सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

टेबलेट क्या है

आपको याद होगा जब आपने पहली दफा टीवी देखा था. अगर आप अस्सी के दसक से रुबरू हो तो त़ाला लगाने योग्य काठ के बक्से में बंद श्वेत श्याम टीवी की बात अब तक आपके जहन में होगी। रामायण और महाभारत देखने की ललक, समय पर बक्से का खुलना और फिर वह आधे पौने घंटे का धारावाहिक जिसके सब दीवाने थे. उस समय हमें यह लगता था के तकनीक ने इतना विकास कर लिया है अब क्या होगा भला. लेकिन इसके बाद भीमकाय रंगीन टीवी का युग आया और तब लगा के बस, अब तो सिनेमा हॉल भी घर पर आ गया. उस समय के टीवी की तुलना आप आज के टीवी की तकनीक से करें जहाँ आपको कांच जितनी पतली, पहले से बेहतर पिक्चर क्वालिटी और रख रखाव मे सुविधाजनक टीवी तब मालूम होता है के हम कितने दूर आ चुके हैं. यह एक अनवरत प्रक्रिया है और आगे बढती रहती है.

कहने का मतलब है आधुनिक मनुष्य का विकास उसके तकनीक के क्रमिक विकास के साथ सीधा जुडा हुआ है. अब टेबलेट को ही लीजिये. सिर्फ पांच साल पहले तक इसका मतलब ऐसी वस्तु से था जिसे अंग्रेजी में खाने वाली औषधि का पर्याय समझा जाता था. तब तक दुनिया के अधिकांश देश टेबलेट पी सी की वास्तविकता से अनाभिज्ञ थे. 

पिछले लगभग २० वर्षों में संगणकों (कंप्यूटर) के बढ़ते महत्व ने इसके विकास की गति को तीव्र बना दिया है. पहला कंप्यूटर जिसको चलाने के लिए एक पूरा कमरा लगता था उसके बाद डेस्कटॉप जहाँ मेजों पे रखकर इसका उपयोग संभव हुआ और कई दसकों तक यह दुनियाभर में अत्यंत लोकप्रिय बना रहा, उसके बाद गोद में लेकर काम करने योग्य कंप्यूटर, जी हाँ लैपटॉप का युग शुरू होता है जो कमो बेस आज भी लोकप्रिय है. अब इसके बाद की कड़ी है टेबलेट जहाँ स्लेट की तरह आप इसका इस्तमाल कर सकते है और सब कुछ स्पर्श से संचालित होता है. 

आइये टेबलेट के बारे में कुछ और जानें:

इस छोटे किन्तु शक्तिशाली मशीन की सबसे बड़ी खासियत है इसका अत्यंत सुविधाजनक होना। इंसान के छूने की शक्ति को और बल देता यह तकनीक यह इन्गीत करता है के संगणकों का भविष्य कैसा होगा। अमेरिका में लगभग ४० प्रतिशत आबादी के पास टेबलेट है इसका प्रसार बड़ी तेज गति से दुनिया के सभी देशों में हो रहा है. स्मार्ट फ़ोन और लैपटॉप के बीच की यह कड़ी दोनों ही तकनीकों को अपने में समाहित किये हुए है. आप इसका इस्तेमाल ऑफिस के काम के लिए कर सकते हो, फ़िल्में देख सकते हो, संगीत का आनंद उठा सकते हो, अंतर्जाल से जुड़ सकते हो और मोबाइल की तरह इससे कॉल किया और रिसीव किया जा सकता है. दूसरी बात के मोबाइल के तरह आप इसे अपने साथ ले जा सकते हो इसकी बैटरी चार्ज कर सकते हो इत्यादि इत्यादि। 

स्टोरेज क्षमता की बात करें तो क्लाउड कंप्यूटिंग से आप लगभग जितनी चाहे उतनी चीजें सेव कर सकते है. सम्मुन्नत कैमरा, स्पीच रिकग्निशन, जीपीएस, वाई फाई, ब्लू टूथ और न जाने कितनी सुविधाएं इसके अन्दर पिरोई गयी हैं.

