रविवार, 24 फ़रवरी 2013

मेगापिक्सेल की माया

जबसे डिजिटल कैमरों का युग आया है मेगापिक्सेल्स को कैमरे की गुणवत्ता का आधार बना कर पेश किया जाता रहा है। एक 3 मेगापिक्सेल कैमरा 2 मेगापिक्सेल से ज्यादा अच्छा इत्यादि। अच्छा कैमरा होने का सीधा मतलब है ज्यादा मिगापिक्सेल होना। हम उपभोक्ताओं के मन में घर कर चुकी यह बात कैमरा निर्माताओं ने भुनाना शुरू किया और आज भी किसी दूसरी ज़रूरी बात पे ध्यान दिए बगैर हमें मेगापिक्सेल का अधिकतम होना ज्यादा भाता है। सन १९९९ के आस पास जब डिजिटल कैमरे सिर्फ १ या १.२  मेगापिक्सेल के होते थे तब एक मेगापिक्सेल का ऊपर नीचे हो जाना काफी मायने रखता था। लेकिन आज जब ५ मेगापिक्सेल या उससे ज्यादा के कैमरे आम हो गए हैं तब इस बात को समझना और आवश्यक हो गया के आखिर इसकी उपरी सीमा क्या है और कैमरा खरीदते वक़्त इस बात का कितना ख़याल रखा जाए?

चलिए थोडा छान-बीन करें पता लगाएं के आखिर ये मेगापिक्सेल की पहेली क्या है?

डिजिटल स्क्रीन असल में महीन चोकौर इकाइयों से बनी होती हैं और इसे ही हम पिक्सेल कहते हैं। यह  डिजिटल चित्र को मापने की इकाई है। पिक्सेल को दूसरे शब्दों में वर्गाकार कलर डॉट्स भी कह सकते हैं जो तस्वीर को रंगीन और प्रभावशाली बनाते है। लगभग एक मिलियन पिक्सेल्स जुड़कर एक मेगापिक्सेल का निर्माण करते है। जब डिजिटल कैमरे से तस्वीर खीची जाती है तो इमेज सेन्सर्स के द्वारा इसे आतंरिक या वाह्य स्टोरेज पे इकठ्ठा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर एक ३ मेगापिक्सेल की तस्वीर में लगभग 2,048 x 1,536 पिक्सेल्स होंगे जो साधारण फोटोग्राफी के लिए एक बढ़िया तस्वीर है। जैसे-जैसे मेगापिक्सेल बढेगा वैसे वैसे उपरोक्त गुणात्मक संख्याओं में बढ़ोत्तरी होगी।
मेगापिक्सेल बढाने का मतलब है उनको स्टोर करने में स्टोरेज की जरूरतें भी बढेंगी। कहने का मतलब है जहाँ ४ मेगापिक्सेल के सौ तस्वीरें कैमरे के स्टोरेज में सेव कर पा रहे हैं वहीं ये लगभग आधी हो जायेंगी अगर कैमरा ८ मेगापिक्सेल या उससे ज्यादा का हुआ। अगर तस्वीरें वाकई बेहतर हैं तो बात समझ में आती है  लेकिन अगर आपको यह बताया जाये के मेगापिक्सेल का दुगना हो जाना और कम तस्वीर सेव  हो पाने से आपकी तस्वीरों की गुणवत्ता में कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है - तब यह बात परेशान करती है। है न? असलीयत यही है, ज्यादा मेगापिक्सेल्स की जरूरत तब पड़ती है जब हम तस्वीरों को ज्यादा से ज्यादा बड़ा प्रिंट कराते हैं जैसा आप पोस्टर्स या बिल बोर्ड्स पर अक्सर देखते है. अगर आपने पोस्टकार्ड साइज़ या A 4 साइज़ या फिर उससे थोड़ी बड़ी भी फोटोग्राफ प्रिंट करनी है या उनको टीवी या कंप्यूटर पे देखना है तो 5 -8 मेगापिक्सेल की तस्वीरें एकदम उपयुक्त रहती हैं। इससे कुछ भी ज्यादा है तो यह सिर्फ एक सुकून देने वाला नंबर भर है जिसे सेल्समैन ने चतुराई से विज्ञापनों का सहारा लेकर आपको थमा दिया है।  इससे आम फोटोग्राफी में कोई फायदा होने से रहां।

