रविवार, 15 जून 2014

लैंडलाइन फोन्स : सब दिन होत न एक समान

ट्रेन में सफर के दौरान जो सबसे अनोखी चीज़ खिड़की से बाहर दिखती थी वह होते थे टेलीफोन के खम्भे और उनके लहरों की तरह बहते नीचे-ऊंचे तार. पंछियों ने अब  शायद नए ठिकाने ढूंढ लिए हैं लेकिन एक ज़माने में उनकी शामें उन्ही टेलीफोन के तारों पर गुजारते देखा है मैंने। टेलीफोन के खम्भे का दरवाजे पर लग जाना मामूली बात नहीं थी तब। तीन महीने की सरकारी महकमे में धक्का मुक्की के बाद सरकारी कृपा बरसने का नाम था लैंडलाइन फ़ोन. समय की  बेवफाई  कहें या भाग का लेख लेकिन लैंडलाइन के घटते महत्व ने उन सरकारी बाबुओं और तकनीक विशेषज्ञों को भी हासिये पर लाकर खड़ा कर दिया है. मुई मोबाइल क्या न कराये?



हमारे घर कभी टेलीफोन नहीं आया क्यूंकि पापा को ये तकनीकी पेशोपेश चोंचले लगते थे और चिट्ठियों और कागज़ के पन्नों में उन्हें ज़्यादा आत्मीयता महसूस होती थी. हमने एक बार मोबाइल ही लिया और लगभग एक दसक से उसी को यूज़ करते आ रहे हैं लैंडलाइन की कभी जरूरत पेश ही नहीं आई. बहुत सारे लोगों की शायद यही कहानी है. 

शुरू में यह लगा था की कॉल रेट्स और बैटरी की निर्भरता शायद मोबाइल फ़ोन का हाल पेजर जैसा कर देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कॉल दरों में बेतहासा कमी आई, मोबाइल फ़ोन सस्ते  हुऐ और सबसे बड़ी बात इसने बहुआयामी संभावनाओं का पिटारा खोल दिया।

विल डाल्टेन ने २०१२ में प्रकाशित अपने लेख में कहा था के अगले पांच साल के अंदर लैंडलाइन फ़ोन्स विलुप्त हो जाएंगे। मुझे लगता है दुनिया उसी ओर अग्रसर है. मोबाइल फ़ोन्स की आसान उपलब्धता ने मानो यकायक ही लैंडलाइन के जमे जमाये खेल को बिगाड़ कर रख दिया है. घर के कोने से आती ट्रिंग ट्रिंग की शानदार आवाज़, चोंगे को शान से थाम कर दूरियां मिटाने वाली इस तकनीक से न सिर्फ शहरी बल्कि ग्रामीण उपभोक्ताओं का मोह भांग हो रहा है.


अब दो तरह के लोग ही लैंडलाइन फ़ोन रख रहे हैं पहले जिनका नंबर बहुत पुराना है और इसके मोह से वे उबर नहीं पा रहे या फिर उनके कारोबार का काम इसके बिना नहीं चल सकता। जिस तरह तमाम नए ऑफिसेस डेस्कटॉप से दरकिनार हो रहे है वह समय दूर नहीं जब लैंडलाइन, कारोबार से भी विलुप्त हो जायेंगे। इतिहास में इस नए पन्ने का जुड़ना लगभग तय है.

आप क्या कहते हैं ?

रविवार, 18 मई 2014

बैटरी का भविष्य

तकनीक हमारी ज़िन्दगी का इस कदर हिस्सा बनते जा रहे हैं की पूछिए मत. आँखे खुली नहीं के मोबाइल आँखे दिखाना शुरू कर देता है और फिर रात ढलने तक करते रहिये इसकी खातिरदारी। कभी इसे पूरी सिग्नल नहीं मिल रहां होता  तो कभी यह बैटरी कम चार्ज होने का रोना रो रहा होता है.जब स्मार्ट फ़ोन खरीदने गया था तब मन में हो रहा था के पूरा लोडेड मोबाइल लेंगे जिसमे सब लेटेस्ट तकनीक ठूस ठूस कर भरे होंगे। किया भी यही. और फिर होता यह है के हम तमाम वह उपाय करते है जिससे बैटरी बची रहे, मोबाइल चलता रहे. मुझे लगता है यह मुश्किल आज सभी मोबाइल खरीदने और उपयोग करने वालों की है. आप क्या  कहते हैं. . .? 

स्मार्ट फ़ोन की तकनीक में बेतहाशा विकास हुआ है लेकिन बैटरी पर उतना काम नहीं हुआ. आज भी एक स्मार्ट फ़ोन दो दिन बिना चार्ज किये काम करता रहे यह मुश्किल है. बैटरी को और समुन्नत बनाया जा सके इसपर अनुसंधान होना भी बड़ा महत्वपूर्ण होता जा रहा है. 
via : wirelessduniya.com
अधिकांश चलत डिवाइस में आज लिथियम आयन बैटरी का उपयोग होता है चाहे वह स्मार्ट फ़ोन हों, टैबलेट हों या फिर डिजिटल कैमरा। इस बैटरी की तकनीक ने ही हमें भारी भरकम निकेल बेस्ड बैटरी से निजात दिलाई है. आज ५ बिलियन से भी ज़्यादा लिथियम आयन बैटरीज हर साल दुनिया भर में बिक रहे हैं. सवाल यह है की हमारी जरूरते बढ़ती जा रही है. प्रतिव्यक्ति तकनीक का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है. बैटरी बेस्ड वाहनों का विकास होना है जिन्हे कम से कम ५०० वाट-ऑवर प्रति किलोग्राम की ऊर्जा चाहिए होगी  और आज की लिथिअम आयन बैटरी १५० वाट-ऑवर प्रति किलोग्राम की ऊर्जा ही दे पा रहे हैं. 

