!

 TV 2013में  ऐसी फाडू तकनीकों के साथ बाज़ार में आने जा रही के आँखे खुली रह जायेंगी। इसकी चर्चा हम अलग से करेंगे। टेबलेट की बीमारी का हम सबको पता है अभी इसकी चर्चा न करें वही अच्छा है। मुझे महत्वपूर्ण खोज यह भी लगता है के इंसानों का भगवान में विश्वास 2013 में भी यथावत बना रहेगा क्यूंकि गूगल बाबा ने अभी भी भावनाओं को सर्च करना सीखा नहीं है।

खैरे 'होइहें वही जो राम रची रखा' हम आम जनता हैं और हमारा हर नयी खबर के साथ अपने ब्लड प्रेशर पे ज्यादती करना उचित नहीं है। 121 करोड़ की आबादी वाला अपना उर्वर देश अभी भी रोटी-पानी को ही प्राथमिकता देने के मूड में है। इतनी आफरा-तफरी, इतने हो-हल्ले के बाद भी सिर्फ दस फीसदी जनसंख्या ही अंतरजाल का हिस्सा बन पायी है। हमें आज भी वर्चुअल से फिजिकल हो जाना ज्यादा इजी लगता है। काश!  श्री कपिल सिब्बल का आकाश टेबलेट के साथ प्रेस विज्ञप्ति में मुस्कुरा भर देने से ही हम ब्रॉडबैंड हाई वे पर सवार हो गए होते। 'दिल है के मानता नहीं' की मजबूरी में हमारे कई  सूचना और प्रसारण मंत्रियों ने पूरे डिपार्टमेंट को ऐसी वाट लगाईं है के आज भी पूरा मंत्रालय घिघिआने को विवश है, आधारभूत संरचनाओं की बात करने पर ही ये खफा हो जाते हैं। ब्रॉडबैंड इयर का सपना सरकार ने 2006 में देखा था जो अभी भी सपना ही है।

खुश होंने वाली बात यह है की मोबाइल तकनीक इन सभी परेशानियों के बावजूद प्रगति पथ पर अग्रसर है। भारतीय टेलीकम्यूनिकेशन ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरी दुनिया को एक नयी राह दिखाई है। देश में अंतरजाल का विकास बहुत हद तक स्मार्ट फ़ोन के विकास के साथ जुडा है।

इससे पहले के आप मेरी जान लेने की सोचें मुझे मुद्दे की बात शुरू कर देनी चाहिए।

व्यावहारिक एवं व्यापारिक रूप से सिर्फ दो दसक पहले लोगों के सामने आई स्मार्ट फोंस की तकनीक इतनी जल्दी नए कीर्तिमान स्थापित करेगी इसका अनुमान शायद ही किसी को था। एंडी रुबिन, सह संस्थापक, एंड्राइड इनकॉर्पोरेट ने हालाँकि 2003 में ही यह भविष्यवाणी की थी के स्मार्ट फ़ोन जल्दी ही अपने यूजर के लोकेशन और उसके प्रेफेरेंसेस का पता लगाने में सक्षम होगा। यह बात आज भले ही अटपटा लगे लेकिन सच्चाई यही है के फीचर फोंस के एक 'क्लोज्ड दाएरे की तकनीक' के ज़माने में यह चौंकाने वाला खुलासा था।

सरल भाषा में अगर स्मार्ट फ़ोन को परिभाषित करें तो इसका मतलब एक ऐसे संयंत्र से है जिसमे एक आम फ़ोन से बेहतर कार्यकुशलता, अंतरजाल से जुड़ने की खासियत, मल्टीमीडिया एंटरटेनमेंट जैसे गेम्स, विडियो, मूवीज इत्यादि की सुविधा सहज ही उपलब्ध कराती हो।

जो कमोबेस पॉकेट में रखने योग्य एक मिनी कंप्यूटर होता है। आज का समुन्नत स्मार्ट फ़ोन उपरोक्त खूबियों के अलावा आपको एक भरोसे मंद कैमरा, रेडियो, wi -fi, 3G  कनेक्टिविटी भी मुहैया कराता है।

आप सोच रहे होंगे जब सारी खूबियाँ उपलब्ध हैं ही तो और बच क्या जाता है इजाद करने के लिए। लेकिन इंसान की एक अच्छी फितरत होती है के वो हमेशा कुछ बेहतर करे। चलिए देखें क्या बेहतर करने के दावे पेश किये जा रहे हैं:

1. मान लीजिये आप कहीं जा रहे हैं, रास्ते में ही आपको कोई ऐसी चीज़ दिखती है जो आपको पसंद तो आती है लेकिन इसके बारे में आपको ज्यादा मालूम नहीं। यह एक नयी चिडिया भी हो सकती है जिसे शायद आप पहली बार देख रहे हों और उसके पंख आपको बेहद खूबसूरत लगे हों।

बस आपने अपना स्मार्ट फ़ोन जेब से निकाला कैमरा औन किया और चिडिया की तरफ रुख कर दिया। स्मार्ट फ़ोन ने आपकी जरूरत समझ ली और उस चिड़िया के बारे में जितनी भी इनफार्मेशन आपको चाहिए थी  आ गया स्क्रीन पर। इस तकनीक का नाम है ऑगमेंटेड रियलिटी (AR). इसके द्वारा आप किसी भी चीज़ की जानकारी लाइव पा सकते हैं।


2. हमें पता है की स्मार्ट फ़ोन को पॉकेट फ्रेंडली होना अत्यंत आवश्यक है। आपने कभी सोचा था  इस 'देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर' संयंत्र का उपयोग फिल्मे देखने और गेम्स के लिया हो सकेगा, आज हो रहा है।
रोचक बात यह है के हम स्मार्ट फ़ोन को पॉकेट में रखना तो चाहते हैं लेकिन स्क्रीन साइज़ सीमित होने की वजह से फिल्मे देखने या गेम खेलने का वो मज़ा नहीं उठा पाते। फ्लेक्सिबल सक्रीन से इस समस्या का समाधान भी शायद जल्दी ही मिल जाएगा। जी हां! ओलेड तकनीक से सुसज्जित आपने एक कागज जैसे पतले स्क्रीन को  जेब से निकाला खोला इस्तेमाल किया और फिर मोड़कर रख लिया।तब न तो बड़े स्क्रीन को झोले में ढोने की किचकिच होगी और न ही गिरने टूटने का भय।  इतना इजी हो जाएगा सबकुछ।

