सोमवार, 29 अप्रैल 2013

बिग डेटा (BIG Data)

सन १६१३ में जब रिचर्ड ब्रैथ्वैत ने अपनी किताब में पहली दफा कंप्यूटर शब्द का इस्तेमाल किया था उस समय इसके मायने बिलकुल इतर थे। कंप्यूटर से उन्होंने तात्पर्य ऐसे मशीन से निकाला था जो गणनाएं करने में निपुण था।  हिंदुस्तानी भाषा में कमोबेस मुनीम शब्द इसके बिलकुल करीब बैठता है। रोचक बात यह है के २०वीं  शताब्दी के शुरुआत तक कंप्यूटर के शब्दार्थ में कोई बदलाव नहीं आया। डाटा का संवहन और सञ्चालन बड़े स्तर पर कंप्यूटर (संगणकों) द्वारा ही सम्भव हुआ जो कालांतर में इतना विकसित हुआ है के आज हमें बिग डाटा को समझने और उसका सुचारू ढंग से उपयोग की जुगत ढूंढनी पड़ रही है।    

बड़ा डाटा या बिग डाटा से तात्पर्य डाटा के ऐसे प्रबल प्रवाह से है जो समय के साथ गुणात्मक वृधि करता हुआ असीमित हो चला है। किलो बाइट (kb) से शुरू हुआ डाटा ट्रान्सफर का सफ़र अब एक्सा बाइट तक पहुँच चुका है। साल २०१२ में ही अगर हम कुल डाटा प्रवाह की गणना करें तो यह एक्सा बाइट में जाता है। दूसरे शब्दों में मानव सभ्यता के विकास से लेकर २०११ तक के कुल डाटा को भी अगर हम इकठ्ठा करें तो यह साल २०१ २  के डाटा प्रवाह से कई गुणा कम साबित होगी। विश्व भर में प्रति व्यक्ति डाटा खपत में बहुत बड़ा बदलाव आया है और अब समस्या यह है की इस डाटा दानव को वश में कैसे किया जाए।  

विज्ञान हमेशा से हमें आगाह करता रहा है की इसका उपयोग वरदान और अभिशाप दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है और बिग डाटा के सम्बन्ध में भी यह बात सौ प्रतिशत सही साबित होती है। बिग डाटा का आकार बड़ा होना ही इसकी सबसे बड़ी खूबी  है इसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करके हम दुनिया का नक्शा ही बदल दे सकते है। चाहे कला हो या विज्ञान अगर हमारे पास सूचनाओं का विस्तृत भण्डार होगा तब हम न सिर्फ वर्तमान बल्कि भविष्य का आकलन भी सटीकता से कर पायेंगे। चाहे किसी उत्पाद सम्बंधित राय शुमारी हो या मौसम की पेचीदगी का आकलन, हमारे पास ऐसे बहुत सारे सवालों के सटीक जवाब मिलने शुरू हो जायेंगे जिनके विषय में आज हम सिर्फ कयासों की भाषा बोलते हैं। 

दूसरी तरफ इसके सबसे बड़े दुष्परिणामों में भी शुमार होगा इसकी व्यापकता जिसपे हमारा संपूर्ण नियंत्रण नहीं होगा। डाटा में गलतिओं की संभावनाएं ज्यादा होंगी और इसके दूरगामी असर होंगे। बीग डाटा हमारे जीवन का हिस्सा बना जा रहा है और हमें ऐसे जानकारों की बड़ी संख्या में आवश्यकता होगी जो इसका सार्थक विश्लेषण कर सकें और इसके बुरे प्रभाओं से हमें आगाह कर सकें।


वैल्यू 
मैट्रिक्स 
1000
k
किलो 
10002
M
मेगा 
10003
G
जिगा 
10004
T
टेरा 
10005
P
पेटा 
10006
E
एक्सा 
10007
Z
जेट्टा 
10008
Y
योट्टा 