कैमरा खरीदने से पहले आवश्यक यह है के आप पहले अपनी जरूरतों की जांच-परख कर लें और फिर ऑप्टिकल लेंस की क्षमता (यहाँ डिजिटल लेंस के चक्कर में न आयें), फोकल लेंग्थ, फ़्लैश टाइप, बैटरी और स्टोरेज क्षमता, इमेज मोड्स इत्यादि के बारे में पहले से जानकारी इकट्ठी कर लें। कैमरे को अपनी शर्तों पे खरीदें, विज्ञापनों के झांसे में न आयें।  

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

सैमसंग ग्रैंड

जिस तरह से देसी मोबाइल निर्माताओं ने बाज़ार पे अपनी पकड़ बनानी मजबूत की है अंतर्राष्टीय खिलाडियो की नींद उडी हुई है। उनके बने बनाए बाज़ार का बंटाधार हो रहा है और वो लाचार महसूस कर रहे है। आपाधापी का आलम यह है के चाहे HTC हो नोकिया, सैमसंग हो या LG सबके सब इसी जुगत में हैं के अब पार कैसे पाया जाये। जिन तकनीक और सुविधाओं का रोना रो कर उपभोक्ताओं की जेब कतरी जाती रही थी अब उन्हें वही सारी तकनीक औने पौने दामों पर भेंट की जा रही है। एप्पल जिसे अपने ब्रांड का गुमान था और ये भरोसा भी था के उनके उत्पाद किसी भी दाम पे बिक जाएंगी को बगलें झांकते देखा सुना जा सकता है। 

सैमसंग ने स्मार्ट फ़ोन बाजार में न सिर्फ एक बड़ा उलट फेर किया है बल्कि सबसे पहली अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में शुमार हो गया है जिसने हर पॉकेट में समाने वाले स्मार्ट फ़ोन का निर्माण किया है। सैमसंग ने 2013 के आते आते यह प्लान कर लिया था के देसी स्मार्ट फ़ोन निर्माताओं को पटखनी देनी है क्युंकि इसके बगैर भारतीय बाज़ारों में उसकी ताजपोशी कठिन लगने लगी थी। इसी रणनीति को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों सैमसंग ने ग्रैंड को भारतीय बाज़ारों में उतारा है और माइक्रोमैक्स एवं कार्बोन सरीखी खिलाडियों के लिए अपना मोर्चा खोल दिया है। 

सैमसंग ने पूरे मीडिया जगत को सैमसंग ग्रैंड के विज्ञापनों से पाट रखा है। माइक्रोमैक्स ने जिस उत्साह के साथ अपने नए मॉडल माइक्रोमैक्स A116 HD को पिछले पखवाड़े लांच किया था उससे बड़े स्क्रीन वाले स्मार्ट फोंस के बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और बढ़ने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।  माइक्रोमैक्स A116 HD को फ़रवरी के पहले सप्ताह में ही बाजारों में होना चाहिए था लेकिन आज तक उसका कहीं अता पता नहीं। उडती खबर यह आ रही के वैलेंटाइन डे के दिन से यह मिलना शुरू हो जाएगा। लेकिन अबतक सैमसंग ने एक बड़ी सेंध लगा दी है और अपने विस्तृत पहुँच और उत्पाद की उपलब्धता ने माइक्रोमैक्स A116 HD से उपभोक्ताओं का ध्यान भटका दिया है। 

आइये सैमसंग ग्रैंड के बारे में जानें:

सैमसंग ग्रैंड एक 5 इंच 1.2 GHz ड्यूल कोर, ड्यूल सिम, HD रिकॉर्डिंग, मल्टी विंडो स्मार्ट फ़ोन है जो एंड्राइड के लेटेस्ट वर्शन जेली बीन (4.1.2) से चलायमान है। 8MP  का उन्नत रियर कैमरा (लेड फ़्लैश के साथ) और 2MP का फ्रंट कैमरा इसे एक लीक से हटकर फ़ोन बनाता है। इसकी बैटरी 2100mAH की है जो आपका साथ 1.5 दिनों तक बखूबी दे सकता है। 1GB RAM, 4GB इंटरनल मेमोरी जिसे  64GB तक बढाया जा सकता है। कुल मिलकर यह वाकई में एक ग्रैंड फ़ोन का स्पेसिफिकेशन लगता है। हाँ जैसा की कुछ भी दुनिया में परफेक्ट नहीं होता इसमें भी कुछ खामियां है जैसे इसका स्क्रीन सैमसंग गैलेक्सी सीरीज के तुलना योग्य नहीं है। स्क्रीन की गुणवत्ता का ध्यान यहाँ उतना नहीं रखा गया है जितना सैमसंग से हम उम्मीद करते हैं। दूसरा सैमसंग ने अपना प्रोसेसर नहीं लगाया है और किसी बेनाम कंपनी ब्रॉडकॉम का प्रोसेसर इस्तमाल हुआ है जिसको अभी परखा जाना बाकी है। 

सैमसंग ग्रैंड
कुल मिलाकर इसकी बुराइयाँ इतनी ज्यादा नहीं हैं के आप फ़ोन लेने से झिझकें। सैमसंग ग्रैंड एक बेहद आकर्षक स्मार्ट फ़ोन है और कहीं से यह रु 21,500 का नहीं लगता। सैमसंग की ब्रांड इमेज इसे एक विनर बनाती है।   

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

फेसबुक: लेजेंड के 9 साल

हम कभी-कभी खुद ही इतिहास बनता हुआ देखते हैं लेकिन उसकी अहमियत का एह्सास हमें तब होता है जब सचमुच वह इतिहास के पन्नों के हवाले हो जता है। अब इसका कारण कुछ भी हो सकता है एक तो ये के शायद भगवान् ने हमें ऐसा ही बनाया है या फिर हमारा आधुनिक व्यस्त जीवन जो हमें कुछ सोचने का वक़्त ही नहीं देता।

देखते ही देखते फेसबुक दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट गत सोमवार 9 साल का हो गया। बॉलीवुड फिल्मों की तरह कॉलेज के रोमांस से शुरू ये सफ़र आज 100 करोड़ से ऊपर लोगों को एक ही बंधन में बांधे हुए है। विश्व इतिहास में यह अपने किस्म का पहला मामला है जहाँ इतने लोगों को इतनी जल्दी किसी एक प्लेटफार्म पे लाया गया, एक दूसरे से जोड़ा गया। 9 साल पहले यह कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं था। 



4 फ़रवरी 2004 का दिन इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण हो जाएगा क्योकि इसी दिन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दूसरे वर्ष के विद्यार्थी मार्क ज़ुकेर्बेर्ग ने फेसबुक वेबसाइट शुरू किया। वैसे इसका शुरूआती नाम thefacebook.com था जिसे बाद में बदलकर facebook.com कर दिया। सितम्बर 2006 में इस वेबसाइट का विस्तार प्रारंभ हुआ जहाँ  13 साल से अधिक के उम्र के लोग इससे जुड़ सकते थे।


फेसबुक लाइक जैसी सुविधाएँ 2009 में शुरू की गयीं। 2011 को टाइम लाइन लांच हुआ जिसे जनवरी 2012 तक सब एकाउंट्स के अनिवार्य बना दिया गया। 2012 में ही फेसबुक ने अपना आईपीओ भी लांच किया जिसका अधिकतम मार्किट कैपिटलाइजेशन 104 बिलियन डॉलर तक पंहुच गया था। हालाँकि इसके बाद इसका करेक्शन हुआ और शेयर की कीमतें कम हुई। अभी हाल में ही ग्राफ सर्च को भी शामिल कर दिया गया है। जिससे यूजर अपने मन और रूचि के हिसाब से चीजें सर्च कर सकता है। अब यह भी जाना  सकता है के उसको जानने वाले लोग क्या कर रहें हैं उनकी दिलचस्पी क्या है।