जहाँ तक  लिथियम आयन बैटरी के भविष्य का प्रश्न है, लोग इसपर लगे हैं कंपनियां इसपर बहुत सारा पैसा खर्च कर रहीं हैं. ऐसी बैटरीज जल्दी ही आ जाएंगी जो ज्वलनशील नहीं होंगी।  बैटरीज अधिक शक्तिशाली होंगी और बहुत छोटी हो जाएंगी, अनाज के दानों के बराबर। हो सकता है मैग्नीशियम आयन बैटरीज आज के 
लिथियम आयन बैटरीज की जगह ले ले. क्युंकि मैग्नीशियम आसानी से पाया जाने वाला एक सस्ता संसाधन है और यह ज़्यादा ऊर्जा संचयित कर सकता है. हालांकि इसपर अभी बहुत काम होना बाकी है. 

एक बात तो तय है की बैटरी पर हमारी निर्भरता एक लम्बे अर्से तक बनी रहने वाली है और इनको समुन्नत करने के अलावा ज़्यादा विकल्प उपलब्ध नहीं है. 


शनिवार, 22 मार्च 2014

पासवर्ड : क्या करें, क्या न करें

मेरे एक मित्र हैं जिन्हे अंतरजाल से मोह तो है लेकिन पासवर्ड याद करने का लफड़ा वे पालते नहीं। उनका मानना है की तकनीक को जितना सर चढ़ाओगे परेशानी उतनी ही बढ़ेगी, अब पासवर्ड याद रखने के अलावा दुनिया में और भी काम हैं.  

मेरा यह कहना है के जैसे-जैसे इंटरनेट का मायाजाल हम सबको अपनी चपेट में ले रहा है वैसे- वैसे इस बात कि सम्भावनाएं बढती जा रही है की हमारी सूचनाएं जिन्हे हम इंटरनेट पर बेफिक्री से साझा करते हैं उनका क्या होगा? विज्ञान वरदान और अभिशाप दोनों हैं. आये दिन की घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं के अब सावधान होने का वक़्त आ गया है. "123456" या "password " को अपना पासवर्ड बनाने से हमें परहेज करना ही पड़ेगा।


हाल ही में संपन्न CeBIT, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा हाई-टेक मेला कहा जाता है के दौरान तकनीक के जानकारों ने पासवर्ड सम्बन्धी लापरवाही को व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बताया। इस बात से किसी को इंकार नहीं है के आज कि दुनिया और उसकी पेचीदगी में अनेक पासवर्ड को याद रखना व्यवहारिक नहीं और हम या तो उसे कहीं लिख लेते हैं या जो सबसे आसान पासवर्ड् बन पड़ता उसका चुनाव कर लेते हैं, यह सही नहीं है. साइबर क्राइम कि बढ़ती घटनाओं से हमें सीख लेनी पड़ेगी।

आइये जानें कि कैसे पासवर्ड्स का चुनाव करें और खुद को सुरक्षित बनाए रखें।

क्या करें:

- ऐसे पासवर्ड का चुनाव करें जिसका आसानी से अनुमान न लगाया जा सके. जैसे अपने नाम के शुरआती        अक्षर, 654321, या फिर गाडी या घर नंबर इत्यादि 
- पासवर्ड में बड़े (कैप्स) अक्षर और छोटे (स्माल लेटर्स) अक्षर को मिलाएं, इसके अलावा कुछ अंक और स्पेशल करैक्टर जैसे (@, #, $, %) इत्यादि को भी शामिल करें 
- पासवर्ड को कम से कम आठ अक्षरों का बनाएँ क्युंकि जितना बड़ा आपका पासवर्ड होगा उसका  पता लगाना उतना ही मुश्किल होगा 
- आपका पासवर्ड जितना निरर्थक और रैंडम होगा उतना अच्छा 
- अलग - अलग एकाउंट्स का अलग- अलग पासवर्ड रखें 
- और हाँ! पासवर्ड को एक अंतराल पर बदलना अत्यंत आवश्यक है 

क्या न करें:

- अपना उपनाम अथवा अपने से जुड़ा कोई नंबर जैसे जन्मतिथि इत्यादि को पासवर्ड न बनाएँ 
- अपने लॉग इन नाम को अपना पासवर्ड कत्तई न बनाएँ 
- अपने परिवार के सदस्य का नाम या अपने कुत्ते के नाम को पासवर्ड न बनाएँ 
- 123456, 654321, password दुनिया में सबसे ज़यादा रखे जाने वाले पासवर्ड्स और इनका सबसे ज़यादा दुरूपयोग होता है. साइबर क्रिमिनल्स को सीधा न्योता न भेजें।
- अपना पासवर्ड किसी को भी ना दें और ना ही इसे कहीं लिख कर रखें 

छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर आप अंतरजाल पर सुरक्षित महसूस कर सकते हैं.

बुधवार, 19 मार्च 2014

मोबाइल चार्जर : एक नयी पहल

मोबाइल फ़ोन नयी सम्भावनाओं के संकेत दे रही है. चाहे किसान हो या जवान, गाँव हों या शहर सब इसके रंग में रंगते जा रहे हैं. दुनिया पूरी तरह मुट्ठी में आ चुकी है. समस्या तब हो जाती है जब आपके घर में पांच मोबाइल हों और सबके चार्जर भिन्न हों, आप समझ गए होंगे मैं किस अफरातफरी कि बात कर रहा हूँ. बिजली आयी है कब तक रहेगी इसका ठिकाना नहीं, चार्जर मिल नहीं रहा और मिल भी जाए तो प्लग पॉइंट्स पर कब्ज़ा हो चुका है. इंसान करे भी तो क्या करे. अगर यह लोकसभा चुनाव हों भी जाए तब भी भारत अमेरिका हो जाएगा इसकी गारेंटी तो है नहीं. बिजली कि समस्या चुनाव कि समस्या से परे है.

खूबसूरत बात यह की इस तरह की तमाम समस्याओं के बावजूद मोबाइल फोन्स जिस तरह हमारे जीवन का हिस्सा बनें हैं उससे एक बात साफ़ हो जाती है की इनको चार्ज करने कि समस्या का हल भी ढूंढ ही लिया जाएगा। आइये जाने कि इस विषय में हम कितना आगे बढ़ रहे हैं.   