टेबलेट के दाम रु ३००० से शुरू होकर रु १,००,००० तक हो सकते है. यहाँ यह समझना जरूरी है के आपकी जरूरतें क्या है. विकल्पों की भरमार है और अपनी आवश्यकताओं के हिसाब खरीदने से पहले की जांच परख आवश्यक। आप मेरा ब्लॉग 'टेबलेट खरीदने से पहले क्या जानें' को पढ़ सकते हैं. पढने के लिये यहाँ क्लिक करें .   

 

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

दास्ताने नोकिया

फ़िनलैंड का नाम दुनियाभर में बड़े प्रतिष्ठा से इसलिए लिया जाता है की उसकी शिक्षा व्यवस्था का कोई जोड़ नहीं है. शिक्षा को रोज़मर्रा के जीवन से ऐसे जोड़ दिया गया है के पढाई के बाद विद्यार्थी नौकरी की तलाश नहीं करते उन्हें पता होता है उन्हें करना क्या है. बहरहाल दूसरा कारण जो इस छोटे से बर्फानी देश को प्रसिद्ध करता है वह है नोकिया। असल में नोकिया का इतिहास फ़िनलैंड के निर्माण से भी पुराना है. कैसे? अब खुद ही देख लीजिये - नोकिया की स्थापना १८६५ में हुई थी और फ़िनलैंड १९१८ में आजाद हुआ. नोकिया बाद में एक ऐसा मोबाइल ब्रांड बना जो एक दशको तक मोबाइल हैंडसेट का पर्याय बना रहा. जिसने १.२ बिलियन लोगों को आपस में जोड़ देने का करिश्मा कर दिखाया। 

लगभग १५० साल पहले एक छोटे से कागज़ और रबर बनाने के कारखाने से इसकी शुरुआत होती है और अपनी उत्पादों से यह लोगों का विश्वास जीतती है. १९१२ तक नोकिया के पास कोई भी इलेक्ट्रॉनिक अनुभव नहीं था लेकिन तकनीक के त्वरित विकास पर नोकिया की नज़र जरूर थी. सत्तर के दसक तक इसने टेली कम्युनिकेशन में अपनी पैठ बना ली थी और १९८७ तक नोकिया यूरोप में टीवी का तीसरा सबसे बड़ा निर्माता बन चुका था. इसी साल उसने काफी मशक्कत के बाद अपना पहला मोबाइल "मोबिरा सिटीमेन" बाज़ार में पेश किया।  ८०० ग्राम वजनी और लगभग साढ़े चार हज़ार यूरो महंगा यह फ़ोन अगले एक दसक तक दुनिया भर के लोगों का दुलारा बना रहा. भारतीय बाजार अभी भी मोबाइल टेलीफोनी से काफी दूर थे.

१९९१ में फ़िनलैंड के प्रधान मंत्री ने दुनिया का पहला GSM कॉल अपने नोकिया फ़ोन से ही किया और उसके एक साल बाद ही नोकिया ने अपना दूसरा मॉडल बाज़ार में पेश किया - नोकिया १०११ यह सही मायने में एक नया फ़ोन था और इसने मोबाइल हैंडसेट की तकनीक को नयी दिशा दी. पहली बार ये लगा के मोबाइल फ़ोन रोज़मर्रा के इस्तेमाल की वस्तु बन सकती है. नोकिया की लोकप्रियता थी के कमने का नाम ही नहीं ले रही थी. कंपनी ने आनन् फानन में यह विचार किया की उनका अब पूरा ध्यान मोबाइल हैंडसेट की निर्माण पर लगेगा। बाकी के उनके कारोबारों को धीरे धीरे ठिकाने लगा दिया गया. नोकिया की लोकप्रियता का यह आलम था के इसके बिना मोबाइल फ़ोन की कल्पना करना भी मुश्किल लग रहा था. 

