गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

कैसे दूर हो एंड्राइड कि सुस्ती?

तमाम बातों के बीच एंड्राइड तकनीक कि सुई जहाँ आकर अटक जाती है वह है इसकी सुस्ती। अगर आप एंड्राइड का इस्तेमाल कर रहे हैं तो मेरी बात आपको दुखते रग पर हाथ रखने वाला लगेगा। घबडाइये मत हर मर्ज़ का इलाज मनुष्य का फितूर से भरा मिजाज़ ढूंढ ही लेता है और मुझे भी इसका काट मिल गया है जिसे मै आपके साथ शेयर करने वाला हूँ. 

मेरा सहकर्मी और मै दोनों ही इत्तेफ़ाक़ से एंड्राइड फ़ोन यूज़ करते हैं और दोनों ही काफी परेशान थे अब इस फ़ोन का क्या करें जो चलने से साफ़ मना कर देता है. पिछले रविवार को उसने बताया के उसने कुछ कारगुजारी कि है और उसका फ़ोन अब बिलकुल दुरुस्त हो गया है.  आवश्यकता आविष्कार कि जननी है, किसी ने सही कहा है.

मैंने अगले ही दिन अपने फ़ोन को रिसेट करने कि ठान ली. जो मैंने किया उसका क्रमबद्ध विवरण इस प्रकार है:

एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है अपने पूरे डेटा को या तो डेटा कार्ड  या अपने कंप्यूटर पर ट्रान्सफर कर लें, जिससे डेटा लॉस कि सम्भावना न रहे. हालाँकि अगर आप इंटरनेट का इस्तेमाल अपने फ़ोन पर करते हैं तो अपने गूगल अकाउंट पर भी इसका बेक उप ले सकते हैं.

फ़ोन रिसेट करने से कम से कम तीन-चार घंटे पहले आप

१. अपने फ़ोन के मेनू में जाकर सेटिंग्स में जाएँ
सेटिंग्स सिंबल 
२. यहाँ स्क्रीन के सबसे ऊपरी हिस्से में एकाउंट्स विकल्प दिखेगा उसे क्लिक करें


३. एकाउंट्स स्क्रीन पर आपको बैकअप एंड रिसेट विकल्प दिखेगा उसे क्लिक करें
४. इस स्क्रीन पर "बैकअप माय डेटा" और "आटोमेटिक रिस्टोर" को ऑन कर दें:


५. इसको ऑन करने के बाद इंटरनेट ऑन रखे और चार पांच घंटे तक इन्तेजार करें। इस दौरान आपका फ़ोन आपके डेटा का बैकअप तैयार करता रहेगा और आप फ़ोन को सामान्य तरीके से इस्तेमाल कर सकेंगे।

६. अब आपका बेक तैयार हो गया है और आपने सेफ रहने के लिए अपने डेटा का ट्रान्सफर भी मेमोरी कार्ड या फिर अपने कंप्यूटर पर ट्रान्सफर कर लिया है. अब फ़ोन को स्विच ऑफ करें और डेटा कार्ड को फ़ोन से बाहर निकाल लें.

७. फ़ोन दुबारा ऑन करें और फिर "बैकअप एंड रिसेट" स्क्रीन पर जाएँ। यहाँ स्क्रीन के सबसे नीचे आपको "फैक्ट्री डेटा रीसेट" आप्शन मिलेगा उसे क्लिक करें। यह आपको दूसरे स्क्रीन पर ले जाएगा आप वहाँ "रिसेट डिवाइस" को क्लिक करें।


८. फ़ोन अब अपने सारे फाइल्स को मिटाना शुरू करेगा और ५-१० मिनट में दुबारा ऑन हो जायेगा। ध्यान रखें फ़ोन ऑन होने और उसके लगभग आधे एक घंटे तक फ़ोन का इंटरनेट ऑन रखें ताकि बैकअप सक्रिय होकर फ़ोन आपके फाइल्स को पुनः फ़ोन पर ला सके.

अब आपका फ़ोन बिलकुल तैयार है- पहले कि तरह तेज़ और तत्पर!

आशा करता हूँ यह जानकारी आपके काम आये. कोई असुविधा हो तो मुझे जरूर लिखें।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

एंड्राइड क्यों?