भवंरजाल
भवंरजाल 
आवश्यकता आविष्कार कि जननी होती है. सौर्य ऊर्जा से चलने वाले चार्जर का सफल परीक्षण हो चुका है और इसके सार्थक होने कि प्रचूर सम्भावनाएं हैं. सूरज कि रौशनी से काम करने वाले ये चार्जर वैसे इलाकों के लिए वरदान साबित होंगे जहां बिजली नहीं है. इससे बहुमूल्य ऊर्जा कि बचत होगी वो अलग. मुझे तो ऐसे चार्जर का बेसब्री से इंतज़ार है.

सोलर चार्जर
सोलर चार्जर 
एक और सार्थक पहल हुई है वह है वायरलेस चार्जिंग। यह एक काफी तेजी से लोकप्रिय हो रही चार्जिंग पद्धति बनती जा रही जिसमे एक छोटे से प्लेटफार्म पर फ़ोन को रख भर देने से डिवाइस चार्ज होना शुरू हो जाता है. कई सारे मॉडलों में या सुविधा आ भी गयी है. हाँ इसका आम होना अभी बाकी है.

Wireless Mobile Charger
वायरलेस मोबाइल चार्जर 
एक जो सबसे सहज उपाय सामने आया है वह सब मोबाइल का समान चार्जर होने कि परिकल्पना। हालाँकि यह परिकल्पना काफी तेज़ी से यथार्थ का जामा पहन रही है और आज आप आसानी से नोकिआ फ़ोन को सैमसंग फ़ोन से चार्ज कर सकते हैं.

मजे कि बात यह है कि इसी १७ मार्च को युरोपीय संघ ने भारी बहुमत से एक बिल पास करते हुए मोबाइल निर्माताओं को यह आदेश जारी किया है कि यूरोप में बेचे जाने वाले सभी मोबाइल फोन्स के चार्जर एक सामान होंगे। कहा जा रहा है कि इससे सिर्फ यूरोप में इलेक्ट्रॉनिक कचरे में सालाना  ५० हज़ार टन से भी ज़यादा कि कमी आएगी।

युनिवर्सल चार्जर
युनिवर्सल चार्जर 
सनद रहे के आज बाज़ार में ३० से भी ज़यादा तरह के मोबाइल चारजर्स का इस्तेमाल हो रहा है. हमारी सरकार को भी कुछ सीखना चाहिए। नहीं ? 

images: flickr

सोमवार, 10 मार्च 2014

नोकिआ की नयी शुरुआत एंड्राइड के साथ

नोकिआ एक्स को लांच करते  नोकिआ इंडिया के मैनेजिंग मैनेजिंग डायरेक्टर  पी. बालाजी, मार्च १०, २०१४  (फ़ोटो : पी टी आई )  
नोकिआ का पहला एंड्राइड फ़ोन आज आधिकारिक रूप से भारतीय बाज़ारों में लांच कर दिया गया है. इसकी कीमत भी रु ८,५९९ रखी गयी ताकि एक बड़ा वर्ग इसका खरीददार बन सके. वर्ल्ड मोबाइल कांग्रेस में इसकी चर्चा तो थी लेकिन इतनी जल्दी यह भारतीय बाज़ारों का रुख करेगी इसका अंदाजा नहीं था  वह भी वर्ल्ड मोबाइल कांग्रेस में इसकी घोषणा के केवल कुछ सप्ताह के बाद.

नोकिआ एक्स एक ४ इंच का डुअल सिम फ़ोन है, जिसमे ४ इंच का स्क्रीन,  1 GH का डुअल कोर प्रोसेसर, 512 रैम, 3 मेगापिक्सेल कैमरा और 1500 mAh कि बैटरी लगी है.

देखने वाली बात यह होगी के नोकिआ अपने इस एंड्राइड फ़ोन को आशा और लुमिआ सीरीज जो विंड़ोस बेस्ड स्मार्ट फ़ोन है को कैसे साथ साथ बेच पाती है.

रु 10,000 में उपलब्ध दस स्मार्ट फ़ोन - II

पिछली बार जब मैंने इसी शीषर्क से (रु 10,000 से कम दामों में उपलब्ध दस स्मार्ट फ़ोन) लेख लिखा था तब से अब परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं. स्मार्ट फ़ोन की तकनीक बेहतर हो गयी है और मूल्यों में काफी गिरवाट आयी है. इतना ही नहीं आज 3G कि बढ़ती लोकप्रियता ने स्मार्टफोन्स कि महत्ता को और बढ़ा दिया है. अंतरजाल से जुड़ने कि चाह और टच स्क्रीन कि सुविधा ने पुराने पड़ रहे फीचर फोन्स का तो जैसे बेडा ही गर्क कर दिया है. 

नयी नयी कमपनियों के नए लुभावने उत्पादों ने उपभोक्ताओं कि मुश्किलों को बढ़ा रखा है. क्या लें क्या नहीं, समझ नहीं आ रहा. चलिए हम आपकी दुविधा को थोडा कम करने का प्रयास करते हैं और पांच ऐसे फोन्स के बारे में आपको बताते हैं जो रु १०,००० से कम में भारतीय बाज़ारों में उपलब्ध है:

१. सैमसंग गैलेक्सी एस डुओस २ :  सैमसंग कि विश्वसनीयता कम होने का नाम नहीं ले रही और उनके डुओस सीरीज की तूती अब भी बोल रही है. गैलक्सी एस डुओस में वो सारी खूबियां हैं जो एक अत्याधुनिक स्मार्ट फ़ोन में होनी चाहिए।
samsung s duos 2

जहाँ तक इसकी फीचर कि बात है यह एक ४ इंच का बेहतरीन फ़ोन है जिसमे एंड्राइड 4.2 जेली बीन, डुअल कोर प्रोसेसर, 5 मेगापिक्सेल कैमरा, 4 GB कि इंटरनल मेमोरी, 64 GB कि एक्सपेंडेबल मेमोरी के साथ आपको मिलता है 768 MB रैम और 1500 mAh का पावरफुल बैटरी। इसकी कीमत है रु 9,520.    

