सोमवार, 10 जून 2013

गूगल नेक्सस 4- सैयाँ भये कोतवाल

कुछ ऐसी कंपनियां होती हैं जो बीडी से लेकर बैटल टैंक सब खुद बनाना या बनवाना चाहतीं हैं और ऐसी चाह रखने वालों की कोई कमी नहीं। चाहे अपनी देसी कंपनी रिलायंस हो यह टाटा या फिर विशालकाय विदेशी समूह गूगल या माइक्रोसॉफ्ट। जी हाँ! बिल गेट्स अब माइक्रोसॉफ्ट से उकता कर मलेरिया का निदान ढूंढ रहें हैं। उनका कदम बेशक सराहनीय है लेकिन आपको नहीं लगता की यह एक बदलाव का संकेत है। इस बदलाव का सकारात्मक पहलू यह है की ब्रांड की कार्यकुशलता का फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच रहा है और नकारात्मक पहलू यह की 'छोटे की तो खैर नहीं'।

गूगल को पता है के आने वाला दौर स्मार्ट फोंस का है और इससे कन्नी काटना सच्चाई से मुंह छुपाने जैसा है। एंड्राइड को आपाधापी में खरीदकर कंपनी ने यह साबित कर दिया था के मोबाइल फ़ोन तकनीक अब पहले जैसी नहीं रहेगी। हुआ यह है के एंड्राइड अब अमूमन स्मार्ट फ़ोन का पर्याय बन गया है।

गूगल का स्मार्ट फ़ोन ब्रांड बनकर बाज़ार में उतरना एक और दिलचस्प घटना थी, भारतीय बाज़ार हालाँकि गूगल के इस पहल में उपेक्षा के शिकार रहे, लेकिन उत्सुकता थी के कमने का नाम ही नहीं ले रही थी। इस बीच हुआ यूँ के भारतीय बाज़ार में दुनिया भर के सस्ते-महंगे स्मार्ट फ़ोन ब्रांड्स ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली। किसी को जैसे कोई फरक ही न पड़ा हो। गूगल के 'नेक्सस' नामकरण पर शुरुआती विवाद को भी चुपचाप निपटारा करने बाद यह समझ में आने लगा की नेक्सस लम्बे समय तक स्मार्ट फोंस की तकनीक का प्रतिनिधित्व करता रहेगा।

जनवरी 2010 में गूगल ने एच टी सी के साथ मिलकर नेक्सस 1 को बाज़ार में उतारा जिसके स्क्रीन की गुणवत्ता, वौइस् क्वालिटी, फ़ास्ट प्रोसेसर और उसकी कार्यकुशलता को काफी सराहा गया। एक और रोचक बात यह थी की यह किसी खास मोबाइल ऑपरेटर के साथ लॉक्ड फ़ोन की श्रेणी में नहीं आता था।  गूगल नेक्सस 1 हालाँकि एक बहुत उन्नत मीडिया फ़ोन नहीं था लेकिन एक नयी शुरुआत हो चुकी थी। हाँ! गूगल नेक्सस 1 को भारत में नहीं लांच किया गया।

नेक्सस १ 
दिसम्बर 2010 जब एंड्राइड जिन्जेर ब्रेड 2 .3 रिलीज़ हुआ उसी के साथ गूगल नेक्सस एस को सैमसंग के साथ मिलकर अमेरिकी बाजारों में उतारा गया जिसका स्क्रीन एक बार फिर कमाल का था, कॉल क्वालिटी पहले से और बेहतर थी और एंड्राइड जिन्जेर ब्रेड के फीचर्स यूजर को व्यस्त रखने के लिए पर्याप्त थे। आलोचकों की माने तो यह एक बेहतरीन फ़ोन था जिसे और पॉवर फुल बनाया जा सकता था।

गूगल नेक्सस एस
लगभग एक साल बाद नवम्बर 2011 में एक बार फिर सैमसंग के साथ मिलकर गैलेक्सी नेक्सस को पाश्चात्य बाजारों में पेश किया गया। सुपर अमोलेद स्क्रीन और एंड्राइड के नए ऑपरेटिंग सिस्टम आइसस्क्रीम सैंडविच के साथ यह एक प्रभावशाली फ़ोन साबित हुआ जिसमें अच्छे स्मार्ट फ़ोन सारी खूबियाँ मौजूद थीं। इसकी सबसे बड़ी खामियों से एक था इसकी मेमोरी को बढाया नहीं जा सकना। जहाँ एक तरफ यह एक अन्य नेक्सस डिवाइस था वहीँ  दूसरी तरफ सैमसंग के निजी गैलेक्सी फोंस इन सभी परेशानियों को दूर कर बाजारों में धूम मचा रहे थे।