समझौतों का दौर ख़तम हो रहा है और दुनिया खुली हवा मे सांस लेने के लिए तैयार है. अंतरजाल कि बढ़ती प्रासंगिकता इस बात का द्योतक है के खुलेपन के इस दौर में बंद दरवाज़ों कि खैर नहीं। एंड्राइड तकनीकी खुलेपन कि  एक महत्वपूर्ण कड़ी है जिसने मोबाइल को एक मामूली संचार संयंत्र से ऊपर उठा कर एक अनंत सम्भावनावों वाली मशीन के रूप में विकसित करने में अपना योगदान दिया है. यह एकलौता प्रयास नहीं है, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट सरीखी कम्पनियां भी इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं लेकिन एंड्राइड ने जितने कम समय में जितनी पैठ बनायी है यह एक उदाहरण है. इस त्वरित विकास कि अगर छानबीन करें तो जो सबसे रोचक बात निकल कर आती है वो है एंड्राइड का ओपन सोर्स तकनीक होना।  मतलब यह कि एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट कि तरह यह बंद दरवाज़ो कि ग़ुलाम नहीं इसका इस्तेमाल कोई भी कर सकता है इतना ही नहीं इस तकनीक में कोई भी जानकार अपने हिसाब से परिवर्तन कर सकता है.

मैं पिछले एक साल से एंड्राइड फ़ोन का उपयोग कर रहा हूँ और खुश हूँ. एंड्राइड आज १ अरब से भी ज्यादा मोबाइल और टेबलेट्स कि आधारभूत तकनीक है. आइये एंड्राइड कि कुछ खूबियों के बारे में जाना जाए:


१. वेब ब्राउज़र : एंड्राइड फोन्स पे इंटरनेट ब्राउज़िंग सबसे आसान है. क्रोम V8 और ब्लिंक जैसी तकनीके एक साथ काम करके इसके वेब से जुड़ने कि क्षमता को बढ़ाते हैं और आपको मिलता है एक शानदार अनुभव

२. मल्टी टच : हालाँकि एप्पल ने इस तकनीक में महारत हासिल कर रखी है और इसे अपने नाम पेटेंट भी करा रखा है लेकिन तमाम पेचीदगियों के बावजूद जो मल्टी टच का अनुभव एंड्राइड देता है वह बेमिसाल है

३. मल्टी लैंग्वेज सपोर्ट : एंड्राइड लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय भाषाओँ में आपकी मदद कर सकता है.

४. मीडिया सपोर्ट : एंड्राइड तमाम तरह के मीडिया फाइल्स को सपोर्ट करके आपका काम आसान बनाता है.  विंडोज और एप्पल कि तरह इसमे संकीर्ण सीमा निर्धारण नहीं है.

५. एक्सटर्नल सपोर्ट : आप किसी भी तरह के माइक्रो कार्ड या हार्ड डिस्क या फिर क्लाउड स्टोरेज को एंड्राइड के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है. ड्रॉपबॉक्स जैसी क्लाउड स्टोरेज वेब साईट से आप अपने फ़ोन को इन सिंक कर सकते हैं इससे फायदा यह होगा के आप कोई भी फ़ाइल या फ़ोटो स्वतः ही फ़ोन से क्लाउड स्टोरेज पर भेज सकते है और अपनी फ़ोन मेमोरी कि खपत को रोक सकते हैं.

६. टेथरिंग : आप एंड्राइड २.२ या उससे बाद के वर्शन को आसानी से एक वाई फाई हॉट स्पॉट में तब्दील कर सकते है.

इसके अलावा वो सारी स्टैंडर्ड तकनीक चाहे वह ब्लूटूथ हो स्क्रीन कैप्चर हो या अन्य सब एंड्राइड आपको आसानी से सुलभ कराता है.

खूबियां और खामियां एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और एंड्राइड की खामियों के बारे में बात करना अनवार्य जान पड़ता है. चलिए इन्हे भी जानते हैं:

एंड्राइड कि सुस्ती : जी हाँ! एंड्राइड फ़ोन कि तुलना अगर एप्पल से कि जाए तो जो सबसे रोचक बात सामने आती है वह है एंड्राइड का स्लो होना। जैसे जैसे आप फ़ोन इस्तेमाल करते जाते हैं वैसे वैसे आपका एंड्राइड फ़ोन सुस्त पड़ता जाता है एप्पल के साथ ऐसा नहीं है.