इसके बाद फीचर फ़ोन का ज़माना शुरू होता है जहाँ मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल सन्देश (SMS), संगीत, गेम्स के लिए किया जाना शुरू हुआ. यहाँ भी नोकिया ने बाजी मारी। गौर तलब बात यह थी अब सब कुछ इतना आसान नहीं रह गया था. नए ब्रांड और नयी तकनीक ने विकल्पों की भरमार ला दी थी लेकिन नोकिया ने अपने कदम जमाये रखा. फ़रवरी २०११ में माइक्रोसॉफ्ट के साथ नोकिया का पहला करार हुआ और पहली बार नोकिया के विंडोज फोंस को बाजार में उतारा गया. तब तक मोबाइल बाज़ार ने एप्पल फोंस और एंड्राइड फोंस का  स्वाद चखना शुरू कर दिया था और नोकिया को इस बदलते माहौल का अंदाजा देर से हुआ लेकिन हो चुका था. 

बाज़ार में कमाई गयी प्रतिष्ठा अगले कुछ साल तो नोकिया के काम आई लेकिन ताबड़ तोड़ बदलते तकनीक और सैमसंग, एप्पल जैसे प्रतिद्वंदियों ने नोकिया का किला भेदने में कोई कसर नहीं छोड़ा। लुमिया और आशा सीरीज ने भी ज्यादा कमाल नहीं दिखाया और  साल दर साल घाटे को जूझने का परिणाम यह हुआ के न सिर्फ कर्मचारियों को निकाला गया बल्कि हेलसिंकी का नोकिया हेड ऑफिस तक इस बदहाली की बलि चढ़ गये. 

सितम्बर २०१३ में यह ख़बरें आनी शुरू हो गयी थी के माइक्रोसॉफ्ट हो न हो नोकिया को खरीद ले. और यही हुआ, एक दिन खबर आई के माइक्रोसॉफ्ट ने नोकिया का मोबाइल डिवीज़न खरीद लिया है. माइक्रोसॉफ्ट हालांकि यह कहने से बाज नहीं आ रहा के २०१६ तक यह बिज़नस मुनाफे का नहीं हो पायेगा। वही नोकिया जिसने २००७ तक ४० प्रतिशत मोबाइल बाजार पर काबिज था आज यह सिमट कर १५ प्रतिशत रह गया है और स्मार्ट फोंस की हिस्सेदारी तो सिर्फ ३ प्रतिशत। एक ज़माने में नोकिया फ़िनलैंड के GDP का ४ प्रतिशत हिस्सा था जो अब ०.४ प्रतिशत रह गया था. फिन्निश लोगों ने शायद इसके पतन को पढ़ लिया था और वहां की सजग सरकार ने अपना ध्यान दुसरे उद्योगों के विकास की ओर लगा दिया था   

२०१४ तक यह डील पूरी हो जायेगी और नोकिया के लगभग ५००० कर्मचारी एक साथ अपनी कंपनी बदलेंगे। किसके हितों का कितना ख़याल रखा जायेगा यह तो वक़्त ही बताएगा। माइक्रोसॉफ्ट के लिए फ़िनलैंड शायद तीसरा सबसे बड़ा हब हो जाए और यहाँ से फ़िनलैंड एक और नयी शुरुआत करे ऐसा सम्भव है। नोकिया के अधिकारी इस बात को नकार नहीं रहे के कुछ और नया होने वाला है और एक बार फिर एक फिन्निश ब्रांड दुनिया का चहेता बनेगा। पांच में से तीन डिवीज़न न बेचकर नोकिया ने यह जरूर जताया है के पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त! रोविओ एक और बेहद लोकप्रिय फिन्निश ब्रांड जिसने एंग्री बर्ड बनाकर मोबाइल गेम्स को एक नयी परिभाषा दी है साबित करती है  प्रतिभा और सही शिक्षा साथ मिले तो चमत्कारों की अपेक्षा फ़िनलैंड से की जा सकती है.     