गैलेक्सी नेक्सस
सैमसंग से गूगल का मोहभंग हो चुका था और अब उसे एक ऐसे मोबाइल निर्माता की तलाश थी जो उसके नेक्सस ब्रांड को नयी उड़ान दे सके। पिछले एक दसक में दक्षिण कोरिया  की  कंपनियों  ने जिस तरह विश्व बाज़ार पर हल्ला बोला है वह देखने लायक है चाहे ऑटोमोबाइल हो या मोबाइल सब जगह उनकी तूती बोल रही है। गूगल को एल जी जो खुद भी मोबाइल बाज़ार में अपना आधार ढूँढ रही थी का साथ मिला और दोनों ने मिलकर नेक्सस 4 का सपना देखा। पहली बार एल जी  नेक्सस 4 को भारतीय बाजारों में भी उतारने की भी बात की गयी। मई 2013 में भारतीय बाजारों तक आधिकारिक रूप से पंहुचने वाला यह पहला फ़ोन था जिसकी प्रतीक्षा न जाने कब से की जा रही थी। यह बताना शायद जरूरी नहीं होगा की यह एक प्रीमियम स्मार्ट फ़ोन है और गूगल ने एल जी के साथ मिलकर इसको बनाने में अपनी सारी ताकत झोंक दी है।
एल जी  नेक्सस 4
एंड्राइड 4 .2 के साथ यह एक पॉकेट फ्रेंडली फ़ोन है और इसकी दो वजहें हैं एक की इसकी प्राइस प्रीमियम स्मार्ट फोंस के श्रेणी में सबसे कम है (रु 25,990 मात्र ) और दूसरा यहकी  इसका कम वजन और छोटा (4 .7 इंच सुपर अमोलेद, गोरिल्ला ग्लास 2 स्क्रीन) आकार इसके रख रखाव को आसान बनाता है। इसकी खामियों की बात करें तो पिछले नेक्सस फोंस की तरह आप इसके एक्सटर्नल मेमोरी को बाधा नहीं सकते और न ही इसके 2100 mAH बैटरी को बदला जा सकता है। 4G LTE की कमी भी इसका एक नकारात्मक पहलू जिसकी उपयोगिता आने वाले दिनों में काफी बढ़ने वाली है। लेकिन ये कमियां डील ब्रेकर नहीं हैं  एल जी नेक्सस 4 स्मार्ट फ़ोन का एक बेहतरीन विकल्प है। 

गुरुवार, 16 मई 2013

इ-कॉमर्स का क्रेज

इ-कॉमर्स का क्रेज भारत में बढ़ता ही जा रहा है। पिछले सात सालों से भारत में लगातार लगभग 34 फ़ीसदी की दर से बढ़ता इ-कॉमर्स बाज़ार अब परिचय का मोहताज़ नहीं रहा। नामी गिरामी सर्वेक्षण संस्था फोर्रेस्टर की अगर माने तो भारत में इ-कॉमर्स के बढ़ने की प्रचूर संभावनाए हैं और 2013 से 2016 के बीच इसके विकास की दर 57 प्रतिशत रहेगी जिसपर दुनिया भर की नागाहें रहेंगी। यह एक बड़े उलटफेर का संकेत है।

भारत पारंपरिक रूप से छोटे दुकानों का देश रहा है जहाँ नुक्कड़ के मोदीखाने से घर गृहस्थी का सारा सामान नगद हो या उधार खरीद लेना यहाँ के लोगों को रास आता रहा है। और यह आज भी बदस्तूर जारी है। मुंबई जैसे बड़े नगरों की बात करें तो वहां भी नुक्कड़ के लाला जी की इतनी पूछ है के पिछले कुछ दिनों से LBT (लोकल बॉडी टैक्स) को मुद्दा बनाकर इन्होने सारे शहर की नाक में दम कर रखा है। छुट्टे पैसे लेकर कुछ लाने निकलिए तो पता चलता है दुकाने तो बंद है। अब एक टूथपेस्ट का पैकेट खरीदने के लिए माल्स का चक्कर लगाना मुझे तो रास नहीं आता और अगर छुट्टियाँ हों तो मॉल जाना तीरथ करने जैसा लगता है। वही कतारें, वही भीड़-भाड़, वही आपा-धापी! कहने का मतलब है हम दो राहे पर खड़े हैं जहाँ एक तरफ लाला जी की मुस्कराहट, उनकी बातें, उनका सुबह-सुबह दुकान का खोलना, उधारी, कम तोलना, गुणवत्ता का पैमाना न होना, टैक्स से दूर रहना  इत्यादि बाते है तो दूसरी तरफ मॉल कल्चर जहाँ सबकुछ चम् चमा चम्, गुणवत्ता का भरोसा, होम डिलीवरी,  टैक्स की जिम्मेदारी, ऑफर्स, प्लास्टिक (कार्ड) पेमेंट, प्लास्टिक के बने लोग, सुबह खुलने की सुविधा नदारद इत्यादि इत्यादि हैं।