२. नोकिआ लुमिआ 525 :  लुमिआ सीरीज ने नोकिआ कि लाज रख ली है. माइक्रोसॉफ्ट के अधिग्रहण के बाद नोकिआ ने अपने प्रोडक्ट्स को संवारने में और मेहनत कि है ताकि उसकी शाख बनी रहे. लुमिआ 525 नोकिआ की एक समुन्नत पेशकश है.


लुमिआ 525 भी एक 4 इंच कि सुपर सेंसिटिव मास्टर पीस है जिसकी इंटरनल स्टोरेज कैपेसिटी है 8 GB और माइक्रो कार्ड से आप इसकी क्षमता 64 GB तक बधाई जा सकती है. इसमें 5 मेगापिक्सेल का ऑटो फोकस कैमरा लगा है. बाकी कि सारी समुन्नत सुविधाएं इसमें बखूबी उपलब्ध है. इस फ़ोन कीमत रु 10,000 है.

३. माइक्रोमैक्स पॉवर A 96 : भारत की दूसरी सबसे बड़ी स्मार्ट फ़ोन निर्माता कंपनी बन जाने के बाद माइक्रोमैक्स ने भारतीय बाज़ारों को स्मार्ट फोन्स से पाट दिया है. कम कीमत और बेहतर गुणवत्ता वाले इनके फ़ोन एक बड़े वर्ग को लुभाने में कामयाब रहे हैं.

फ़रवरी 2014 के दूसरे सप्ताह में बिना किसी हल्ले गुल्ले के लांच किया गया इस फ़ोन कि कीमत रु 9,900 रखी गयी है. जो एक बात इसे भीड़ से अलग रखती है वह है इसकी अत्यंत पावरफुल 4000 mAh कि बैटरी। अन्य सुविधाओं कि अगर बात करें तो क्वैड कोर प्रोसेसर के साथ इसमें 512 MB का रैम लगा है. ५ इंच का एक औसत लगने वाला स्क्रीन है, 5 MP का कैमरा है और कमोबेस सभी आम फीचर्स उपलब्ध है.

४. लेनोवो आईडिया A706 : जी हाँ! स्मार्ट फ़ोन के गर्माते बाज़ार पर नए नए निर्माता अपना भाग्य आजमा रहे हैं. लेनोवो जो एक धाकड़ कंपनी होते हुए स्मार्ट फोन्स कि दुनिया में अपना स्थान नहीं बना पा रही थी इसने फिर से कमर कास ली है और दूसरी पारी कि धमाकेदार शुरुआत कर दी है.


आइये इस फ़ोन के फीचर्स को जाने : लैपटॉप बनाने कि इस अग्रणी कंपनी ने एक अच्छा फ़ोन बाज़ार में पेश लिया है. 4. 5 इंच कि स्क्रीन और 1 GHz प्रोसेसर इसे एक फ़ास्ट फ़ोन बनाती है. इसका बढ़िया 1 GB रैम गति को बढ़ाने में मदद करता है. इसमें 5 मेगापिक्सेल स्टैण्डर्ड कैमरा और 2000 mAh बैटरी लगी है. बाज़ार में इसकी कीमत रु 9,500 बतायी जा रही है.

५. जोलो क्यू 700एस : जोलो एक और भारतीय स्मार्ट फ़ोन निर्माता कंपनी जो काफी समय से अपनी पहचान बनाने के लिये प्रयासरत थी उसके उत्पादों को न सिर्फ खरीददार मिलने शुरू हो गए हैं बल्कि उपभोक्ताओं के बीच एक गहरी पैठ बनायी है.


जनवरी २०१४ में लांच किया गया यह फ़ोन रु 9,999 में भारतीय बाज़ारों में उपलब्ध है. 4.5 इंच स्क्रीन और एंड्राइड 4.2 जेली बीन, क्वैड कोर प्रोसेसर और 1 GB रैम के साथ इसमें 8 मेगापिक्सेल कैमरा है. यह एक आकर्षक तथा सम्मुन्नत फ़ोन है जिससे स्मार्ट फोन्स के सारे काम आसानी से किये जा सकते हैं.

शनिवार, 1 मार्च 2014

एंड्राइड एप्प्स की दुनिया


"बिन एप्प्स सब सून" जी हाँ अगर आपके पास स्मार्ट फ़ोन या टेबलेट है और आप एप्प्स से अनभिज्ञ हैं तब आपने क्या स्मार्ट फ़ोन यूज़ किया।  रुझान यह है कि धीरे धीरे मनुष्य अपने सारे कार्यों का निष्पादन एप्प्स के जरिये ही किया करेगा। आपने खाना खाया या नहीं इसे जानने के लिए एक अप्प, आपने नहाया के नहीं इसके लिए दूसरा अप्प। हर माह कमोबेस ५० हज़ार नए एप्प्स एंड्राइड एप्लीकेशन पर जोड़े जा रहे है और फ़रवरी के अंत तक इनकी कुल संख्या ११ लाख से भी अधिक हो जायेगी। कमाल कि बात है, नहीं!?

कुछ ही समय पहले तक एप्पल एप्प्स कि दुनिया का बादशाह हुआ करता था लेकिन एंड्राइड कि बढ़ती लोकप्रियता ने इसको अब काफी पीछे छोड़ दिया है.