रविवार, 28 अप्रैल 2013

तकनीक की दुनिया और हिंदी लेखन

तकनीक पर आधारित लेखों का सरस होना इसकी आवश्यक आवश्यकताओं में शुमार नहीं है। यह अपेक्षा की जाती है के विज्ञान तथ्यों की भाषा बोले और यह भाषा अगर बेरहम भी हो तो मान्य होगी। इस परंपरागत सोच में बदलाव के बीज बोये जा रहें हैं और इसका श्रेय आज के सम्मुन्नत माध्यमों को मिलना चाहिए जिसने लेखक और पाठक दोनों को बड़ी तेजी से आपस में जोड़ने का काम किया है। अंग्रेजी भाषा में लिखे गए आज के तकनीकी या समालोचनात्मक लेखों ने एक नयी सरस विधा को जन्म देने का संकेत दिया है। जिसके बड़े सार्थक परिणाम सामने आये हैं। फ्रेंच, स्पेनिश और अन्य पाश्चात्य भाषाएँ बड़ी तेजी से इसका अनुकरण कर रहीं हैं और लोगों का रुझान इस बात का संकेत देता है की विज्ञान और कला का अगर सही मिश्रण किया जाए तो तकनीकी लेखन में अपार संभावनाएं हैं।

विश्वजाल पर हिंदी लेखन की परंपरा का विकास अब शुरू हो रहा है और जरूरत इस बात की है की हम भी इस लोकप्रिय एवं सार्थक लेखन पर गहराई से विचार करें जहाँ विज्ञान और कला क्रियात्मक रूप से एक दूसरे के पूरक बने। तकनीक सम्बन्धी हिंदी लेखन को हाशिये पर रख कर हम न सिर्फ हिंदी भाषा बल्कि उससे प्रभावित होने वाले करोडो लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे।



4G तकनीक का आगमन हमारी ज़िन्दगी पर गहरा प्रभाव डालने वाला है। जीवन का कोई पक्ष इससे अछूता नहीं रहेगा चाहे शिक्षा का माध्यम हो सरकार की नीतियां, चाहे टेलिकॉम सेक्टर हो या सामाजिक ढांचा सब तरफ  इसके  बहुआयामी असर होंगे। आवश्यकता इस बात की है की लोगों के पास पंहुच रही त्वरित सूचनाएँ उनकी भाषा में पंहुचे ताकि सूचनाओं का आदान प्रदान भी त्वरित हो। 

दुनिया में लगभग ६० करोड़ लोग हिंदी जानते समझते हैं जिसमे ५० करोड़ से ज्यादा भारत में है। विकिपीडिया यह कहता है के हिंदी एक विश्व भाषा बनने की तरफ अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकोंका मानना है के आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। कटु सत्य यह है की जैसे जैसे इन्टरनेट अपने पावं फैला रहा है और जिस रफ़्तार से इन्टरनेट पर हिंदी भाषा पढने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है उस हिसाब से हिंदी भाषा में सृजन और लेखन नहीं हो रहा। तकनीक सम्बन्धी लेखन की हालत तो और खस्ता है।

समय आ गया है जब विश्वजाल पर हिंदी लेखन को गंभीरता से लिया जाए और सृजन को बढ़ावा दिया जाये। हिंदी को नीरस अनुवादकों के चंगुल से निकालना भी एक चुनौती है जो हमारे सामने मुंह बाए खड़ी है। आइये विकिपीडिया के निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करते हुए हिंदी लेखन की परंपरा की नयी शुरुआत का शंखनाद करें जहाँ तकनीक की पेचीदगी को अपनी भाषा में सरलता से आम जन तक पंहुचाया जा सके :


"हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति

हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि - 

 - संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है
 - वह सबसे अधिक सरल भाषा है
 - वह सबसे अधिक लचीली भाषा है
 - वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं
 - वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है
 - हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।
 - हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्दरचनासामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं      अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि  
 हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
 - हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।
 - हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।
 - हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मुहताज नहीं रही।"

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

तकनीक का तड़का

दसवीं कक्षा में एक श्लोक पढ़ा था जिसमे यह समझाने का प्रयास किया गया था के मनुष्य को पहले निश्चित की तरफ देखना चाहिए, अनिश्चित तो अनिश्चित ही रहने वाला है:
     
     यो ध्रुवानि परितज्य अध्रुवानी निषेवते।
     ध्रुवानि तस्य नश्यन्ति, अध्रुवम नष्टमेव हि।।