3. बात यहीं ख़तम नहीं हो जाती। अगर फ्लेक्सिबल सक्रीन भी आपको छोटा लगे तो उसका भी जवाब तकनीक विशेषज्ञों ने ढूंढ लिया है।DLP (डिजिटल लाइट प्रोजेक्शन) लेकर आया है कुछ ऐसी ही संभावनाएं।

आप इस इन बिल्ट प्रोजेक्टर से 50 इंच के स्क्रीन पर आप फिल्मे, तस्वीरें गेम्स इत्यादि का लुत्फ़ उठा सकते हैं। सैमसंग ने हाल में ही एक ऐसा फ़ोन भारतीय बाज़ार में आलरेडी पेश कर दिया है। इसमें और भी तकनीकी विकास की संभावनाएं हैं और इसपे बहुत काम होना बाकी है।  इसमें आज की तरह फ़ोन के अलावा शारीरिक हाव भाव और संकेत की भाषा भी इस्तेमाल की जायेगी।



4. काफी अरसे से इस बात पे बहस होती रही है के वौइस् कमांड को कैसे प्रभावी बनाया जाए। गूगल की पहल इस सम्बन्ध में सराहनीय रही है लेकिन एक व्यावहारिक फ़ोन जिसका इस्तेमाल आसानी से हो सके यह वास्तविकता अब भी कोसों दूर है।

विशेषज्ञ अब इस बात पे धयन दे रहे हैं के कैसे फोंस को इस काबिल बनाया जाये जो हमारी आवाज़ को हमारी तरह ही समझ पाए। भविष्य के स्मार्ट फ़ोन के लिए ध्वनि विश्लेषण करना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा आज की भाषा पहचानने की तकनीक से।

5. एप्पल की रेटिना डिस्प्ले के साथ ही स्क्रीन की गुणवत्ता लगभग अपने चरम पर पहुँच चूका है। लेकिन इसका मतलब कतई ये नहीं है के विकास की संभावनाएं नहीं हैं। अभी तक हमने 2D स्क्रीन तक ही अपने को स्मार्ट फोन स्क्रीन को सीमित रखा था।

भविष्य के स्मार्ट फोंस 3D से ही चला करेंगे जिसमे होलोग्राफिक प्रोजेक्शन की सुविधा होगी जिसके द्वारा आप 3D ऑब्जेक्ट्स, फोटोग्राफ्स यहाँ तक की विडियो को भी अपने हिसाब से लाइव मॉडिफाई कर सकते हैं। इस प्रकार 3D स्क्रीन और होलोग्राम भविष्य के स्मार्ट फोंस का एक हिस्सा होंगी।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

टेबलेट खरीदने से पहले क्या जानें...?

आज का बाजार टेबलेट से अटा पड़ा है। टेबलेट ना हुआ ताबीज़ हो गया, जेब में कोई भी रकम हो निकालो और ले जाओ, जीवन सफल बनाओ। सफलता की कठिन सीढियों का सबसे बड़ा साथी बनाकर पेश किया जा रहा है इस उत्पाद को। ठीक है ज़माने के साथ हमे बदलना चाहिए यही वक़्त का तकाज़ा है लेकिन जबरन भेडचाल का हिस्सा हो जाना कहाँ तक उचित है। हमारे एक पडोसी जिन्हें बड़ा शौक था के वह नए ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाएं, गत सप्ताह ही सुपर मार्केट गए और उठा लाये एक टेबलेट। बाद में पता चला, सेल्समैन ने चतुराई दिखाते हुए उन्हें एक ऐसा प्रोडक्ट थमा दिया था जो दिखने में चकदक था, कीमत भी कम थी पर जिसका न तो प्रोसेसर सही तरह काम कर पा रहा था न टच पैड की प्रतिक्रिया सामान्य थी।

महज दो साल पहले तक हम सिर्फ दवाई वाले टेबलेट को जानते पहचानते थे लेकिन आज PC टेबलेट की मौजूदगी और लोकप्रियता ने इस शब्द को एक नया अर्थ दिया है। आपको जानकार आश्चर्य होगा की एलन काय जैसे दूरदर्शियों ने इस तरह के तकनीक की कल्पना 1972 में ही अपनी किताब Dynabook में कर ली थी। बीसवीं शताब्दी के अंत तक इसके व्यापारिक पहलुओं पर बातें भी शुरू हो चुकी थी।
एप्पल iPAD 2010
'बड़ी देर कर दी हुज़ूर आते- आते' वाले अंदाज़ में 2010 में जब एप्पल ने iPAd बाज़ार में पेश किया तो कल्पनाओं को यथार्थ की ज़मीन मिली और देखते ही देखते इसने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित कर दिये। एप्पल आज भी दुनिया की अव्वल टेक कंपनियों में शुमार है। इस नए युग के सूत्रपात का श्रेय अगर एप्पल को जाये तो यह यथोचित ही होगा। iPhone की तकनीक पर ही बना यह टेबलेट दुनिया भर के उपभोक्ताओं की पहली पसंद बन गया। समझने की बात यह थी एप्पल की पंहुच केवल संभ्रांत व्यक्तिओं और परिवारों तक सीमित थी। आम आदमी अगर इसे खरीदने जाए तो उसे एक किडनी एक आँख बेचना पड़े। कहने का मतलब है क्रांति का बिगुल बजा लेकिन यह उत्पाद उनके ही हाथों की शोभा बढ़ा पाया जिनके पास पहले ही डेस्क टॉप अथवा लैपटॉप था।

दुनिया के अन्य कंपनियों का इस होड़ में शामिल होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा सैमसंग, HTC, मोटोरोला, ब्लैकबेरी, गूगल, ऑसुस, तोशिबा, सोनी इत्यादि जैसे मंजे टेक खिलाडियों ने भी जल्दी ही अपना मोर्चा खोल दिया। किसी ने स्क्रीन का आकर बदला, किसी ने लुक, किसी ने अच्छे ऑफर्स की पेशकाश कर दी। ऐसी मार- काट मची है के मार्च 2012 तक आते-आते अमेरिका के लगभग 40% लोगों के पास अपना टेबलेट था और जिसकी रफ्तार जंगल के आग की तरह फैलती ही जा रही थी या कहिये अभी भी फ़ैल रही है। जीवन सफल बनाने का इससे अच्छा, सुंदर और टिकाऊ तरीका लोगों को मिल नहीं रहा।