इ-कॉमर्स इसके आगे की कहानी है जहाँ मोटे तोर पर आप मशीन से खरीदारी करते हो और मशीन से प्राप्त हो सकने वाली सारी सुविधाएं आपको सहज मिल जाती हैं। इ-कॉमर्स की अपार संभावनाओं के बावजूद वास्तविकता यह है की इसका अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा। पिछले छः महीनों में काफी नए इ-कॉमर्स वेबसाइटस आये हैं लेकिन यकीन मानिए इनके बंद हो जाने की रफ़्तार भी त्वरित है। इ-कॉमर्स व्यावसाय के सामने आज कई सारी बाधाएं हैं मसलन भरोसेमंद इन्टरनेट स्पीड की कमी, कार्ड पेमेंट सब नहीं कर सकते, कार्ड पेमेंट करने से डर, डिस्ट्रीब्यूशन के लिए पर्याप्त साधनों का अभाव इत्यादि। ये सारे कारण सही हैं। लेकिन एक और बात जिसपर शायद गंभीरता से विचार नहीं किया गया है वह यह है की अगर हम इन्टरनेट के विकास के पैटर्न को समझें तो हम इस समस्या की थोड़ी विस्तृत जानकारी मिल पाती है और इससे निदान का रास्ता भी आसान हो सकता है


हम शायद यह मान बैठे हैं इन्टरनेट के आगमन की तुरंत बाद ही इ-कॉमर्स परवान चढ़ना शुरू हो जाएगा तो माफ़ कीजिये, यह ग़लत होगा। क्रमगत विकास ही स्वाभाविक विकास है। जल्दीबाजी में घोड़े के आगे गाडी बांध देने से किसी का भला नहीं होगा। मोबाइल, जिसकी विकास यात्रा से हम सब परिचित हैं कैसे शुरू हुआ, मोटोरोला का वो काला  मोबाइल फ़ोन आपको याद होगा जिसका हाथ में होना ही आपको भीड़ से अलग रखने के लिए काफी था। इनकमिंग कॉल्स के भी 16 रु प्रति मिनट लगते थे। इसके बाद एस एम् एस लोकप्रिय हुआ, तब म्यूजिक, कैमरा, गेम्स और अब जाकर इन्टरनेट आया है। ठीक उसी तरह,  इन्टरनेट के आगमन के बाद आमतौर पर लोग पहले ईमेल का इस्तेमाल सीखते हैं तब सर्च इंजन को चलाना तब सोशल मीडिया, गेम्स और तब कहीं ऑनलाइन लेन-देन के लिए उनके मन में भरोसा जागता है। सभी इन्टरनेट यूजर को उपभोक्ता मानकर बनायी गयी रणनीतियां वैसे ही सफल नहीं होंगी जैसे मोटोरोला के उस पहले फ़ोन के लिए इन्टरनेट के आकर्षक प्लान्स घोषित करना जब लोगों ने SMS भेजना ही शुरू किया था।

दूसरी बात यह की इ-कॉमर्स एक उत्तराधुनिक व्यवसाय है जो आज के नये आयामों, नए परिवेश और नयी परिस्थियों का प्रतिनिधित्व करता हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने पहला एम बी ए प्रोग्राम 1908 में शुरू किया था और यह उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर की गयी एक अच्छी पहल थी। बड़े उद्योगों का बोलबाला हुआ करता था जिनकी जरूरतों के हिसाब से पाठ्यक्रमों का निर्माण किया जाता था। विडंबना यह है के कमोबेस वही पाठ्यक्रम आज भी  एम बी ए में पढाया जाता है जहाँ कंप्लायंस, क्वालिटी, ऑपरेशंस, मार्केटिंग, एच आर इत्यादि कुछ आधारभूत विषय हैं किसी व्यावसाय को समझने हेतु।