ओपन सोर्स : ओपन सोर्स में तमाम खूबियां हैं लेकिन इससे अवांछित तकनीकों को फ़ोन में आने का मौका मिल जाता है जिससे फ़ोन के ठप्प पड़ने कि सम्भावनाएं बनी रहती है

प्राइवेसी : एंड्राइड से प्राइवेसी कि उम्मीद नहीं कि जा सकती और इसका भी कारण है एंड्राइड का ओपन सोर्स होना।

नकली एप्प्स कि भरमार : एप्प्स जो मैलवेयर के साथ बनाये होते है और जिनका काम आपकी सूचनाओं को शेयर करना होता इनकी एंड्राइड पर कोई कमी नहीं।

अपग्रेड न हो पाना : एप्पल फोन्स में कोई भी नया अपग्रेड स्वतः हो जाता है और यह सबके लिए सामान रूप से काम करता है. एंड्राइड में ऐसा नहीं है, इसके इतने सारे वर्शन बाज़ार में उपलब्ध हैं कि सबको एकरूप बनाना सम्भव नहीं है.

आखिर में जो बात साफ़ निकल कर आती है वो है आप जो उपभोक्ता है, खरीददार हैं, उन्हें क्या चाहिए? एक बहुत फ़ास्ट फ़ोन जिसकी कीमत आसमानी है या फिर एक ऐसा फ़ोन जो सबकुछ बखूबी कर सकता हो और उसके दाम भी कम हों. हाँ! यहाँ थोड़ी सुस्ती से आपको परहेज नहीं होना चाहिए।

image courtesy: flickr.com

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

लैपटॉप खरीदने से पहले क्या जाने … ?

डेस्कटॉप अपना बोरिया बिस्तर समेट कर इतिहास के पन्नों का हिस्सा होने को है. हाल यह है के इसकी बिक्री दुनिया भर में घट रही है और आंकड़े यह साबित कर रहे हैं के भारत में भी अब इसका भविष्य नहीं। इसके साथ एक युग का अंत भी हो जाएगा, भारतीय घरों के ड्राइंग रूम का वो कोना सुन सान हो जाएगा जहाँ शान से पर्सनल कंप्यूटर विराजमान हुआ करता था.

मेरा वास्ता कंप्यूटर से बहुत देर से पड़ा. १९९८ की बात है, उन दिनों मैं कॉलेज में था और हमने दोस्तों के साथ कंप्यूटर सीखने कि ठानी और ऐसा इंस्टिट्यूट चुना जो गर्ल्स होस्टल के बराबर में था. एडमिशन के लगभग ४ दिनों के बाद सभी बैचेस को साथ में बुलाया गया ताकि सबको इकट्ठे कंप्यूटर दिखाया जा सके. अब क्या बताऊँ एक एक चीज़ें सामने लायी जा रही थीं और मंत्र मुग्ध हुआ उन्हें देखता जा रहा था. भला मनुष्य को और क्या चाहिए? यह मशीन मिले और मोक्ष को प्राप्त हो जाए. अगले एक साल तक मैंने बेसिक्स और फॉक्स प्रो सीखा और सोचता रहा के कैसे मेरा भी एक पर्सनल कंप्यूटर हो. 

इस मौके को आते आते कई साल बीत गए. २००८ में मैंने पक्का किया के मैं अब अपना कंप्यूटर खरीद कर ही दम लूँगा और मैंने अपना लैपटॉप खरीदा। लैपटॉप इसलिए कि यह मुझे एक चमत्कारी यन्त्र लगा जिसे आप आसानी से अपने साथ रख सकते थे, बिजली चली भी जाए तब भी यह एकाएक बंद नहीं पड़ता था और सबसे ख़ास बात इससे ऊर्जा कि बचत भी काफी थी. 