आधुनिक जीवन और खास तौर से आज के तकनीक पर आधारित जीवन को अगर उपरोक्त श्लोक की तराजू पर तोला जाए तो एक बदलाव जो स्पष्ट दिखता है वो है निश्चितता और अनिश्चितता के बीच की धूमिल होती  दूरी। हर पखवाड़े बदल रही मोबाइल की दुनिया ने बदलाव की एक नयी परिभाषा गढ़ने का संकेत दिया है। बेहतर तकनीक का आना इसका सकारात्मक पहलू है वहीँ सहज ही दिग्भ्रमित हो जाना इसका नकारात्मक संकेत। भविष्य का आकलन तिमाहीयों में करके हम किस तरफ जा रहे हैं इसका जवाब अभी मिलना कठिन है लेकिन इस त्वरित बदलाव की दुनिया को इसके दुष्परिणामों से भी सतर्क रहना होगा।

आइये दर्शन दीर्घा से आगे बढे और देखें की मोबाइल ने कितनी नयी संभावनाओं को हवा दी है।लन्दन स्थित इनफोर्मा टेलिकॉम के हाल के सर्वेक्षण की अगर माने तो इसी साल के आखिर तक भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या १.१५ बिलियन से ऊपर हो जाएगी और इस तरह चीन को पटखनी देते हुए हम दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल बाज़ार बन जायेंगे। अब भला इस बहती गंगा में कौन सी कंपनी अपना हाथ गीला करने से बाज आएगी? इसका सीधा असर यह हुआ है भारत आज मोबाइल बाजार का केंद्र बिंदु बना बैठा है।

मोबाइल तकनीक की संभावनाओं की अगर हम बात करें तो यह तय है की आने वाले महीनों में इस पर हमारी निर्भरता और बढ़ जायेगी। 4G तकनीक जो धीरे धीरे अपने पाँव पसारने वाला है के आगमन के पश्चात बड़ी डाटा का ट्रान्सफर त्वरित और आसान हो जाएगा जिसके फलस्वरूप सूचनाओं का आदान प्रदान भी अत्यंत तीव्र और प्रभावशाली हो जाएगा। आम ज़िन्दगी पर इसका बड़ा गहरा प्रभाव पड़ेगा, रिच मीडिया जैसा के तस्वीर, विडियो, बड़े ऑनलाइन फाइल्स इत्यादि को ट्रान्सफर करने के लिए एक्सटर्नल हार्डवेयर ढोने की बातें पुरानी पड़ जाएगी। एक और सुखद बात यह होगी के डाटा स्टोरेज की आज की पद्दति में भी आमूलचूल बदलाव आ जाएगा। मेघ संगणना (cloud computing) यह सम्भव कर देगा की आप हमेशा अपने डाटा अथवा सूचना से जुड़े रहेंगे और इससे जुड़ने का सबसे सरल माध्यम मोबाइल होगा। यह समझना भी अब मुश्किल नहीं है के दफ्तर के काम काज बड़े पैमाने पर और बड़ी सहजता के साथ मोबाइल की समुन्नत तकनीक के द्वारा सम्भव हो जाएगा।

हमें इस बात के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा की बड़ी सुविधाएं लेकर आती इन तकनीकों के साथ बड़ी समस्याएँ भी आएँगी। मसलन डाटा को सुनियोजित करना एक बड़ी कठिनाई होगी, डाटा की सुरक्षा, सूचनाओं के महाजाल में कौन सी सूचनाएं हमारे काम की हैं यह समझना आसान नहीं होगा। इसकी गंभीरता शायद अभी हमें पता नहीं चल पा रही लेकिन यकीन मानिए बड़ी डाटा (Big Data) जिसकी परिकल्पना लगभग एक दशक पहले की गयी थी इतनी बड़ी दुविधाओं का पिटारा खोलेगा के सबकुछ गड-मड हो जाएगा। बिग डाटा क्या है इसके विषय में हम अगले ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करेंगे।

मोबाइल तकनीक जितनी तेजी से अपने रूप बदल रहा है इससे यह बात साफ़ हो जाती है  के इस सम्बन्ध में बहुत दूर की भविष्यवाणी सम्भव नहीं। लेकिन वर्तमान में हो रहे बदलाओं के आधार पर अगले कुछ तिमाहियों के सम्बन्ध में अटकलें जरूर लगाईं जा सकती है।