 इ-कॉमर्स का कांसेप्ट एक स्टार्ट अप कांसेप्ट   है जिसको चलने चलाने का कोई तय पैमाना नहीं होता, समय के साथ-साथ व्यवसाय सीखा जाता है और इसका विस्तार किया जाता है। चूक तब हो जाती है जब यह मान बैठते हैं की स्टार्ट अप व्यावसाय बड़े उद्योगों का ही छोटा स्वरुप है। अब फ्लिप्कार्ट को रिलायंस रिफाइनरी का छोटा रूप कैसे माना जा सकता है। उदहारण के लिए  रिलायंस रिफाइनरी जहाँ सबकुछ तय होगा जहाँ प्रोडक्शन के बाद क्वालिटी आएगा और उसके बाद सप्लाई और इस सिलसिले के अगले कुछ सालों का प्लान भी तैयार रहेगा। स्टार्ट अप में आप कैसे प्रोडक्शन शुरू करेंगे जब आपको पता ही नहीं है के उपभोक्ता कौन है? कोई बिज़नस मॉडल तैयार नहीं है। स्टार्ट अप की लड़ाई आर या पार की होती है जिसमे या तो आप पूरे जीत जाते हो या पूरी हार हो जाती है। यहाँ बिज़नस डेवलपमेंट से ज्यादा कस्टमर डेवलपमेंट पर ध्यान देना होगा तब बात बनेगी।

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शनिवार, 11 मई 2013

स्मार्ट फ़ोन खरीदने से पहले क्या जानें...?

मानव सभ्यता की कहानी मोटे तौर पर मानव और उसके सामाजिक सरोकार में आने वाले उतार चढ़ाव की कहानी है। अगर आप सोचते हैं की विश्वजाल,या फिर फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन इत्यादि ने हमें जुड़ना सिखलाया है तो यह गलत होगा। कंप्यूटर या स्मार्ट फोंस सिर्फ एक माध्यम है जिसने सामाजिक संचेतना को एक नया स्वरूप भर दिया है। मनुष्य हमेशा से प्रगतिशील रहा है और हल काल खंड में उसने नए माध्यमो का अन्वेषण किया है ताकि वह अपने परिवेश, अपने समाज का हिस्सा बना रहे। हाँ! मनुष्य ने नयी परिभाषाएं गढ़ी हैं जिसने इस सामाजिक ताने बाने को नए दृष्टिकोण दिए हैं लेकिन उसकी सोच हमेशा एक ही रही है, जुडाव की। कल तक लैंडलाइन, टाइप राइटर, टेलीग्राम और रेडिओ यह काम कर रहे थे और आज इनका स्थान उससे बेहतर साधनों ने ले लिया है। यह प्रक्रिया अनादि काल से अनवरत जारी है और हम आज जो भी देख रहें हैं, सुन रहे हैं वह सब इसी महान सूत्र की एक कड़ी भर हैं।
स्मार्ट-फ़ोन एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है और जिसमें हमारे सामाजिक सरोकार को सशक्त करने की अपार संभावनाएं हैं। स्मार्ट-फ़ोन  अपेक्षाकृत एक नया शब्द है जिसे लगभग सारी भाषाओँ ने एकरूपता से  बिना अनुवाद के झंझट में पड़े,  स्वीकारा है। एरिक्सन ने १९९७ में अपने एक लोकप्रिय मोबाइल मॉडल GS 88 के लिए स्मार्ट-फ़ोन शब्द का  इस्तेमाल किया था और वहीं से इसके बारे में लोगों ने जाना।  स्मार्ट फ़ोन से हमारा तात्पर्य ऐसे फ़ोन से है जिसमे कंप्यूटर और मोबाइल दोनों की खूबियाँ एक साथ पिरोई गयी हों।

भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या का दस प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा स्मार्ट फोंस को उपयोग करता है और इसका चलन शहरी भागों में ज्यादा है। इसके त्वरित विकास की पुरजोर संभावनाएं हैं और इस बात का एहसास दुनिया की सभी मोबाइल कंपनियों को है। मोटे तौर पर व्यवसाय का मूलमंत्र होता है मुनाफा और मुनाफे के लिए दीन- धर्म जाती और देश सबसे परे सोचना व्यवसाइ होने  का पहला पाठ है। प्रश्न यह है की इस महा समर में एक आम उपभोक्ता अपने लिए कैसे एक सही उपकरण का चुनाव करे और कैसे विज्ञापनों के प्रपंच से बचा रहे। होता यह है के स्मार्ट फ़ोन खरीदने से पहले हम यह चाहते हैं की ज्यादा से ज्यादा तकनीक का समावेश मिले   और फिर ऐसा वक़्त शीघ्र ही आता है जब फ़ोन के एप्लीकेशन बंद रख-रख कर बैटरी बचाते हैं। इसे अगर हम डिजिटल डाइलेमा कहें तो सही लगता है।