फेसबुक की पंहुच अब सिर्फ कंप्यूटर तक ही नहीं बल्कि इसकी उपस्थिति मोबाइल और टेबलेट्स पर भी अपरिहार्य हो गयी है। मोबाइल फ़ोन, जहाँ ऑपरेटिंग सिस्टम्स की विभिन्नता है वहां अपनी पहचान बनाए रखना फेसबुक के लिए आसान नहीं होगा।  आज की बदलती तकनीक के ज़माने में किसी के लिए भी बाज़ार में देर तक टिके रहने का आसान तरीका है उपभोक्ताओं की नब्ज़ पकडे रहना तथा  नए अन्वेषण करते रहना। सूचनाओं के इस  महासमर में नीरसता का कोई स्थान नहीं और यह किसी भी बड़े योद्धा को पतन का रास्ता दिखा सकती है।  

पिछले नौ सालों में फेसबुक बिलकुल बदल चुका है  और अन्वेषणों की भरमार ने ही इसका नयापन बरकरार रखा है, इसे लोगों से जोड़े रखा है। आशा है बढती प्रतियोगिता के दौर में फेसबुक खरा उतरेगा और कामयाबी की नयी उचाइयां छुएगा। मार्क को इस सफल यात्रा के लिए बधाई!

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

एंड्राइड के कुछ बेजोड़ टेबलेट्स

एंड्राइड एक लिनक्स बेस्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) है जिसे प्राथमिक रूप से टच स्क्रीन चलाने के लिए बनाया गया है। 2005 में जब गूगल ने एंड्राइड को खरीदा तभी से बाज़ार को अंदेशा था के स्मार्ट फ़ोन बाज़ार में एक बड़ा उलट फेर होने वाला है।  यह बात तब और साफ़ हो गयी जब पता चला के यह एक ओपन एंडेड ओएस है और एक मामूली अपाचे लाइसेंस जिसे गूगल ने रिलीज़ करना शुरू किया के जरिये कोई भी इसका न सिर्फ इस्तेमाल बल्कि अपने हिसाब से मॉडिफिकेशन और वितरण भी कर सकता है। इस तरह का खुलापन किसी बड़ी कंपनी ने पहले कभी नहीं दिखाया था। इसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आये हैं और आज एंड्राइड दुनिया का सबसे लोकप्रिय स्मार्ट फ़ोन और टेबलेट ओएस है। 

इस बड़ी घटनाक्रम का सीधा असर उत्पाद के मूल्यों पर पड़ा और जब कोई तकनीक लोगों से जुडती है उनके जीवन पर अपना सार्थक असर डालती तो समझिये उसकी सफलता की दास्तान कही सुनी जाती है। पायरेसी जिससे दुनिया त्रस्त थी एंड्राइड के आड़े कभी नहीं आया। एक तरफ जहाँ विंडोज ओएस और i ओएस (एप्पल) अपनी क्लोज्ड एंडेड दुनिया में व्यस्त थे एंड्राइड ने पूरे बाज़ार को अपने गिरफ्त में ले लिया। अब अपनी पोजीशन पाने की उनकी आपा-धापी कहाँ तक रंग लाएगी यह वक़्त ही बतायगा।

चलिए इस जटिल स्पर्धा से निकलकर कुछ एंड्राइड टेबलेट्स के बारे में बात करें जिसने टेबलेट मार्किट को नयी दिशा दी:

1. Google Nexus 7 
गूगल नेक्सस 7 का इंतज़ार इसलिए भी था के इससे पहले के गूगल टेबलेट्स ज्यादा कामयाब नहीं हो पाए थे तब एंड्राइड ओएस का विकास अपने आरम्भिक चरणों में था। इस बह्तेरीन टेबलेट को बाज़ार में उतारकर गूगल ने कम कीमत वाले टेबलेट्स के बाज़ार में हलचल मचाने का भरसक प्रयास किया है। असुस जो कंप्यूटर तकनीक के निर्माण में दुनिया के अव्वल खिलाड़ियों में गिना जाता है , के साथ मिलकर गूगल ने अपनी सारी ताकत  गूगल नेक्सस 7 को एक प्रतिस्पर्धी संयंत्र बनने में मानो झोंक दिया है।
Google Nexus 7