आइये पाँच ऐसे एप्प्स के बारे में जानें जो हम भारतीयों को ज़यादा रास आयेंगे:

. Sygic India (सिगिक इंडिया): घूमने फिरने कि जब बात आती है तो एक बात साफ़ है के गूगल मैप का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। चाहे वह रास्ता ढूंढने का काम हो या रेस्तरां ढूंढने का गूगल मैप से बेहतर विकल्प नहीं। सिगिक (Sygic India) ने गूगल मैप्स को नए ढंग से पेश करते हुए अपने देश के लोगों कि आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस अत्यंत लोकप्रिय एप्प को लुन्छ किया था. आप इसकी जानकारी यहाँ क्लिक करके ले सकते हैं : http://bit.ly/1dMm19P
Sygic India
. True Caller (ट्रू कॉलर): आपको कॉल किसने किया है यह जानना हमेशा से कौतुहल का विषय रहा है ख़ास तौर पे जब वास नंबर आपके मोबाइल में सेव हो. इसका हल ट्रू कॉलर अप्प ने ढूंढ निकाल लिया। आप बस इस फ्री अप्प को गूगल प्ले से डाउनलोड करें और इसकी सुविधाएं लेनी शुरू कर सकते हैं. इसके बारे में ज़यादा पढ़ने कि लिए यहाँ क्लिक करें: http://bit.ly/1gIXkgO
True Caller
. Zomato (जोमाटो) :  यह फ्री अप्प उनके लिए है और मोटे तौर पर शहरी उपभोक्ताओं को रास आएगी के द्वारा आप नज़दीकी रेस्तरां के बारे जान सकते हैं बल्कि तुरंत आर्डर से लेकर बुकिंग तक कर सकते हैं. कौन सा रेस्तरां लोगों को पसंद आया इसके बारे में आप उपभोक्ताओं कि राय जान सकते हैं. इसके बारे में यहाँ पढ़ें : http://bit.ly/1fQQoAb
Zomato
. Temple Run (टेम्पल रन) : अगर आप गेम्स का मज़ा लेना चाहते हैं तो इससे अच्छा अप्प को शायद ही मिले। अच्छी बात यह है के इसके फ्री वर्शन भी अत्यंत रोचक और प्रभावशाली हैं. इस बात का ध्यान रखें कि आपके मोबाइल का रैम पर्याप्त हो, और डिस्प्ले कि क्षमता अच्छी हो वर्ना यह आपके डिवाइस को स्लो कर सकता है और बिना अच्छे स्क्रीन के आप इसका पूरा मज़ा नहीं लूट सकते। इसके बारे में यहाँ जानें: http://bit.ly/1oe73yq
Temple Run
. India Newspapers (इंडिया पेपर्स) : मैं इस अप्प को पिछले एक साल से इस्तेमाल कर रहा हूँ और इसकी सबसे ख़ास बात है कि आपको इंडिया के लगभग सारे महत्वपूर्ण अखबार एक जगा ही पढ़ने को मिल जायगा वह भी लगभग सभी भारतीय भाषाओँ में. इसका लिकं यह हैhttp://bit.ly/1kC6C0q 
India Newspapers
अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत कराएं।

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

कैसे दूर हो एंड्राइड कि सुस्ती?

तमाम बातों के बीच एंड्राइड तकनीक कि सुई जहाँ आकर अटक जाती है वह है इसकी सुस्ती। अगर आप एंड्राइड का इस्तेमाल कर रहे हैं तो मेरी बात आपको दुखते रग पर हाथ रखने वाला लगेगा। घबडाइये मत हर मर्ज़ का इलाज मनुष्य का फितूर से भरा मिजाज़ ढूंढ ही लेता है और मुझे भी इसका काट मिल गया है जिसे मै आपके साथ शेयर करने वाला हूँ. 

मेरा सहकर्मी और मै दोनों ही इत्तेफ़ाक़ से एंड्राइड फ़ोन यूज़ करते हैं और दोनों ही काफी परेशान थे अब इस फ़ोन का क्या करें जो चलने से साफ़ मना कर देता है. पिछले रविवार को उसने बताया के उसने कुछ कारगुजारी कि है और उसका फ़ोन अब बिलकुल दुरुस्त हो गया है.  आवश्यकता आविष्कार कि जननी है, किसी ने सही कहा है.

मैंने अगले ही दिन अपने फ़ोन को रिसेट करने कि ठान ली. जो मैंने किया उसका क्रमबद्ध विवरण इस प्रकार है:

एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है अपने पूरे डेटा को या तो डेटा कार्ड  या अपने कंप्यूटर पर ट्रान्सफर कर लें, जिससे डेटा लॉस कि सम्भावना न रहे. हालाँकि अगर आप इंटरनेट का इस्तेमाल अपने फ़ोन पर करते हैं तो अपने गूगल अकाउंट पर भी इसका बेक उप ले सकते हैं.

फ़ोन रिसेट करने से कम से कम तीन-चार घंटे पहले आप

१. अपने फ़ोन के मेनू में जाकर सेटिंग्स में जाएँ
सेटिंग्स सिंबल 
२. यहाँ स्क्रीन के सबसे ऊपरी हिस्से में एकाउंट्स विकल्प दिखेगा उसे क्लिक करें


३. एकाउंट्स स्क्रीन पर आपको बैकअप एंड रिसेट विकल्प दिखेगा उसे क्लिक करें
४. इस स्क्रीन पर "बैकअप माय डेटा" और "आटोमेटिक रिस्टोर" को ऑन कर दें:


५. इसको ऑन करने के बाद इंटरनेट ऑन रखे और चार पांच घंटे तक इन्तेजार करें। इस दौरान आपका फ़ोन आपके डेटा का बैकअप तैयार करता रहेगा और आप फ़ोन को सामान्य तरीके से इस्तेमाल कर सकेंगे।

६. अब आपका बेक तैयार हो गया है और आपने सेफ रहने के लिए अपने डेटा का ट्रान्सफर भी मेमोरी कार्ड या फिर अपने कंप्यूटर पर ट्रान्सफर कर लिया है. अब फ़ोन को स्विच ऑफ करें और डेटा कार्ड को फ़ोन से बाहर निकाल लें.