इतना सब होने के बावजूद पिछले साल तक भारत जैसे विकासशील देशों को ज्यादा लाभ नहीं हुआ। कीमतें थी की आसमान छू रही थी और आम जनता समाचारों में इसकी कहानियां, समीक्षाएं पढ़कर खुश रहने पर मजबूर थीं। समय का पहिया तब घूमा जब भारत सरकार ने ब्रिटिश कंपनी DataWind  के साथ मिलकर आकाश टेबलेट को भारतीय बाज़ारों में पेश करने की बात करी। इसकी कीमतें भी ऐसी चौकाने वाली थी के पूछिये मत। दुसरे टेबलेट्स से कम से कम दस गुणा कम।

Akash 1
 'सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का' का आत्मविश्वास लिए देसी टेक खिलाडी भी निकल पड़े इस नयी पहल को अंजाम तक पहुचाने के वास्ते। चाहे माइक्रोमैक्स हो, कार्बन मोबाइल हो या जेन हो या कोई और इन्होने चीनी कंपनियों से गांठजोड़ कर एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया है के डर लगता है बाज़ार जाने से, रोज़ नयी पेशकाश एक नए शगूफे के साथ। मोटे तौर पर शराब वही रहतीं हैं बोतलें ताबरतोड़ बदल दी जा रही हैं। ऐसा लगता है कहीं ताज़ी जानकारी से लैश न हों, बाज़ार जाएँ तो सेल्समैन ही न चिढ़ा दे। बेचारे मासूम ग्राहकों को ऐसा लुटता देखा है के क्या बताऊँ। सच्ची डर लगता है!

भूमिका कुछ ज्यादा नहीं हो गयी? जाने दीजिये, काफी समय से दबा के रखा था, कोई सुनने को तैयार ही नहीं, न कमीने दोस्त न रिश्तेदार! भला हो गूगल का जिसने ब्लागस्पाट जैसे अनूठी तकनीक इजाद की और मै अपनी भड़ास निकाल पाया।

चलिए अब मुद्दे की बात भी कर लेते हैं और समझते हैं के आखिर क्या देखना चाहिए टेबलेट में, खरीदने से पहले:

1. ऑपरेटिंग सिस्टम (OS):

जी हाँ! OS टेबलेट का एक अत्यंत आवश्यक हिस्सा होता और अगर आपने सही चुनाव नहीं किया तो गयी भैंस पानी में। कई सारे पॉपुलर OS अभी बाज़ार में मौजूद हैं जिन्हें अलग- अलग ब्रांड्स से जोड़ा जाता है और इनकी खामियां और खूबियाँ गिनाई जाती है।  इनकी जांच परख बहुत आवश्यक है।

- आज भी iOS जो एप्पल अपने iPad में इस्तेमाल करता है सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।  iOS जो 1 से शुरू हुई थी 6 इसकी सबसे लेटेस्ट पेशकश है।



- 2008 में बाज़ारों में पेश की गयी गूगल एंड्राइड OS की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढती जा रही है और वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब यह एप्पल को पीछे छोड़ देगी।  यह एक लिनक्स बेस्ड OS है जिसे ख़ास तौर से टच स्क्रीन के संयंत्रों के लिए बनाया और डिजाईन किया गया है। यह एक ओपन सोर्स OS होने के कारण इसका मॉडिफिकेशन फ्री होता है। Gingerbread से लोकप्रिय हुआ यह सफ़र आज Jellybean तक पंहुचा है जो इसका लेटेस्ट वर्शन है और सबसे कार्यकुशल भी है।
- तीसरा उभरता OS है माइक्रोसॉफ्ट विंडोज का जिसका विंडोज 7 वर्शन उतना चल नहीं पाया था, लेकिन हाल में ही लांच हुआ विंडोज 8 से काफी उम्मीदें बाँधी जा रहीं हैं।


- और भी कुछ OS बाज़ार में उपलब्ध हैं लेकिन उपभोक्ताओं ने उनको भाव नहीं दिया। जैसे ब्लैकबेरी और HP के OS.

2. स्क्रीन कैसा है?

स्क्रीन के साइज़ का सही होने भी एक महत्वपूर्ण घटक है। टेबलेट का स्क्रीन अमूमन 10 से 7 इंच के बीच तक होता है और यहाँ आपको यह निर्णयलेना होगा की आप इसको कैसे यूज़ करने की सोच रहे हो। 10इंच के टेबलेट को एक हाथ से इस्तेमाल करने असं नहीं होता है लेकिन गेम और विडियो के लिए यह उपयुक्त होता है। 7इंच का टेबलेट लाने ले जाने में इजी होता है लेकिन इसकी भी सीमायें हैं। आपकी जरूरतों के हिसाब से चुना गया स्क्रीन साइज़ ही सबसे अच्छी सलाह होगी।

स्क्रीन रेजोल्यूशन जानना भी ज़रूरी है, क्यूंकि अगर आप पैसे खर्च कर रहे हैं तो आपका आमूलचूल अनुभव भी अच्छा होना चाहिए। गूगल नेक्सस  का स्क्रीन  रेजोल्यूशन 2,560x1600 पिक्सेल्स के साथ अभी सबसे अच्छा है। इसके तुरंत बाद आता है iPad  जिसका  स्क्रीन  रेजोल्यूशन है 2,048,x1,536 पिक्सेल्स। यहाँ समझाना यह है के उपरोक्त गुणात्मक संख्याएं जितनी ज्यादा होंगी स्क्रीन उतना ही अच्छा होगा। रंग ज्यादा निखर कर आयंगे और चीज़ें सजीव जान पड़ेंगी। हाँ इससे बैटरी की खपत बढ़ सकती है।

3. प्रोसेसर?

दुनिया के सारे टेबलेट ARM प्रोसेसर तकनीक से चलते हैं और यही बात लगभग सभी मोबाइल फोंस पर भी लागू होती है। अलग-अलग निर्माता ARM का अलग अलग वर्शन और चिप डिजाईन बनाते हैं जो उनके संयत्रों में फिट बैठ सके। यह ध्यान रखें की यह कितने GHz का है। 1GHz या उससे अधिक क्षमता वाले प्रोसेसर आपके सारे काम आसानी से कर सकते हैं, हालाँकि 1.5GHz  तक के प्रोसेसर भी अब सामान्य हो गए हैं। यह सारी बातें सिंगल कोर की हुईं लेकिन अब ड्यूल कोर प्रोसेसर का ज़माना भी जोड़ पकड़ चुका है। अगर यह है तो सोने पे सुहागा। इससे स्पीड एकदम स्मूथ हो जाती है।

एप्पल हालाँकि अपना लेटेस्ट A5 चिप इस्तेमाल करता है। और एंड्राइड Nvidia Tegra प्रोसेसर इस्तेमाल करता है।
अंदरूनी तकनीक की अगर बात हो रही है तो RAM (रैपिड एक्सेस मेमोरी) जो मदद करता है सूचनाओं को इकठ्ठा करने और उन्हें आपके सामने प्रस्तुत करने में इसके बारे में पूछताछ करें।

512 MB से कम कुछ भी न लें चाहे कीमत कितनी ही कम हो और विज्ञापन कोई भी दावा क्यूँ न करे। 1GB RAM पे आपको अपने काम सुचारू रूप से करने में काफी मदद मिलती है। ध्यान रखें DDR 3 RAM हो तो और भी बढ़िया।

4. कनेक्टिविटी?