तेग्रा 3 क्वैड कोर प्रोसेसर, 12 कोर GPU, 8GB और 16GB के स्टोरेज विकल्प, 7 इंच का सुपर स्मूथ स्क्रीन (1280X 800), जेली बीन का अपडेटेड वर्शन और इसकी कीमत जो  लगभग रु 16,000 से शुरू हो जाती इसे एक अलग ही स्थान देती है।

इसकी खामियों की अगर बात करें तो पहला ये है के इसकी स्टोरेज क्षमता बिलकुल फिक्स्ड है  8GB या 16GB जो काफी कम है। इसके प्लेन वर्शन में आप सिर्फ और सिर्फ wi fi से ही इन्टरनेट से जुड़ सकते। सिम की सुविधा नहीं है। लेकिन इनको अगर हम दरकिनार करें और इसकी प्रतिक्रिया देखें तो दुनियाभर के बाजारों में यह वाकई एक विनर है। 

2. Amazon Kindle Fire HD
क्वैड कोर प्रोसेसर का होना टॉप लिस्ट में शामिल होने के लिए अब जरूरी जैसा हो गया है। यह टेबलेट उस ग्रुप का एक प्रतिष्टित प्रतियोगी है जिसने गूगल नेक्सस के आने तक दुनिया भर में धूम मचा रखा था यह एक ड्यूल कोर प्रोसेसर है। Amazon Kindle Fire HD  जैसा के नाम से ही स्पष्ट है एक हाई डेफिनिशन 7 इंच स्क्रीन (1280x800) वाला टेबलेट है जिससे आप क्रिस्टल क्लियर होने की पूरी उम्मीद कर सकते हैं। स्क्रीन कई मामलों में Google Nexus 7  से बेहतर है।


Amazon Kindle Fire HD

Amazon Kindle Fire HD भी 8GB और 16GB के स्टोरेज के विकल्पों में उपलब्ध है। इसका एंड्राइड ICS इसे थोडा बैकवर्ड बनाता है लेकिन  इसका पता लगाना आम उपभोक्ता के लिए आसान नहीं है। इस टेबलेट का टारगेट मार्किट भी अलग है यह ऐसे लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो ऑनलाइन पढाई करते हैं क्यूंकि रीडिंग एक्सपीरियंस बिलकुल अद्वितीय है। भारत में इसकी कीमतें रु 15,000/- से शुरू होती है। 


3. Samsung Galaxy Note 800
यह  एक अलग श्रेणी का टेबलेट है जो कई मामलों में उपरोक्त टेबलेट्स से अलग है। मसलन यह प्राथमिक रूप से i -pad 4 3G को टक्कर देने के लिए बनाया गया है अतः इसका स्क्रीन साइज़ भी 10.1 इंच (1280x800) स्क्रीन है जिसकी गुणवत्ता टॉप क्लास है। इसकी कीमत रु 35000 के आस पास है। एक और चीज़ जी इसे अलग बनाती है वह है इसका S-पेन जो बरबस ही आपको पुराने स्मार्ट फ़ोन के स्टाइलस की याद दिलाएगा। हालाँकि यह काफी उपयोगी है और स्टाइलस से कई पीढ़ी आगे की विषय वस्तु है। 

Samsung Galaxy Note 800
Samsung Galaxy Note 800 तीन स्टोरेज विकल्पों में उपलब्ध है  जो इस प्रकार है16/32/64GB. लेकिन यह आपको स्टोरेज वृद्धि की सुविधा देता है। 1.4 GH का क्वैड कोर प्रोसेसर, 2GB का RAM, एंड्राइड ICS, दैत्याकार क्षमता वाला7000 mAH का बैटरी। इस टेबलेट को iPad (third gen Wi-Fi+4G) को टक्कर देने के लिए बनाया गया और यह कोई बचकानी बात नहीं है। सैमसंग ने एक बेहतरीन टेबलेट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। 