७. फ़ोन दुबारा ऑन करें और फिर "बैकअप एंड रिसेट" स्क्रीन पर जाएँ। यहाँ स्क्रीन के सबसे नीचे आपको "फैक्ट्री डेटा रीसेट" आप्शन मिलेगा उसे क्लिक करें। यह आपको दूसरे स्क्रीन पर ले जाएगा आप वहाँ "रिसेट डिवाइस" को क्लिक करें।


८. फ़ोन अब अपने सारे फाइल्स को मिटाना शुरू करेगा और ५-१० मिनट में दुबारा ऑन हो जायेगा। ध्यान रखें फ़ोन ऑन होने और उसके लगभग आधे एक घंटे तक फ़ोन का इंटरनेट ऑन रखें ताकि बैकअप सक्रिय होकर फ़ोन आपके फाइल्स को पुनः फ़ोन पर ला सके.

अब आपका फ़ोन बिलकुल तैयार है- पहले कि तरह तेज़ और तत्पर!

आशा करता हूँ यह जानकारी आपके काम आये. कोई असुविधा हो तो मुझे जरूर लिखें।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

एंड्राइड क्यों?


समझौतों का दौर ख़तम हो रहा है और दुनिया खुली हवा मे सांस लेने के लिए तैयार है. अंतरजाल कि बढ़ती प्रासंगिकता इस बात का द्योतक है के खुलेपन के इस दौर में बंद दरवाज़ों कि खैर नहीं। एंड्राइड तकनीकी खुलेपन कि  एक महत्वपूर्ण कड़ी है जिसने मोबाइल को एक मामूली संचार संयंत्र से ऊपर उठा कर एक अनंत सम्भावनावों वाली मशीन के रूप में विकसित करने में अपना योगदान दिया है. यह एकलौता प्रयास नहीं है, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट सरीखी कम्पनियां भी इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं लेकिन एंड्राइड ने जितने कम समय में जितनी पैठ बनायी है यह एक उदाहरण है. इस त्वरित विकास कि अगर छानबीन करें तो जो सबसे रोचक बात निकल कर आती है वो है एंड्राइड का ओपन सोर्स तकनीक होना।  मतलब यह कि एप्पल या माइक्रोसॉफ्ट कि तरह यह बंद दरवाज़ो कि ग़ुलाम नहीं इसका इस्तेमाल कोई भी कर सकता है इतना ही नहीं इस तकनीक में कोई भी जानकार अपने हिसाब से परिवर्तन कर सकता है.

मैं पिछले एक साल से एंड्राइड फ़ोन का उपयोग कर रहा हूँ और खुश हूँ. एंड्राइड आज १ अरब से भी ज्यादा मोबाइल और टेबलेट्स कि आधारभूत तकनीक है. आइये एंड्राइड कि कुछ खूबियों के बारे में जाना जाए:


१. वेब ब्राउज़र : एंड्राइड फोन्स पे इंटरनेट ब्राउज़िंग सबसे आसान है. क्रोम V8 और ब्लिंक जैसी तकनीके एक साथ काम करके इसके वेब से जुड़ने कि क्षमता को बढ़ाते हैं और आपको मिलता है एक शानदार अनुभव

२. मल्टी टच : हालाँकि एप्पल ने इस तकनीक में महारत हासिल कर रखी है और इसे अपने नाम पेटेंट भी करा रखा है लेकिन तमाम पेचीदगियों के बावजूद जो मल्टी टच का अनुभव एंड्राइड देता है वह बेमिसाल है

३. मल्टी लैंग्वेज सपोर्ट : एंड्राइड लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय भाषाओँ में आपकी मदद कर सकता है.

४. मीडिया सपोर्ट : एंड्राइड तमाम तरह के मीडिया फाइल्स को सपोर्ट करके आपका काम आसान बनाता है.  विंडोज और एप्पल कि तरह इसमे संकीर्ण सीमा निर्धारण नहीं है.

५. एक्सटर्नल सपोर्ट : आप किसी भी तरह के माइक्रो कार्ड या हार्ड डिस्क या फिर क्लाउड स्टोरेज को एंड्राइड के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है. ड्रॉपबॉक्स जैसी क्लाउड स्टोरेज वेब साईट से आप अपने फ़ोन को इन सिंक कर सकते हैं इससे फायदा यह होगा के आप कोई भी फ़ाइल या फ़ोटो स्वतः ही फ़ोन से क्लाउड स्टोरेज पर भेज सकते है और अपनी फ़ोन मेमोरी कि खपत को रोक सकते हैं.

६. टेथरिंग : आप एंड्राइड २.२ या उससे बाद के वर्शन को आसानी से एक वाई फाई हॉट स्पॉट में तब्दील कर सकते है.

इसके अलावा वो सारी स्टैंडर्ड तकनीक चाहे वह ब्लूटूथ हो स्क्रीन कैप्चर हो या अन्य सब एंड्राइड आपको आसानी से सुलभ कराता है.

खूबियां और खामियां एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और एंड्राइड की खामियों के बारे में बात करना अनवार्य जान पड़ता है. चलिए इन्हे भी जानते हैं:

एंड्राइड कि सुस्ती : जी हाँ! एंड्राइड फ़ोन कि तुलना अगर एप्पल से कि जाए तो जो सबसे रोचक बात सामने आती है वह है एंड्राइड का स्लो होना। जैसे जैसे आप फ़ोन इस्तेमाल करते जाते हैं वैसे वैसे आपका एंड्राइड फ़ोन सुस्त पड़ता जाता है एप्पल के साथ ऐसा नहीं है.

ओपन सोर्स : ओपन सोर्स में तमाम खूबियां हैं लेकिन इससे अवांछित तकनीकों को फ़ोन में आने का मौका मिल जाता है जिससे फ़ोन के ठप्प पड़ने कि सम्भावनाएं बनी रहती है

प्राइवेसी : एंड्राइड से प्राइवेसी कि उम्मीद नहीं कि जा सकती और इसका भी कारण है एंड्राइड का ओपन सोर्स होना।

नकली एप्प्स कि भरमार : एप्प्स जो मैलवेयर के साथ बनाये होते है और जिनका काम आपकी सूचनाओं को शेयर करना होता इनकी एंड्राइड पर कोई कमी नहीं।

अपग्रेड न हो पाना : एप्पल फोन्स में कोई भी नया अपग्रेड स्वतः हो जाता है और यह सबके लिए सामान रूप से काम करता है. एंड्राइड में ऐसा नहीं है, इसके इतने सारे वर्शन बाज़ार में उपलब्ध हैं कि सबको एकरूप बनाना सम्भव नहीं है.