लगभग सारे टेबलेट्स Wi-Fi सपोर्ट करते हैं जो आपको इजी कनेक्टिविटी की सुविधा देता है। अपने देश में wi- fi हॉट स्पॉट की बेहद कमी है और ऐसा टेबलेट लेना जो केवल wi-fi से चले बुधिमानी नहीं समझी जाएगी।

गूगल का नेक्सस और iPad के कुछ वर्शन भी ऐसे ही टेबलेट हैं जो सिर्फ और सिर्फ Wi-Fi से चलाये जा सकते हैं। आप खरीदने से पहले इसकी जांच परख ज़रूर करें।

3G सिम या डाटा कार्ड से चलने वाले टेबलेट भी बहुतायत से मिलते हैं और भारतीय परिस्थितियों की बात करें तो यह विकल्प बेहतर प्रतीत होता है।

5. बैटरी, कैमरा और स्टोरेज

चाहे नए-नए apps डाउनलोड करने हों या उनका उपयोग करना हो। अहम् बात यह है के क्या आपका टेबलेट इतना स्टोर कर पायेगा और स्टोर हो भी गया तो क्या इसको चलाने में बैटरी इसका साथ दे पाएगी। कैमरा दोनों तरफ है या सिर्फ एक तरफ यह भी ज़रूर जान लें।

स्टोरेज की अगर बात करें तो 32GB आज टेबलेट्स और स्मार्ट फोंस का स्टैण्डर्ड स्टोरेज कैपेसिटी है। इससे बढ़ाना हो तो आपको एक्सटर्नल हार्ड डिस्क लेना पड़ेगा 4-5 हज़ार की चपत बैठे बैठे लग सकती है। 'अपनी जरूरतों को समझाना और उसी हिसाब से खर्च करना'  जैसी पुरानी हो चुकी कहावत एक बार पुनः जीवीत हो जाती है।

निर्माता के दावों पर कतई न जायें कोई भी अपनी दही को खट्टा नहीं कहने वाला! जो उपभोक्ता हैं उनसे जाने के भाई बैटरी कितना देती है। दस घंटे के बैटरी लाइफ का ढिंढोरा पीटने वाले निर्माताओं की कमी नहीं है। पता तब लगता है जब ढाई घंटे में टेबलेट रोने लग जाता है।

विडियो कालिंग के लिए दो कैमरों का होना आवश्यक है यहाँ सिर्फ 3G नहीं बल्कि यह जानना भी लाजिमी है के इन्टरनेट से अगर विडियो कालिंग करने जाएँ तो भी दो कैमरे लगते हैं।

4MP या उससे थोड़े ज्यादा के कैमरा हमारी रोज़मर्रा की जरूरतों के लिए काफी होते हैं। मेगापिक्सेल के पीछे जाना चतुराई नहीं है।



अपनी राय ज़रूर दें। पोस्ट करें!

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

रु 20,000 से कम दामों में उपलब्ध दस स्मार्ट फ़ोन


अगर आप स्मार्ट फ़ोन खरीदने की तैयारी में हैं तो जो सबसे अहम् बात है मै उसपे आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा। पहले तो आप तैयार रहें के आपके सामने विकल्पों की भरमार है, कई बार ऐसा होता है के आप इतने सारे फोंस बाज़ार में एकसाथ देख बैठते हैं की यह निर्णय लेना कतिपय आसान नहीं होता की अखिर किया क्या जाये। सेल्समेन की सुनकर कहानी ख़त्म की जाए या खाली हाथ घर लौटा जाय। विकप्लों की भरमार ही यहाँ मुश्किलों का कारन बन बैठता है। 

इस दुविधा से निकलने का एक उपाय है! थोडा अटपटा लगेगा लेकिन होगा बड़ा कारगर। आप पहले मन ही मन अपना एक बजट बना लें और फिर थोडा समय हाथ में लेकर किसी अच्छी दुकान की सैर करें। अपनी प्राथमिकताओं की एक फेहरिश्त रखें तो और बेहतर। इससे आपको अपने बजट में उपलब्धता की जानकारी हो जाएगी एवं इसी बीच आप अपना मॉडल भी पसंद कर लें। यह पता लगाना न भूलें की ब्रांड क्या था। घर आयें और इसकी छान बीन इन्टनेट पर करें या फिर किसी ऐसे व्यक्ति से राय लें जिसे इस सम्बन्ध में जानकारी हो। सबसे अच्छा माध्यम होता है इस्तेमाल करने वालों की राय लेना जो इन्टरनेट पर आपको आसानी से मिलेगा।  

आइये दस ऐसे स्मार्ट फोंस के बारे में बात की जाए जो रु 20,000 से कम दामों में भारतीय बाज़ारों में उपलब्ध है।

10. सैमसंग गैलेक्सी   S Duos

सैमसंग पिछले सालों में एक ऐसी मोबाइल फ़ोन कंपनी के रूप में उभरा है जिसके पास सबके लिए कुछ न कुछ है। कार्यकुशलता और गुणवत्ता का ऐसा ताना बाना उसके हर एक पेशकश में होता है के पूछिये मत। चाहे एप्पल से उसकी भिडंत हो नोकिया को रास्ता दिखाने की बात हर क्षेत्र में उसकी ही तूती बोल रही है। 

सैमसंग गैलेक्सी   S Duos एक काफी पोपुलर हो चुका फ़ोन है और जैसा के नाम से ही स्पष्ट है यह एक ड्यूल सिम (GSM + GSM) स्मार्ट फ़ोन जिसकी तकनीक की अगर हम बात करें तो वह इस प्रकार है:

सैमसंग गैलेक्सी   S Duos
 रु 16,999 की कीमत का यह फ़ोन 1GH सिंगल कोर प्रोसेसर का फ़ोन है जिसकी अंदरूनी  RAM की अगर बात करें तो वह है 768MB जो एक लिहाज़ से काफी होता है फ़ोन को चलने के लिए। बशर्ते आप इसपर कंप्यूटर का सारा बोझ तो लाद नहीं सकते हाँ इसकी सीमाओं का पता तब चलता है जब आप कोई हैवी गेम खेलने की कोशिश करें और जब Mcafee जैसा एंटी वायरस इसमें कार्यरत हो तब ये लग करना शुरू करता है। 

बहरहाल, 4 इंच का बेहतरीन स्क्रीन, 5MP कैमरा लेड से लैश, विडियो कालिंग के लिए फ्रंट फेसिंग VGA कैमरा, 4GB  की इंटरनल मेमोरी जिसे आप 32 GB  तक बढ़ा सकते हैं, एंड्राइड 4.0 और 1500mAH  का पोवेरफुल बैटरी कोई कसर नहीं छोड़ते और अंततः यह एक प्रभावशाली पेशकश के रूप में सामने आता है।

9. HTC  वन वी 

HTC ने स्मार्ट फोंस की दुनिया में अपनी जो धाक बनायीं है वह काबिले तारीफ़ है। बड़ी बड़ी मोबाइल कंपनियों के रहते बिना ज्यादा शोर मचाये वह धीरे धीरे ही सही स्मार्ट फ़ोन बाज़ार पर अपनी पकड़ मजबूत करने में सफल रहा है।  

एचटीसी 1 वी 



HTC  one v की डिजाईन बहुत उम्दा है और इस्तेमाल में यह फ़ोन मक्खन है। 1 GH का सिंगल प्रोसेसर, 512 का RAM  इसे इतनी ताकत देते हैं के आपका काम यह बखूबी कर पता है। 3.7 इंच का उत्कृष्ट स्क्रीन और एंड्राइड 4.0 का सपोर्ट आपको उबने नहीं देगा।  4GB  की इंटरनल मेमोरी जिसे आप 32 GB  तक बढ़ा सकते हैं, 5MP कैमरा लेड से लैश इसे एक फ्रेंडली फ़ोन बनाते हैं। इसमें वेदिओ कालिंग की सुविधा का न होना हालाँकि खटकता है। लेकिन इसमें दो राइ नहीं के यह एक अच्छा फ़ोन है जो आपका हो सकता है  रु 17499 में।  

8. सोनी X पेरिया NEO L 

सोनी की स्मार्ट फ़ोन बाज़ार में कमज़ोर होती शाख इस बात का संकेत देती है की अब उत्पादों की गुणवत्ता के अलावा कीमतों से भी काफी असर पड़ता है। हाल के दिनों में उनकी पेशकाश इस बात की पुष्टि करती प्रतीत होती है के अब शायद उन्हें इसका भान हो गया है। सोनी X पेरिया NEO L इसी कड़ी की एक पेशकश है।

सोनी X पेरिया NEO L


सोनी के उत्पादों की गुणवत्ता हमेशा से वर्ल्ड क्लास रही है यह फ़ोन भी 1GH  के प्रोसेसर, 512 MB RAM के साथ एक मजबूत दावेदारी पेश करता है। इसका बढ़िया अद्रेनो 205 ग्राफ़िक इंजन इसको एक अलग पहचान देता है और साथ ही साथ यूजर एक्सपीरियंस को भी बेहतरीन बनाता है।  4 इंच का (854 x 480), एंड्राइड 4.0, 1 GB का इंटरनल स्टोरेज जो 32 GB  तक बढाया जा सकता है इसकी मुख्या खूबियाँ है।इसकी कीमत भारतीय बाज़ारों में रु 18300 है जो थोडा महंगा लगता है।  

7. नोकिया लुमिया 800


नोकिया लुमिया 800
नोकिया ने एक नया मोबाइल फोन रिलीज़ किया नोकिया लुमिया 800. विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ नोकिया की यह पहली पेशकश थी। इसके पहले N सीरीज का बोलबाला था। नोकिया लुमिया 800 विंडोज 7.5 मंगो के साथ आता है इसके स्क्रीन की अगर बात करें तो 3.7 की अमोलेड स्क्रीन इसकी सबसे बड़ी खासियत है जिसके गोरिल्ला ग्लास की मजबूती इसको एक नए मायने देती है। 1.4GB  का मजबूत प्रोसेसर 512MB  RAM स्टैण्डर्ड हैं। इसमें आपको कैमरा भी धांसू मिलता है पूरे 8 MP का और कार्ल ज़ीस के मशहूर लेंस के साथ। 16 GB  की इंटरनल मेमोरी भी इसकी कार्यक्षमता को बढाने में मदद करता है। इसकी लिमिट की अगर बात करें तो इसमें विडियो कालिंग की सुविधा आपको नहीं मिल पाएगी। पर विडियो कालिंग आखिर करता कौन है? बाज़ार में इसकी कीमत शुरू होती है रु . 17759 से। 

6. ब्लैकबेरी टार्च 9860 

ब्लैकबेरी फ़ोन बनाने वाली कंपनी RIM (रिसर्च इन मोशन) ने चंद महीने पहले ही इस फ़ोन को भारतीय बाज़ारों में पेश किया था। स्टॉर्म सीरीज की खामियों को दूर करते हुए RIM  ने बाज़ार की मानो नब्ज़ पकड़ी है। इस रिव्यु का यह सबसे भारी फ़ोन है जिसका वज़न 135 ग्राम है शायद इसकी मजबूत बनावट से इसका कुछ सम्बन्ध हो।

ब्लैकबेरी टार्च 9860



   
3.5 इंच का यह टच स्क्रीन (480 x 800) फ़ोन काफी ठोस लगता है, इसका स्क्रीन हालाँकि इसका साथ नहीं देता और ऐसा लगता है जैसे अभी इसको और इम्प्रोवाइज किया जाना बाकी है। 1.2GH  का प्रोसेसर 768 MB  की  RAM जो आपको दे सकता है 14.4 Mbps का इन्टरनेट स्पीड। 4GB  की इंटरनल स्टोरेज से आपका जी न भरे टाप इसे 32GB  तक बाधा सकते हैं। इस फ़ोन की कीमत शुरू होती है रु 19,500 से।