लपटॉप कि तकनीक और क्षमता में पिछले छह सालों में बहुत बदलाव आये हैं. विकल्पों कि भरमार है और जरूरत के हिसाब से इनका निर्माण और खरीद-फरोख्त हो रहा है. ऊपर से नित नए विज्ञापनों ने इसको और लोक लुभावन बना दिया है. आम खरीददार के लिए आज लैपटॉप का चुनाव आसान नहीं रह गया है. क्या लें और क्या ना लें इसका असमंजस है के कम होने का नाम नहीं लेता। 

चलिए जानते हैं के कैसे कुछ आधार भूत चीज़ों का ख्याल रखकर आप अपने लिए एक अच्छा लैपटॉप खरीद सकते हैं:

अपनी आवश्यकताओं का आकलन करें:

लॅपटॉप खरीदने से पहले आप यह सुनिश्चित कर लें की आपकी आवश्यकताएं क्या हैं? आपने इंटरनेट चलाना है और माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस पे काम करना है या फिर आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं और आपको फ़ोटो शॉप या कोरेल ड्रा जैसी डिज़ाइन के काम आने वाली सोफ्टवर्स को चलाना है. कहीं आप गेम्स और मूवीज के लिए तो इसे नहीं लेना चाहते?   

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह के आपका बजट क्या है. रोज़मर्रा के साधारण कार्यों के निष्पादन के लिए बहुत ज़यादा पैसे खर्चना चतुराई नहीं होगी। रु ३०, ००० के आस-पास ही आपको अच्छे लैपटॉप मिलने शुरू हो जायेंगे जिससे पर्सनल कंप्यूटर के सारे कार्य बड़ी आसानी से किये जा सकते हैं. 

बैटरी

लैपटॉप का सुविधाजनक होना ही इससे डेस्कटॉप से अधिक लोकप्रिय बनाता है और इसके लिए लैपटॉप के बैटरी का सही होना अत्यंत आवश्यक। एक बार फुल चार्ज होने के पश्चात लैपटॉप की बैटरी अमूमन ४ से ८ घंटे के बीच चलती है. आप इस बात कि गाँठ बाँध लें कि सेल्समैन और विज्ञापन में बतायी गयी बैटरी लाइफ से आपका लैपटॉप दो घंटे कम ही चलेगा। आप अपने लैपटॉप का उपयोग कैसे करते हैं यह भी बैटरी लाइफ के कम या ज्यादा होने को तय करेगा। 


यह जरूर पूछें कि आपके लैपटॉप कि बैटरी में कितने सेल लगे हैं. अमूमन ६ से ९ सेल कि बैटरीज ज्यादा लोकप्रिय हैं. ख्याल रखें जितने ज्यादा सेल होंगे बैटरी कि लाइफ भी उतनी ही अधिक होगी।

आकार और वजन 

सुविधा कि अगर बात चली है तो यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपका लैपटॉप है कितना बड़ा और इसका वजन क्या है. ये दोनों चीज़ें जितनी अधिक होंगी यह उतना ही कम सुविधाजनक होगा। आज अल्ट्राबुक का ज़माना है जहां लैपटॉप्स का वजन दिन प्रतिदिन घटता ही जा रहा है. औसतन २.३ किलो से  शुरू होकर लैपटॉप्स १ किलो तक हलके हो सकते हैं लेकिन लैपटॉप जितना हल्का होगा उसकी कीमत भी उसी हिसाब कि होगी इसका ख्याल रखें।


जहां तक आकार का सवाल है १७ इंच (४३ सेमी) सबसे बड़ा आकर माना जाता है और यह घटता हुआ १३ इंच (३३ सेमी) तक आता है. बाज़ार में इससे कम आकर के लैपटॉप आपको मिलेंगे लेकिन उसके गुणवत्ता को खरीदने से पहले ज़रूर जांचे परखें।  स्क्रीन में पिक्सेलस के बारे में जरूर पूछें वे जितना अधिक होंगे  पिक्चर क्वालिटी उतनी ही अच्छी होगी, हाँ! बैटरी भी उतनी ही ज्यादा खर्च होगी।  

प्रोसेसर और ग्राफ़िक 

आम खरीददार के लिए सही प्रोसेसर का चुनाव एक बड़ी समस्या है और आपके लैपटॉप कि क्षमता का निर्धारण इसी से होता है. प्रोसेसर जितना दमदार होगा आप अधिक से अधिक काम एक साथ अपने लैपटॉप पर सहज ही कर पाएंगे। हर छह महीने में अपग्रेड होने वाले वाली इस तकनीक से सबसे बेहतर का चुनाव कठिन है. आज कि सबसे बेहतर तकनीक कुछ महीनें में ही दोयम दर्जे कि हो जायेगी।  