आखिर में जो बात साफ़ निकल कर आती है वो है आप जो उपभोक्ता है, खरीददार हैं, उन्हें क्या चाहिए? एक बहुत फ़ास्ट फ़ोन जिसकी कीमत आसमानी है या फिर एक ऐसा फ़ोन जो सबकुछ बखूबी कर सकता हो और उसके दाम भी कम हों. हाँ! यहाँ थोड़ी सुस्ती से आपको परहेज नहीं होना चाहिए।

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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

लैपटॉप खरीदने से पहले क्या जाने … ?

डेस्कटॉप अपना बोरिया बिस्तर समेट कर इतिहास के पन्नों का हिस्सा होने को है. हाल यह है के इसकी बिक्री दुनिया भर में घट रही है और आंकड़े यह साबित कर रहे हैं के भारत में भी अब इसका भविष्य नहीं। इसके साथ एक युग का अंत भी हो जाएगा, भारतीय घरों के ड्राइंग रूम का वो कोना सुन सान हो जाएगा जहाँ शान से पर्सनल कंप्यूटर विराजमान हुआ करता था.

मेरा वास्ता कंप्यूटर से बहुत देर से पड़ा. १९९८ की बात है, उन दिनों मैं कॉलेज में था और हमने दोस्तों के साथ कंप्यूटर सीखने कि ठानी और ऐसा इंस्टिट्यूट चुना जो गर्ल्स होस्टल के बराबर में था. एडमिशन के लगभग ४ दिनों के बाद सभी बैचेस को साथ में बुलाया गया ताकि सबको इकट्ठे कंप्यूटर दिखाया जा सके. अब क्या बताऊँ एक एक चीज़ें सामने लायी जा रही थीं और मंत्र मुग्ध हुआ उन्हें देखता जा रहा था. भला मनुष्य को और क्या चाहिए? यह मशीन मिले और मोक्ष को प्राप्त हो जाए. अगले एक साल तक मैंने बेसिक्स और फॉक्स प्रो सीखा और सोचता रहा के कैसे मेरा भी एक पर्सनल कंप्यूटर हो. 

इस मौके को आते आते कई साल बीत गए. २००८ में मैंने पक्का किया के मैं अब अपना कंप्यूटर खरीद कर ही दम लूँगा और मैंने अपना लैपटॉप खरीदा। लैपटॉप इसलिए कि यह मुझे एक चमत्कारी यन्त्र लगा जिसे आप आसानी से अपने साथ रख सकते थे, बिजली चली भी जाए तब भी यह एकाएक बंद नहीं पड़ता था और सबसे ख़ास बात इससे ऊर्जा कि बचत भी काफी थी. 

लपटॉप कि तकनीक और क्षमता में पिछले छह सालों में बहुत बदलाव आये हैं. विकल्पों कि भरमार है और जरूरत के हिसाब से इनका निर्माण और खरीद-फरोख्त हो रहा है. ऊपर से नित नए विज्ञापनों ने इसको और लोक लुभावन बना दिया है. आम खरीददार के लिए आज लैपटॉप का चुनाव आसान नहीं रह गया है. क्या लें और क्या ना लें इसका असमंजस है के कम होने का नाम नहीं लेता। 

चलिए जानते हैं के कैसे कुछ आधार भूत चीज़ों का ख्याल रखकर आप अपने लिए एक अच्छा लैपटॉप खरीद सकते हैं:

अपनी आवश्यकताओं का आकलन करें:

लॅपटॉप खरीदने से पहले आप यह सुनिश्चित कर लें की आपकी आवश्यकताएं क्या हैं? आपने इंटरनेट चलाना है और माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस पे काम करना है या फिर आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं और आपको फ़ोटो शॉप या कोरेल ड्रा जैसी डिज़ाइन के काम आने वाली सोफ्टवर्स को चलाना है. कहीं आप गेम्स और मूवीज के लिए तो इसे नहीं लेना चाहते?   

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह के आपका बजट क्या है. रोज़मर्रा के साधारण कार्यों के निष्पादन के लिए बहुत ज़यादा पैसे खर्चना चतुराई नहीं होगी। रु ३०, ००० के आस-पास ही आपको अच्छे लैपटॉप मिलने शुरू हो जायेंगे जिससे पर्सनल कंप्यूटर के सारे कार्य बड़ी आसानी से किये जा सकते हैं. 

बैटरी

लैपटॉप का सुविधाजनक होना ही इससे डेस्कटॉप से अधिक लोकप्रिय बनाता है और इसके लिए लैपटॉप के बैटरी का सही होना अत्यंत आवश्यक। एक बार फुल चार्ज होने के पश्चात लैपटॉप की बैटरी अमूमन ४ से ८ घंटे के बीच चलती है. आप इस बात कि गाँठ बाँध लें कि सेल्समैन और विज्ञापन में बतायी गयी बैटरी लाइफ से आपका लैपटॉप दो घंटे कम ही चलेगा। आप अपने लैपटॉप का उपयोग कैसे करते हैं यह भी बैटरी लाइफ के कम या ज्यादा होने को तय करेगा। 


यह जरूर पूछें कि आपके लैपटॉप कि बैटरी में कितने सेल लगे हैं. अमूमन ६ से ९ सेल कि बैटरीज ज्यादा लोकप्रिय हैं. ख्याल रखें जितने ज्यादा सेल होंगे बैटरी कि लाइफ भी उतनी ही अधिक होगी।