5. LG Optimus L7

LG जिसने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिये काफी नाम कमाया है। अच्छी आफ्टर सेल्स, गुणवत्ता और प्राइसिंग के मामले में LG अबतक बेजोड़ रही है। मोबाइल बनाने और बेचने में भी इसे काफी सफलता मिली। भारतीय उपभोक्ता LG 2030 को शायद ही कभी भूल पायें जिसे 2003 में रिलायंस इंडिया मोबाइल के साथ उतारा था।

LG ओप्तिमस L 7
खैर, तकनीक के गति आज समय से काफी तेज़ हो गयी है और कौन कहाँ पिछड़ जाए बताना मुश्किल है! LG भी इसी उपेक्षा का शिकार हुआ दीखता है। रिलायंस के बाद उसके कूकीज सीरीज ने थोड़ी पहचान बनाने की कोशिश की थी लेकिन वह क्षणिक ही साबित हुआ। टच फ़ोन बनाना अलग बात होती है और उपभोक्ताओं को आपकी चीज़ पसंद आये यह दूसरी। ताबरतोड़ उत्पादों की भरमार भी हमेशा कारगर साबित नहीं होता।

LG L7 बाज़ार को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसकी चौड़ी डिजाईन 4.3 इंच का स्क्रीन (480x 800), 1GH  का प्रोसेसर, 512 MB  RAM , 5 MP कैमरा लेड फ़्लैश के साथ, 8.7 सेमी पतलापन  और 1700 mAH की बैटरी इस फ़ोन को प्रतियोगिता में बनाए रखने के लिए उपयुक्त जान पड़ता है।  बार-बार हैंग होना थोडा तकलीफदेह है और अन्य फोंस की तुलना में इसका जो रेस्पोंसे टाइम है वह भी बहुत अच्छा नहीं जान पड़ता है। इसकी कीमतों में काफी  कमी हुई है और इसे आप रु 15999 में खरीद सकते हैं। 

4. मोटोरोला डिफाइ प्लस 

चलिए एक ऐसे फ़ोन की बात करें जो थोडा हटके है। मोटोरोला दुनिया के सबसे पहली कंपनियों में है जिसने मोबाइल फ़ोन बनाने का ख्वाब देखा था और जिसकी बादशाहत लगभग एक दशक तक चली। आज की परिस्थितियों की बात करें तो मोटोरोला स्मार्ट फ़ोन की होड़ में थोडा पीछे छुट गया जान पड़ता है। गौर करने वाली बात यह है की मोटोरोला के फ़ोन हमेशा से थोड़े से अलग होते हैं उनका एक अलग पैमाना होता है चाहे उसकी मजबूती की बात करें या कारीगरी की।

हमारी सुकुमार स्मार्ट फोंस की दुनिया जिसे पानी और धूल के नाम से ही पसीना आता है उस भीड़ में मोटोरोला ने एक अच्छी शुरुआत कर दी है। 




जी हाँ! यह फ़ोन वाटर प्रूफ, डस्ट रेसिस्टेंट और स्क्रैच रेजिस्टेंट है। 1GB सिंगल कोर प्रोसेसर का यह फ़ोन 512 MB RAM के साथ आपको अच्छी और स्मूथ सुविधा देने का भी माद्दा रखता है। 5MP का कैमरा लेड फ़्लैश के साथ, 32 GB तक बढाई जा सकने वाली स्टोरेज इसको प्रतियोगिता के एकदम उपयुक्त फ़ोन बनाते हैं।  एंड्राइड 2.3 जो 4.0 तक बढाया नहीं जा सकता है इसका सबसे नकारात्मक पहलू है।  इस फ़ोन की कीमत   रु 13,000 है।


3. Micromax A 90 Suparphone 

भारतीय स्मार्ट फ़ोन निर्माताओं ने जैसी तेजी दिखाई है उससे यह साफ़ होता जा रहा है उत्पाद का सिर्फ विदेश की कंपनी, एक बड़ा ब्रांड और महंगा होना भारतीय उपभोक्ताओं को रास नहीं आता। अब उन्हें अपनी रकम के हिसाब से उम्दा माल चाहिए। ऐसा उत्पाद जो एक घटिया विकल्प न होकर हर मायेने में एक अच्छा उत्पाद हो। भारतीय उपभोक्ताओं ने यूँ कहिये के एक विश्वस्तरीय मुहीम की शुरुआत कर दी है। एप्पल सरीखी कंपनियों को भी इससे नसीहत मिली है और देखिये एप्पल मिनी की कीमतें कैसे घटीं हैं।


Micromax A 90 सुपर फ़ोन 
बहरहाल, micromax की A 90 एक सचमुच का सुपर फ़ोन है लगभग हर मामले में और कीमत सबसे कम।   
AMOLED स्क्रीन जो आज का सबसे अच्छा तकनीक है स्क्रीन बनाने का A 90 का 4.3 इंच का स्क्रीन इसे तकनीक से बना है और आपको एक सुपर्ब अनुभव देता है। इसके टच की बात करें तो यह भी सिल्की स्मूथ है। 1GH का ड्यूल कोर प्रोसेसर इतना फ़ास्ट है के आपको चैन से बैठने नहीं देगा। 512 MB  RAM  थोडा खटक सकता है लेकिन फ़ोन यूसेज के लिए यह पर्याप्त जान पड़ता है। इसमें आपको 8MP का कैमरा मिलेगा जो सबसे बेहतर तो नहीं है लेकिन बहुत अच्छा है। 1600mAH की बैटरी से आप पूरे दिन फ़ोन का इस्तेमाल कर सकते हैं और अगर नहीं चलाएंगे तो यह आपको एक सप्ताह का स्टैंड बाई टाइम देगा। रु 12690 में यह फ़ोन वाकई स्टैंड आउट करता है।


2. सोनी X पेरिया T 

सोनी ने इसी साल विश्व बाज़ार में इस फ़ोन को अपने अन्य फोंस के साथ उतरा है। भारतीय बाजारों में अभी इसे लांच किया जाना बाकी है लेकिन आपको बताऊँ सरगर्मियां बड़ी तेज़ हैं। कयास और अपेक्षाओं का बाजार गर्म है। रोचक बात यह है के इसके पेशकश की बातें नयी जेम्स बांड फिल्म स्काईफॉल से जोड़ी जा रही हैं 