आसान तरीका यह है कि लैपटॉप खरीदते वक़्त कि जो सबसे समुन्नत तकनीक है उसका चुनाव कर लिया जाये। विंडोज के अधिकांश लैपटॉप्स इंटेल का प्रोसेसर इस्तेमाल करते हैं. i३ से i ५ के प्रोसेसर इंटेल के सबसे अच्छे प्रोसेसर्स में शुमार हैं.  एक और बात, डुअल कोर प्रोसेसर अब पुराने पड़ते जा रहे हैं अतः क्वैड कोर प्रोसेसोर्स का चुनाव करें जो कम ऊर्जा खाकर ज्यादा काम कर पाते हैं. इंटेल के अलावा एमडी के इ सीरीज के प्रोसेसर गेम्स और हैवी ड्यूटी कार्यों के लिए बेहतर बताये जाते है. एप्पल के लैपटॉप्स अपना खुद का प्रोसेसर यूज़ करते हैं जो अपने आप में बहुत अच्छा है.

ग्राफ़िक्स का इस्तेमाल गेम्स और हाई डेफिनिशन कि मूवीज देखने के लिए किया जाता है. ज्यादातर ग्राफ़िक कार्ड्स प्रोसेसोर्स के साथ ही काम करते हैं सुर अलग से ग्राफ़िक कार्ड्स लगाने कि आवश्यकता नहीं पड़ती। आप इसकी मौजूदगी के बारे में पूछताछ जरूर करें।

रैम और स्टोरेज 

यहाँ हम मेमोरी कि बात करेंगे। मेमोरी यानि आपके निर्देशों का पालन आपका लैपटॉप कितनी जल्दी कर पायेगा। एक वर्ष पहले तक १GB रैम ठीक ठाक मना जाता था लेकिन आज आपके लैपटॉप में ४GB रैम का होना अनिवार्य है. 



कुछ सालों पहले तक भारी हार्डडिस्क का ज़माना था लेकिन आज के सिलिकॉन बेस्ड उच्च क्षमता वाले हार्डडिस्कस ने  लैपटॉप कि स्टोरेज को नए आयाम दिए हैं. २५०GB से १TB तक कि स्टोरेज क्षमता वाले किसी भी लैपटॉप का चुनाव आप कर सकते हैं. क्लाउड कंप्यूटिंग और एक्सटर्नल हार्डडिस्क के जमाने में किसी भी हार्डडिस्क के स्टोरेज को बढ़ाना अब मुश्किल नहीं रहा. 

वारंटी और आफ्टर सेल्स सर्विसेज

यह एक ऐसा पहलू है जहां एक मंजे हुए खलाड़ी और एक नौसिखिये खिलाडी कि परख होती है. भरोसेमंद ब्रांड्स कि विस्तृत वारंटी और इसको कवर करने वाले सर्विस सेंटर्स कि संख्या जहाँ उपभोक्ताओं को अपने से जोड़े रखते हैं वहीँ समानता का दवा ठोकने वाले ब्रांड्स कि भी कमी नहीं जिनके लिए सामान बेच देना ही उनका एक मात्र लक्ष्य। लैपटॉप बंद पड़ने पर आप कहाँ संपर्क करेंगे वो आपको कैसी सुविधा दे पाएंगे इससे उनको कोई सरोकार नहीं होता। आप ब्रांड के बारे में जाने, उनके सर्विस सेंटर के बारे में पता करें, वारंटी क्या है और अंतर्राष्ट्रीय वारंटी है या नहीं इस पर बात करें। कई बार कुछ और रकम डकैत वारंट पीरियड को बढ़ाया जा सकता है इसके बारे में भी पता करें।

बड़े स्टोर्स में महंगे इलेक्ट्रॉनिक् संयत्रों का बीमा भी किया जाता है, जिसके बाद अगर आपका लैपटॉप गुम होता है अथवा किसी और तरह से इसकी क्षति होती है तो आपको बीमे कि रकम आसानी से मिल जाती है. इसके बारे में भी पता लगाएं।

थोड़ी सी छान बीन थोड़े सी जांच परख से आप अपने पैसे का बेहतर उपयोग कर एक अच्छे संयंत्र का मज़ा लूट पाएंगे।  

Image courtesy : Flickr.com