4. Acer Iconia B1
16 जनवरी 2013 को एसर ने अपना यह मॉडल भारतीय बाजारों में पेश किया है जिसको हाथों हाथ लिया जा रहा है। चाहे आप इसके स्क्रीन की बात करें या इसकी कार्यकुशलता की यह एक बड़ा उलट फेर करने में सक्षम है। जिस प्राइस रेंज की बात हम यहाँ कर रहे हैं उसमे ऐसे उत्पाद के आगमन से प्रतिस्पर्धा और गरमाएगी इसमें कोई शक नहीं।

Acer Iconia B1  7 इंच का टेबलेट है जिसका 1024x600p का स्क्रीन इसे दस हज़ार से कम दामों में उपलब्ध टेबलेट्स का सबसे बढ़िया स्क्रीन है। बात यही ख़तम नहीं होती यह एक एंड्राइड जेली बीन टेबलेट है जो इस प्राइस रेंज में सबसे पहले टेबलेट्स में से एक है। 8GB की इंटरनल मेमोरी जो 32GB तक एक्सपेंडेबल है एक स्टैण्डर्ड फीचर है। 1.2GH  का ड्यूल कोर प्रोसेसर इसे एक फ़ास्ट टेबलेट बनाता है। Wi-Fi, ब्लूटूथ 4.0 इत्यादि इसके अन्य स्टैण्डर्ड फीचर हैं।
Acer Iconia B1 
इसकी डाउनसाइड की बात करें तो इसकी 2,710mAh की बैटरी और 512 MB का RAM से मन थोडा छोटा हो जाता है। लेकिन इस प्राइस रेंज के सबसे समुन्नत टेबलेट्स में यह बेशक शुमार है। इसकी कीमत रु 7,999 रखी गयी है।

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

ब्लैकबेरी 10: एक नयी शुरुआत

ब्लैकबेरी को ऑफिस फ़ोन का पर्याय माना जाता रहा है जिसपे ईमेल की सुविधाओं का कोई जोड़ नहीं था। 2003 जब ब्लैकबेरी ने अपनी शुरुआत की उस समय एप्पल, सैमसंग जैसे आज के बड़े नामों का हैंडसेट बाज़ार में कोई पहचान नहीं थी। ब्लैकबेरी फ़ोन की लोकप्रियता इस बात पे टिकी थी के वह ऑफिस जाने वालों से लेकर व्यवसाइयों का चहेता बना रहे। यही एक ब्रांड था जिसने बाज़ार की प्राथमिकताओं को अपने हिसाब से मोड़ने में सफलता हासिल की थी।  ब्लैकबेरी के संयंत्र किसी भी दृष्टिकोण से उनके लिए नहीं था जिन्हें अपने मोबाइल से बढ़िया कैमरा अथवा म्यूजिक की अपेक्षा थी। यह आज भी ऑफिस कम्युनिकेशन फ़ोन है।

आज जहाँ बाजार का रुख हर महीने या कहिये बॉलीवुड की तरह हर शुक्रवार को बदलने की संभावनाएं तालाश कर रहा होता है वहां किसी एक तकनीक के सहारे एक रेखीय विकास से काम नहीं चलेगा। तकनीक बाजार में आज जिसकी भी तूती बोलती है उन्होंने इस पहलू पर बड़े गौर से विचार किया है। फिलिप्स जैसी कंपनी जिसने होम एंटरटेनमेंट मशीनों के विकास में अपने झंडे गाड़े थे आज खरीदार ढूंढ रहा है। कारण सिर्फ यह है की समय के साथ बदलने की उनकी रफ़्तार बाज़ार की रफ़्तार से धीमी थी।

ब्लैकबेरी 10
अगर हम मोबाइल निर्माताओं की बात करें तो नोकिया, मोटोरोला, सोनी और ब्लैकबेरी चारों बड़ी कंपनियों को यह बात अच्छी तरह समझ आ गयी है के बाज़ार के मूड को समझना और उसी हिसाब से उत्पाद बनाना उन्हें ज्यादा समय तक प्रतिस्पर्धा में बनाए रख पायेगा। हम एक सार्वभौमिक हिस्सेदारी की दुनिया में कदम रख रहें हैं जहाँ जितने ज्यादा लोग आपसे जुड़ेंगे आपका उत्पाद उतना सफल होगा। तकनीक को गुप्त अथवा संजोये रखना अब बीती बातें जैसे लगती हैं। एंड्राइड उपकरणों की भरमार और माइक्रोसॉफ्ट से मोहभंग इस बात को समझने के लिए पर्याप्त उदहारण हैं।

