गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मोबाइल कॉमर्स: एक नयी उड़ान



मोबाइल कॉमर्स की शुरुआत सन 1997 से हो गयी थी जब फ़िनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में कोको कोला ने मोबाइल मेसेज के द्वारा पेमेंट करने की सुविधा अपने स्वचालित दुकानों में कराई। इसी साल मेरिट बैंक ऑफ़ फ़िनलैंड ने भी मोबाइल बैंकिंग के शुरुआत का प्रस्ताव रखा।  


मोबाइल कॉमर्स एक अनोखी पहल 
1998 तक मोबाइल फोंस में डाउनलोड करने की काबिलियत आ गयी थी। सन 2000 तक मोबाइल कॉमर्स नए पायदान चढ़ चुका था जहाँ मोबाइल  ट्रेन टिकट से लेकर मोबाइल पार्किंग पेमेंट तक की बातें आम हो रही थीं। M-कॉमर्स पर पहला पाठ्यक्रम ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय 2003 में शुरू हो जाना एक बड़ा कदम था। इस तरह इस सदी के शुरुआत में ही दुनिया के विकसित देशों ने मोबाइल कॉमर्स एक मजबूत ज़मीन तैयार करनी शुरू कर दी थी। दीगर बात यह थी अभी भी यह समग्र विकास की संभावना से काफी दूर था।

विकासशील देश हमेशा की तरह बड़े अनमने ढंग से इस तकनीक को अपना रहे थे। आशंकाओं और अपेक्षाओं से घिरी सरकारें यह समझ नहीं पा रही थी के इसका स्वागत किया जाए या विकसित देशों की साजिश मान कर पल्ला झाड़ लिया जाए। भारत में उस समय टेलीफोन लाइन की अर्जी देने और फ़ोन का वास्तव में इस्तेमाल करने में कम से कम छः महीने लगते थे। पासपोर्ट बनवाना और फ़ोन कनेक्शन पाना संभ्रांत लोगों के चोंचले थे। हमारे गाँव में दो हज़ार की आबादी थी उस वक़्त, लोगो के पास पैसे भी थे लेकिन कुल मिलकर तीन लैंडलाइन कनेक्शन हुआ करता था। और जिसके पास फोंस थे उनके रिश्ते गाँव के सभी लोगों के साथ आश्चर्य जनक रूप से काफी अच्छे थे। या कहिये रखना पड़ता था। गाँव में एक बार भी फ़ोन इस्तेमाल करने का मौका तो नहीं मिल पाया लेकिन शौक ने घर कर लिया था।


पहली बार जब मैंने फ़ोन किया था उस समय कलकत्ता में था  समझ में नहीं आ रहा था के पप्पा से बात कैसे की जाए अपनी देसी बोली बज्जिका में बात करें या खड़ी हिंदी में। पता नहीं कोई सुन रहा हो तो क्या सोचेगा भला। एक रूपये का फ़ोन किया था और यकीन  मानिए चोगा हिलाने पे चार पांच सिक्के भरभरा के गिर पड़े थे। दोस्तों के साथ हमने वो पैसे उडाये थे। रोमांच था के कम ही नहीं होता था और कई दिन तक हम कम से कम एक बार वहां जाकर लोगो को फ़ोन पर बाते करते देख आते थे। हमारे घर लैंडलाइन फ़ोन कभी नहीं आया। मैंने मोबाइल लिया था 2004 में जब मैं स्नातकोत्तर की पढाई रबिन्द्र भारती विश्वबिद्यालय से कर रहा था। अब इसके क्या मायने थे मेरी ज़िन्दगी में इसकी चर्चा अलग से करनी होगी। 


बहरहाल, सन 1997 में ही भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की भी स्थापना हुई जिसे स्वायत्तता और सुविधा दोनों दी गयी ताकि देशहित को ध्यान में रखते हुए दूरसंचार जैसी संवदनशील 

विभाग की नीतियों को ज्यादा पारदर्शी बनाया जा सके। 


निर्वाण की ओर मोबाइल के साथ 
मार्च 2000 तक सरकार ने इस क्षेत्र को पर्याप्त प्रोत्सान देते हुए 74% तक के विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी। विदेशी निवेश के कारण प्रतिस्पर्धा बढी, कॉल दरों में कमी आनी शुरू हुई और 2001 तक भारत में तीन करोड़ से भी ज्यादा मोबाइल सेट्स की बिक्री हो चुकी थी। आज भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 80 करोड़ से ज्यादा है जो विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक है, वहीँ मोबाइल सेवाओं की दरें दुनिया में सबसे कम है।


मोबाइल एक जनमाध्यम 
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की सफलता पूरी तरह इस बात पर टिकी है के मोबाइल एवं टेबलेट की पँहुच कैसे ज्यादा से ज्यादा बढाई जा सके। इस कोशिश का सीधा असर मोबाइल कॉमर्स की लोक्रियता निर्धारित करेगा। इतने सारे सार्थक कदमो के बावजूद मोबाइल कॉमर्स की वृधि दर अपेक्षा से काफी कम रही है। बोस्टन कंसल्टिंग सरीखे बडे प्रेक्षकों का दावा है की भारत में मोबाइल कॉमर्स की प्रचुर संभावनाएं हैं और पक्के तौर पर इसके द्वारा 2015 तक 4.5 बिलियन डॉलर का कारोबार  होगा। मोबाइल उपयोगी वेबसाइट बनाने वाली अग्रणी कमर्शियल प्लेयर्स में शामिल snapdeal.com के VP-प्रोडक्ट अंकित खन्ना कहते हैं के मोबाइल साईट (msite) बनाने और उसे चलाने में उन्हें काफी परेशानियाँ आईं मसलन उपभोक्ताओं का भरोसा जीतना, क्रेडिट कार्ड की कमी, इन्टरनेट का स्लो होना इत्यादि। लेकिन ये सारी समस्याएँ मूल रूप से इ-कॉमर्स की ही है और रोचक बात यह है के इन सब नकारात्मकता के बावजूद इ-कॉमर्स का विस्तार होता ही चला जा रहा है। 


अंतरजाल 
तकनीक की अगर बात करें तो मोबाइल ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है कंप्यूटर की अपेक्षा और यह माध्यम आज जन माध्यम बन चूका है। इसमें नयी पहल की आवश्यकता है, नए विचारों की जरूरत है, नया दृष्टिकोण चाहिए होगा ताकि जहाँ भरोसे की बात आये वहां भी मोबाइल कॉमर्स खरा  उतरे। 
मोबाइल कॉमर्स: बढ़ता दायरा 
हमारी दिलचस्पी जितनी बढ़ेगी इसका उपयोग भी उतनी जल्दी परवान चढ़ेगा। समग्र विकास का सपना देश इस माध्यम के द्वारा देख सकता है। सरकारी अनुदान जैसी आवश्यक पहल में बिचौलियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। मोबाइल कॉमर्स और मोबाइल बैंकिंग के द्वारा इसपे अंकुश लगाया जा सकता है।
भविष्य की चाबी 
ब्रॉडबैंड और अंतरजाल की सुविधा अबतक देश के ज्यादातर हिस्से में नहीं पंहुच पायी है लेकिन यह समस्या मोबाइल के साथ नहीं है। 21वीं सदी में हमारा भविष्य बहुत कुछ मोबाइल और इससे जुडी तकनीकों से जुडा रहेगा।

आइये रिकैप करें मोबाइल की लोकप्रियता और उसकी पंहुच को एक इन्फोग्रफिक के जरिये। नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें: मोबाइल की लोकप्रियता 2012.
  

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