चलिए तथ्यों की बाते करें। 4.55 इंच का इस रिव्यु का सबसे अच्छा  स्क्रीन (720×1280) के साथ यह एंड्राइड 4.0 से चलेगा और बेशक जेली बीन (एंड्राइड का अगला वर्जन) में तब्दील किया जा सकेगा। 1.5 GH और 1 MB  RAM के साथ इसकी कार्यकुशलता वाकई लाजवाब होगी। 13 MP का शानदार रियर कैमरा इसे एक स्पेशल फ़ोन की श्रेणी में रखता है, इस कैमरे से आप फुल हाई डेफिनिशन (HD) विडियो कैप्चर कर सकता हैं जो वाकई एक उपलब्धि होगी। मै ब्लूटूथ, wi-fi जैसी चीज़ों की बात नहीं कर रहा हूँ क्यूंकि इन्हें तो होना है।

सोनी x पेरिया T 
फ़ोन के आयतन की बात करें तो वह इस प्रकार है 129.4 mm x 67.3 mm x 9.4 mm और वज़न है 139 ग्राम जिसे आप थोडा भारी कह सकते हैं। इसकी बैटरी पॉवर 1850mAH  है जिससे आपको 7 घंटे का टॉक टाइम और लगभग 450 घंटे का स्टैंड बाई टाइम मिल सकेगा। इसकी कीमत रु 20,000 थोडा ज्यादा होने का अनुमान है।

1. सैमसंग गैलेक्सी नेक्सस 

गैलेक्सी नेक्सस 
पिछले ही दिनों गूगल ने नेक्सस 4 जिसे LG ने बनाया है विश्व बाज़ार में उतारने की बात कही थी। गूगल की गैलेक्सी नेक्सस जिसे सैमसंग ने बनाया है भारतीय बाजारों में आलरेडी अवेलेबल है। गूगल का फ़ोन हो तो इससे अपेक्षाएं काफी बढ़ जाती हैं और उसपर सैमसंग का साथ जैसे सोने पे सुहागा। 

4.65 इनचेस का यह फ़ोन अत्याधुनिक अमोलेड स्क्रीन के साथ आता है। 5MP का रियर और 1.3 MP का फ्रंट कैमरा 1.2 GB का कोरेक्ट्क्स A9 प्रोसेसर और साथ में 1GB  RAM एक दुमदार परफॉरमेंस का भरोसा दिलाता है। यह एंड्राइड 4.0 से चलेगा और बेशक जेली बीन (एंड्राइड का अगला वर्जन) में तब्दील किया जा सकेगा। समझने की बात यह है की इसकी कीमत रु 22000 से शुरू होती हैं लेकिन मुंबई में अल्फ़ा जैसी दुकाने इसे रु 18000 बेचने का दावा कर रही हैं। और यह कीमत आपको बिना किसी वारंटी या गारंटी अथवा रसीद के दी जाएगी।  

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

नोकिया लुमिया सीरीज- आर या पार


तकनीक की दुनिया जैसे पिछले एक साल में बदली है इससे यह बात साफ़ हो गयी के पुश्तैनी लोकप्रियता का ज़माना लद गया। अगर आपके उत्पादों की गुणवत्ता उपभोक्ताओं को नागवार गुजरी तो आप कोई ब्रांड हों कोई फरक नहीं पड़ता, आपकी शाख खतरे में है। वरना किसे पता था माइक्रोसॉफ्ट और नोकिया सरीखी विशालकाय और चतुर खिलाडियों को बाज़ार में बने रहना मुश्किल होगा। और यह सारा कुछ पिछले एक से डेढ़ सालों में हुआ है। आज सैमसंग और गूगल के एंड्राइड ने सबको न सिर्फ अचंभित किया है बल्कि एप्पल जैसे धाकड़ व्यवसायी कंपनियों को हिला डाला है। आज दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी एप्पल महीने दर महीने घाटे का दंश झेल रही है। दुनिया की 13 सबसे प्रभावशाली टेक कम्पनीज की सूचि इस प्रकार है:

Rank Company Industry Revenue FY HQ
1 Apple Hardware/Electronics $156.50 2012 California, U.S.
2 Samsung Hardware/Semiconductor/Electronics $149 2011 Suwon, South Korea
3 HP  Hardware $120.35 2012 California, U.S.
4 Foxconn Electronics $117.51 2011 New Taipei, Taiwan
5 IBM Hardware/Software $106.91 2011 New York, U.S.
6 Panasonic Electronics $99.65 2012 Osaka, Japan
7 Tpshiba Hardware/Electronics $74.39 2012 Tokyo, Japan
8 Microsoft Software $73.72 2012 Washington, U.S.
9 Sony Electronics $67.40 2012 Tokyo, Japan
10 Dell Hardware $62.07 2012 Texas, U.S.
11 Fujitsu Hardware/Software $54.46 2012 Tokyo, Japan
12 Intel Semiconductor $54 2011 California, U.S.
13 Nokia Telecoms equipment $50 2011 Espoo, Finland

नोकिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। बाज़ार में उनकी पकड़ ने उन्हें शायद सुस्त बना दिया था और अब जब तन्द्रा टूटी है पानी बहुत बह चुका है। परिस्थिति इतनी गंभीर है के उन्हें अपना फिन्निश मुख्यालय भी बेचना पड़ा। माइक्रोसॉफ्ट जो पर्यायवाची था कंप्यूटर का और जिसने दसकों तक अपना अव्वल जगह बनाये रखा आज आठवें नंबर की टेक कंपनी है और लुढ़कती ही जा रही है। मुझे लगता इसका सबसे बड़ा कारन इन दोनों उदाहरणों में, दूरंदेशी की कमी है। सैमसंग ने इस चीज़ को जल्दी महसूस किया और देखिये उनकी रफ़्तार।

हम जिस कालखंड में जी रहे हैं वहां समय की रफ़्तार बहुत अधिक हो गयी है। चीजों जल्दी-जल्दी बदल रहीं हैं। अंतरजाल के आगमन ने जैसे पुराने सारे नियमों को धता बता रखा है। और हमें समय रहते संभालना होगा सही प्रतिक्रिया देनी होगी नहीं तो अपना वजूद बचने के भी लाले पड़ने वालें हैं। नोकिया के लुमिया सीरीज की बात करें तो हम जान पाते हैं की देर से ही सही उन्होंने सही कदम उठाया है। विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम से सुसज्जित यह सीरीज क्या निर्धारित कर पायेगा दो महाबलीयों (नोकिया और माइक्रोसॉफ्ट) का भविष्य, चलिए पता लगायें:



नवम्बर 2011 में नोकिया ने दो नए मोबाइल फोन रिलीज़ किया नोकिया लुमिया 800 और नोकिया लुमिया 710. विंडोज 7 ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ नोकिया की यह पहली पेशकश थी। इसके पहले N सीरीज का बोलबाला था। इन दोनों फोंस में अंतर यह था के लुमिया 800 को एक दूसरी कंपनी qualcomm की बनती थी और लुमिया 710 नोकिया की उत्पादन इकाई सालो, फ़िनलैंड में बनती थी।

नोकिया लुमिया 710
ये दोनों फोंस को एक मिलीजुली सफलता से संतोष करना पड़ा। नोकिया लुमिया 800 की कीमत भारतीय बाज़ारों में आज रु 18000-19000 के बीच है वहीँ 710 आपको रु 14000 या इससे थोड़े कम में मिल सकता है।

 नोकिया लुमिया 800
अप्रैल 2012 में नोकिया लुमिया सीरीज की अगली पेशकश लुमिया 900 बाज़ार में उतारी गयी जिसका स्क्रीन  साइज़ लुमिया 800 से ज्यादा था और कीमत भी जो लगभग रु 29000 से 31000 है। स्क्रीन साइज़ बड़ी है लेकिन पिक्सेल्स एक जैसे ही हैं (480x 800). हाँ अगर पिक्सेल के घनत्व की बात करें तो लुमिया 900 एक बेहतर विकल्प है।
नोकिया लुमिया 900
इसके तुरंत बाद नोकिया ने बाज़ारों का रुख भांपते हुए एक नयी शरुआत की, बजट नोकिया लुमिया सीरीज जिसकी पहली एंट्री थी नोकिया लुमिया 610 जीसके प्राइस रेंज की शुरुआत होती है रु 11650 से। हालाँकि आयतन की अगर हम बात करें तो यह लुमिया 710 के समकक्ष ही है  लेकिन इसका सॉफ्टवेर और इसकी डिजाईन में काफी अंतर है।
नोकिया लुमिया 610
बेशक दोनों की कीमतों में आज भी काफी गैप है। इसी साल सितम्बर महीने में लुमिया बजट फ़ोन की अगली कड़ी की उद्घोषणा की गई। जी हाँ! नोकिया लुमिया 510 की।
नोकिया लुमिया 510
विकासशील बाज़ारों को ध्यान में रखकर बनाया गया यह फ़ोन चल पायेगा या फुस्स हो जायेगा यह जानने में थोडा वक़्त लगेगा। भारतीय बाजारों में इसकी कीमत शुरू होती है रु 8389 से। 4 इंच की स्क्रीन (480x 800 पिक्सेल्स), सिर्फ 129 ग्राम वजन, 1300 mAH की बैटरी जो दे सकती है आपको लुमिया 610 से ज्यादा टॉक टाइम और स्टैंड बाई टाइम। इस फ़ोन की अगर सीमाओं की बात करें तो मेमोरी कम होना , साधारण कैमरा और मेमोरी न बढ़ सकने वाली बातें खटकती हैं। 4GB  की मेमोरी में आप क्या-क्या रख पाएंगे भला!

इसी आपाधापी में माइक्रोसॉफ्ट ने सितम्बर 2012 में ही विंडोज 8 लाने की पेशकश की और बाज़ार को यह बताना भी चाहा की वो अपनी प्रतिष्टा के प्रति कितने गंभीर हैं। विंडोज 8 एक नायाब ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसका इंटरफ़ेस ही एक आमूलचूल परिवर्तन का संकेत देता है।

विंडोज 8
तरोताजा डिजाईन जो शुरू में थोडा अटपटा लग सकता है लेकिन थोड़े ही समय में आपको इसकी लत लग जा सकती है। स्टार्ट बटन अपने स्थान पे नहीं है और सारा इनफार्मेशन आपको मिलता है इंटरैक्टिव थंबनेल के द्वारा जहाँ सभी किस्म के अपडेट बखूबी अपना काम करते रहते हैं और आपको इसकी जानकारी देते रहते हैं। हम विंडोज 8 की चर्चा अलग से करेंगे और बताएँगे के कैसे ऑपरेटिंग सिस्टम्स की लड़ाई अलग से लड़ी जा रही है। चलिए अभी नोकिया लुमिया सीरीज पर इसके प्रभाव से वाकिफ हुआ जाए।

नवम्बर 2012 में नोकिया ने अपना पहला विंडोज 8 फ़ोन बाज़ार के हवाले किया जिसका नाम था नोकिया लुमिया 820. 160 ग्राम का यह फ़ोन 4.3 इंच के स्क्रीन (480x 800) के साथ, 1650 mAH की दमदार बैटरी जिसमे आप कम से काम 14 घंटे तक लगातार बात कर सकते हैं, एक प्रभावशाली फ़ोन की उपधि पाने को लगा।

नोकिया लुमिया 820
इसकी अन्य खुबिओं में शुमार है इसका 1500 MHz का ड्यूल कोर प्रोसेसर 1024 MB  का शक्तिशाली RAM, 8  GB की इंटरनल मेमोरी और एक 8 मेगापिक्सेल का जानदार कैमरा लेड फ़्लैश के साथ। इसके साथ ही आपको विडियो कालिंग के लिए 0.3 MP का फ्रंट कैमरा भी लगा है। इसकी कीमत रु 19999 से शुरू होती है।
नोकिया लुमिया 820

नवम्बर महीने में ही नोकिया ने एक और फ़ोन बाज़ार में उतारा जिसे हम नोकिया लुमिया 920 के नाम से जानते हैं। इसकी कीमत रु 24999 से शुरू होती है।


नोकिया लुमिया 920
नोकिया ने इससे एक हाई क्वालिटी फ़ोन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस फ़ोन के अगर स्पेसिफिकेशन की बात करें तो इसका 4.5 इंच का स्क्रीन (768 x 1280), 2000 mAH  की बैटरी और 32GB  की अंदरूनी स्टोरेज क्षमता इससे एक स्पेशल फ़ोन बनाती है। इसकी कीमत रु 24999 से शुरू होने के बात कही जा रही है।


नोकिया लुमिया 920
दीगर बात यह है के नोकिया लुमिया 820 और 920 दोनों ही फ़ोनों का भारतीय बाज़ार में लांच अभी होना है। नोकिया ने अपना खून पसीना बहाकर ही इन दोनों फ़ोनों को विश्व बाज़ार में पेश किया है और जो ख़बरें हमे मीडिया से मिल रही हैं उसी के आधार पर सारे कयास लगाये जा रहे हैं।

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