ब्लैकबेरी ने अपने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है के उनके नए फ़ोन ब्लैकबेरी Z10 और ब्लैकबेरी Q10 जल्दी ही अंतर्राष्ट्रीय बाजारों की शोभा बढ़ाएंगे। निक मन्निंग जो प्रवक्ता हैं ब्लैकबेरी के उन्हें यह कहते सुना गया के ब्लैकबेरी का ऑपरेटिंग सिस्टम एकदम नए किस्म का है और इनसे स्मार्ट फ़ोन तकनीक को नयी दिशा मिलेगी। बताया गया के ब्लैकबेरी 10 ऑपरेटिंग सिस्टम उपभोक्ताओं को अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल इनफार्मेशन को बिलकुल अलग अलग रखने में सक्षम होगा और नौकरी बदलने की सूरत में आप अपनी प्रोफेशनल इनफार्मेशन बिना किसी असुविधा के पूरी तरह मिटा पायेंगे।
ब्लैकबेरी 10
ब्लैकबेरी 10 कितने का पड़ेगा इसे अभी राज़ ही रखा जा रहा है। अब इस बात का इंतज़ार रहेगा की क्या यह नयी पहल ब्लैकबेरी की डूबती नैया को उबार पायेगा? ब्लैकबेरी की 80 फीसदी से भी ज्यादा लुढ़क चुके शेयरों की कीमतें क्या फिरसे परवान चढ़ पाएंगी? क्या ब्लैकबेरी अपनी शाख बचा पायेगा? हमें इंतज़ार रहेगा।

ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक को क्लिक करें:
http://global.blackberry.com/blackberry-10.html

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

कार्बन स्मार्ट टाइटेनियम S1

जी हाँ बड़ी तेजी से यह स्पष्ट हो रहा है के 2013 देसी मोबाइल कंपनियों का साल रहेगा। अच्छी तकनीक, अच्छी गुणवत्ता और सबसे महत्वपूर्ण ये सारी चीजें अगर पॉकेट फ्रेंडली दामों में उपलब्ध हों तो भला i phona में स्टेटस सिंबल के अलावा क्या धरा हुआ है। मुझे लगता है गाहे-बगाहे सबको होश आएगा। देखिये कैसे हाल के महीनों में सैमसंग ने अपनी हठधर्मिता त्यागते हुए सस्ते विकल्प उपलब्ध कराने का प्रयास किया है । सैमसंग गैलेक्सी ग्रैंड जो पिछले सप्ताह ही भारतीय बाजारों में आया है इसका ज्वलंत उदहारण है। अब रु 21 हज़ार में सैमसंग से और बेहतर फ़ोन की उम्मीद फिलहाल तो नहीं की सकती। कयास तो यह भी है के एप्पल भी जाग चुकी है और जल्दी ही एक हाई एंड प्रोडक्ट कम दामों में बाजार में उतारने की ताक में है।  

देसी मोबाइल कंपनियों ने बाजार की नब्ज पकड़ी है और पिछले छह महीने में जो उत्पाद माइक्रोमैक्स, कार्बन और जेन जैसी कंपनियों ने बाज़ार में उतारा है उससे न सिर्फ मोबाइल बल्कि टेबलेट मार्केट को भी एक नया ट्रेंड, एक नयी दिशा मिली है। जहाँ छप्पड़ फाडू कीमतें उत्पाद की गुणवत्ता का एकमात्र पैमाना नहीं होता। जहाँ कम कीमत में भी समुन्नत संयत्रों का उपयोग किया जा सकता है। 