आकार और वजन 

सुविधा कि अगर बात चली है तो यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपका लैपटॉप है कितना बड़ा और इसका वजन क्या है. ये दोनों चीज़ें जितनी अधिक होंगी यह उतना ही कम सुविधाजनक होगा। आज अल्ट्राबुक का ज़माना है जहां लैपटॉप्स का वजन दिन प्रतिदिन घटता ही जा रहा है. औसतन २.३ किलो से  शुरू होकर लैपटॉप्स १ किलो तक हलके हो सकते हैं लेकिन लैपटॉप जितना हल्का होगा उसकी कीमत भी उसी हिसाब कि होगी इसका ख्याल रखें।


जहां तक आकार का सवाल है १७ इंच (४३ सेमी) सबसे बड़ा आकर माना जाता है और यह घटता हुआ १३ इंच (३३ सेमी) तक आता है. बाज़ार में इससे कम आकर के लैपटॉप आपको मिलेंगे लेकिन उसके गुणवत्ता को खरीदने से पहले ज़रूर जांचे परखें।  स्क्रीन में पिक्सेलस के बारे में जरूर पूछें वे जितना अधिक होंगे  पिक्चर क्वालिटी उतनी ही अच्छी होगी, हाँ! बैटरी भी उतनी ही ज्यादा खर्च होगी।  

प्रोसेसर और ग्राफ़िक 

आम खरीददार के लिए सही प्रोसेसर का चुनाव एक बड़ी समस्या है और आपके लैपटॉप कि क्षमता का निर्धारण इसी से होता है. प्रोसेसर जितना दमदार होगा आप अधिक से अधिक काम एक साथ अपने लैपटॉप पर सहज ही कर पाएंगे। हर छह महीने में अपग्रेड होने वाले वाली इस तकनीक से सबसे बेहतर का चुनाव कठिन है. आज कि सबसे बेहतर तकनीक कुछ महीनें में ही दोयम दर्जे कि हो जायेगी।  



आसान तरीका यह है कि लैपटॉप खरीदते वक़्त कि जो सबसे समुन्नत तकनीक है उसका चुनाव कर लिया जाये। विंडोज के अधिकांश लैपटॉप्स इंटेल का प्रोसेसर इस्तेमाल करते हैं. i३ से i ५ के प्रोसेसर इंटेल के सबसे अच्छे प्रोसेसर्स में शुमार हैं.  एक और बात, डुअल कोर प्रोसेसर अब पुराने पड़ते जा रहे हैं अतः क्वैड कोर प्रोसेसोर्स का चुनाव करें जो कम ऊर्जा खाकर ज्यादा काम कर पाते हैं. इंटेल के अलावा एमडी के इ सीरीज के प्रोसेसर गेम्स और हैवी ड्यूटी कार्यों के लिए बेहतर बताये जाते है. एप्पल के लैपटॉप्स अपना खुद का प्रोसेसर यूज़ करते हैं जो अपने आप में बहुत अच्छा है.

ग्राफ़िक्स का इस्तेमाल गेम्स और हाई डेफिनिशन कि मूवीज देखने के लिए किया जाता है. ज्यादातर ग्राफ़िक कार्ड्स प्रोसेसोर्स के साथ ही काम करते हैं सुर अलग से ग्राफ़िक कार्ड्स लगाने कि आवश्यकता नहीं पड़ती। आप इसकी मौजूदगी के बारे में पूछताछ जरूर करें।

रैम और स्टोरेज 

यहाँ हम मेमोरी कि बात करेंगे। मेमोरी यानि आपके निर्देशों का पालन आपका लैपटॉप कितनी जल्दी कर पायेगा। एक वर्ष पहले तक १GB रैम ठीक ठाक मना जाता था लेकिन आज आपके लैपटॉप में ४GB रैम का होना अनिवार्य है. 



कुछ सालों पहले तक भारी हार्डडिस्क का ज़माना था लेकिन आज के सिलिकॉन बेस्ड उच्च क्षमता वाले हार्डडिस्कस ने  लैपटॉप कि स्टोरेज को नए आयाम दिए हैं. २५०GB से १TB तक कि स्टोरेज क्षमता वाले किसी भी लैपटॉप का चुनाव आप कर सकते हैं. क्लाउड कंप्यूटिंग और एक्सटर्नल हार्डडिस्क के जमाने में किसी भी हार्डडिस्क के स्टोरेज को बढ़ाना अब मुश्किल नहीं रहा. 

वारंटी और आफ्टर सेल्स सर्विसेज

यह एक ऐसा पहलू है जहां एक मंजे हुए खलाड़ी और एक नौसिखिये खिलाडी कि परख होती है. भरोसेमंद ब्रांड्स कि विस्तृत वारंटी और इसको कवर करने वाले सर्विस सेंटर्स कि संख्या जहाँ उपभोक्ताओं को अपने से जोड़े रखते हैं वहीँ समानता का दवा ठोकने वाले ब्रांड्स कि भी कमी नहीं जिनके लिए सामान बेच देना ही उनका एक मात्र लक्ष्य। लैपटॉप बंद पड़ने पर आप कहाँ संपर्क करेंगे वो आपको कैसी सुविधा दे पाएंगे इससे उनको कोई सरोकार नहीं होता। आप ब्रांड के बारे में जाने, उनके सर्विस सेंटर के बारे में पता करें, वारंटी क्या है और अंतर्राष्ट्रीय वारंटी है या नहीं इस पर बात करें। कई बार कुछ और रकम डकैत वारंट पीरियड को बढ़ाया जा सकता है इसके बारे में भी पता करें।

बड़े स्टोर्स में महंगे इलेक्ट्रॉनिक् संयत्रों का बीमा भी किया जाता है, जिसके बाद अगर आपका लैपटॉप गुम होता है अथवा किसी और तरह से इसकी क्षति होती है तो आपको बीमे कि रकम आसानी से मिल जाती है. इसके बारे में भी पता लगाएं।

थोड़ी सी छान बीन थोड़े सी जांच परख से आप अपने पैसे का बेहतर उपयोग कर एक अच्छे संयंत्र का मज़ा लूट पाएंगे।  

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