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

एप्पल आई फ़ोन ५सी और ५एस - अंगूर खट्टे हैं

लीजिये त्योहारों का मौसम शुरू हो गया. बरसात ने अपना बोरिया बिस्तरा बांधना शुरू कर दिया है और सुबह मे उठना और मुश्किल हो रहा है। सर्दियों की दस्तक साफ सुनाई पड़ने लगी है और हवा मे दशहरे की खुश्बू महसूस की जा सकती है. धान की बोझों का आगमन इस बात का सन्देश दे रहा होता है की खुशिया मनाने के दिन आ गए हैं। हरे पीले धान के पौधों का का बोझ उठाये किसान खुश होकर घरों को लौट रहे होते हैं और नए चावल के मांड की मिठास के बारे में सोच सोच उसके कदम तेज़ होते जाते हैं।

शहर में ऐसा नहीं होता। जिस तरह पूरण मासी और अमावस्या से सरोकार नहीं रहा ठीक वैसे ही नया चावल और नए गेहूं की रोटियों का स्वाद मन भूल सा गया है। यहाँ जीने की सुविधा इतनी ज्यादा है की बदलाव का कोई असर नहीं रह जाता। चीजें अमूमन एक जैसी ही रहती हैं हमेशा। जतन करके यथास्थिति बनाए रखी जाती है। 

आई फ़ोन ५सी और ५एस के बारे में सुनकर खुशफहमी हुई थी की आखिरकार एप्पल ने गरीबों की गुहार सुन ही ली। अब भला इससे सस्ता और इससे अच्छा उपहार आप खुद को क्या दे सकते हैं इस दिवाली। ख़ुशी का बुलबुला तब फूटा जब पता चला भारत अब भी एप्पल की प्राथमिकताओं में से एक नहीं है और भारतवासियों को इसके लिए थोडा और इंतज़ार करना होगा। पर सीमाओं की दुनिया से हम परे हो चुके हैं और कुछ धाकड़ इ कॉमर्स कंपनियां इसे भारतीय उपभोक्ताओं तक पहुचाने से बाज नहीं आ रहीं। दूसरा तरीका यह हो सकता है की आपको मुंबई के मनीष मार्किट जैसी जगह का पता हो। 

सवाल यह है जिस कम कीमत के दावे किये जा रहे थे वह छलावारण जैसा क्यूँ लगता है। पहली बात तो यह की शुरूआती कम कीमत चुकाने के लिए आपको पोस्टपेड प्लान लेना पड़ेगा जिसमे फ़ोन की कीमतें आपसे हर महीने वसूली जायेगी पूरे दो सालों तक। चलिए मान लेते हैं यह कोई आम फ़ोन नहीं एप्पल फ़ोन है और इस तरह लगान वसूलने की उनकी पुरानी प्रक्रिया है। दूसरी बात यह के अगर आप दो साल का करार न करें तब देखिये इसकी कीमत कैसे छलांग लगाती है।

एक और बात आपको नहीं लगता के भारत जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्ट फ़ोन मार्किट वहां इसे इकट्ठे लांच करना चाहिए था। बाकी सभी कम्पनियाँ तो कर रहीं हैं। हमें क्या एप्पल पचता नहीं? 

दिवाली तक आधिकारिक तौर पर लांच हो जाने वाले ये नए एप्पल फ़ोन अब भी आम आदमी के पंहुच से काफी दूर रहेगा। कहा जा रहा है के ५C की कीमत रु. ४९००० और ५S की कीमत होगी रु. ६४००० .  मैंने तो अपनी बगलें झांकना शुरू कर दिया है। 

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