कार्बन स्मार्ट टाइटेनियम S1 जिसे 28 जनवरी को लांच किया गया है, इसी प्रयास की श्रंखला की अगली कड़ी है। यह कैनवास 116 HD को सीढ़ी टक्कर देगा।  कार्बन स्मार्ट फ़ोन के जखीरे का यह पहला 1GB RAM से सुसज्जित  1.2 GHz क्वैड कोर प्रोसेसर फ़ोन है जिसे एंड्राइड की लेटेस्ट पेशकश जेली बीन से चलाया जायेगा। 4.5 इंच का हाई डेफिनिशन (HD) स्क्रीन (960×540) इसे एक बेहतरीन फ़ोन बनाता है। बस एक बात खटकती है और वो है इसकी बैटरी जो 1600 mAH के साथ कम देर तक चलने का संकेत देती है। हालाँकि क्वैड कोर प्रोसेसर और जेली बीन कम बैटरी सोखने के लिए बनाये गए हैं लेकिन थोडा और पावरफुल बैटरी इस फ़ोन को और मजबूती देता। 


बाकी के सारे स्टैण्डर्ड फीचर्स इस फ़ोन में उपलब्ध हैं जैसे 3G, ब्लूटूथ, wi fi, गेम्स, ड्यूल सिम इत्यादि इत्यादि। इस फ़ोन के कैमरे के अगर बात करें तो मुख्या कैमरा 5MP का है और इसमें एक फ्रंट कैमरा भी लगा है जो विडियो कालिंग को सम्भव बनाएगा। 

कार्बन स्मार्ट टाइटेनियम S1 की बुकिंग फिलहाल सिर्फ कार्बन वेबसाइट (http://www.karbonnmobiles.com) से ही की जा सकती है। रु 10,990 में यह फ़ोन एक बेहतरीन विकल्प है।

सोमवार, 28 जनवरी 2013

रोमिंग फ्री- एयरसेल ने की है पहल

 एयरसेल आज पहला मोबाइल ऑपरेटर हो गया जिसने भारत भर में रोमिंग फ्री करने की घोषणा कर दी है। "एक देश, एक दर" नाम से कंपनी ने एक नए प्लान को बाजार में पेश किया है। आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में एयरसेल ने कहा के कॉल, sms एवं डाटा का उपयोग उपभोक्ता पूरे भारत में सामान रूप से कर सकते हैं। इनकमिंग चार्जेज इस टैरिफ प्लान में बिलकुल मुफ्त होंगी। 
मुंबई के एयरसेल उपभोक्ता इस प्लान को सक्रिय कराने के लिए रु 32 चुकायेंगे और दिल्ली में इसको ऑन  कराने के लिए रु 39 चुकाना पड़ेगा। दुसरे शहरों में भी दरों को रु 21 और रु 59 के बीच ही रखा जाएगा। 

एयरसेल के CMO श्री अनुपम वासुदेव ने बताया के इस प्लान में 1 पैसा प्रति मिनट की दरें पूरे भारत में एक ही होंगी चाहे आप होम सर्किल में हों या रोमिंग में। इसी तरह SMS की चार्जेज भी रु 1 प्रति sms होंगी चाहे पूरे भारत में आप कहीं से भी इसका लाभ उठाएं। 

इस प्रकार के कयासों का बाज़ार गर्म हो रखा है के बाकी कंपनियां भी इस होड़ में जल्दी ही शामिल हो जायेंगी । हाल ही में कुछ मोबाइल ऑपरेटर्स ने सुविधा शुल्कों में 15 से 25 फ़ीसदी की वृद्धि कर एक नए ट्रेंड की शुरुआत कर दी थी। अब जब सुविधाएं बेहतर होने के दावे पेश किये जा रहे तो इनपे विश्वास करने के सिवा उपभोक्ताओं के पास और कोई चारा नहीं है। सुविधा शुल्कों में वृद्धि का सीधा सम्बन्ध रोमिंग फ्री की तरकीब से लगाईं जा रही है, ऑपरेटर्स जो काफी अरसे से कम मुनाफे का रोना रो रहे थे उनके हाथ यह अच्छा मौका हाथ लगा है।

बहरहाल, धीरे धीरे ही सही TRAI की नीतियां मोबाइल सुविधाओं को बेहतर बनाने में प्रयासरत लग रही हैं। सुविधा शुल्कों को काबू में रख पाना अब सबसे बड़ी चुनौती के होंगी।