स्मार्ट फ़ोन और आम मोबाइल में कोई बहुत बड़ा अंतर है, ऐसा नहीं है। स्मार्ट फ़ोन की जो सबसे बड़ी खूबी होती है वह होता उसका बड़ा स्क्रीन और विश्वजाल से जुड़ने की उसकी क्षमता। आपका काम अगर इन दो सुविधाओं के बिना भी चल सकता है तो स्मार्ट फ़ोन 'खरीदने की चाहत' पर पुनर्विचार किया जा सकता है। 

चलिए समझने का प्रयास करें की कैसे सही स्मार्ट फ़ोन का चुनाव किया जाए : 

मोबाइल ऑपरेटर का चुनाव : अगर आपके लिए स्मार्ट फ़ोन का चुनाव पिछले साल कठिन था तो यकीन मानिए यह अब और कठिन होने वाला है। बाजार में विकल्पों की ऐसी आंधी है के अच्छे अच्छे खरीदारों की धौकनी तेज हो जाए। सबसे  पहले आप यह पता करें की किस मोबाइल ऑपरेटर की कवरेज कैपेसिटी आपके इलाके में सबसे अच्छी है।

 स्मार्ट-फ़ोन कमो-बेस एक ज्ञान चूसक यन्त्र है जिसकी भूख अंतरजाल के बिना मिटती नहीं है।  स्मार्ट फ़ोन को स्मार्ट रखने के लिए सिग्नल की पड़ताल बड़ा जरूरी है वरना संयंत्र कितना भी अच्छा हो, रोता ही रहेगा। यह भी पता करें की आपके शहर में किसका डाटा प्लान सबसे बेहतर है। यह बताना जरूरी नहीं के खर्चे बढ़ेंगे।

ऑपरेटिंग सिस्टम (ओ एस):
स्मार्ट फ़ोन को स्मार्ट उसके सिस्टम्स बनाते है। ऑपरेटिंग सिस्टम यह डिफाइन करता है के आपका स्मार्ट फ़ोन  किस हद तक आपके यूजर एक्सपीरियंस को बेहतर बनाएग। स्मार्ट फ़ोन में इस्तेमाल होने वाले कुछ सबसे लोकप्रिय ओ एस इस प्रकार हैं:

१. एंड्राइड (जेली बीन) : गूगल का एंड्राइड ओ एस आज दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला ओ एस है।  पहली खूबी तो यह के एंड्राइड का इस्तेमाल सरल है और सतत अपग्रेड होते इसके एप्लीकेशन किसी भी दूसरे ओ एस से बेहतर है। दूसरी बात यह की ओपन सोर्स ओ एस होने के कारण उपभोक्ता अपनी सुविधा के अनुसार जैसा मन करे वैसे कस्टमाइज  कर सकते हैं। तीसरी सबसे अच्छी बात यह के इसने स्मार्ट फोंस की तकनीक को पॉकेट फ्रेंडली बना दिया है। आपका बजट कोई भी हो अगर आप स्मार्ट फ़ोन खरीदते हैं तो वह एंड्राइड ही होगा।
एंड्राइड जेली बीन 
एंड्राइड का नकारात्मक पहलू यह है की यह एक ओपन सोर्स ओ एस है और यहाँ मैलवेयर या वायरस की समस्या लगी रहेगी। एंड्राइड ओ एस का उपग्रेडेशन प्रक्रिया भी धीमी है और बाकी ओ एस की तरह सारे एंड्राइड फ़ोन अपने आप अप ग्रेड नहीं हो पाते। एक और महत्वपूर्ण बात के एंड्राइड ओ एस बैटरी का दोस्त बिलकुल नहीं होता।

२ . एप्पल (iOS 6): दो कारण है जिसने एप्पल ओ एस को आज भी लोकप्रिय बनाये रखा है। पहला इसका यूजर फ्रेंडली होने और दूसरा एप्लीकेशन की भरमार होना। एप्पल का इस्तेमाल आप पहले दिन से ही बखूबी कर सकते हैं और इसके लिए आपको कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं होगी। आज लगभग ८ लाख अप्प्स के साथ यह सभी ओ एस का सिरमौर है। और एप्पल ओ एस हमेशा से बैटरी का दोस्त रहा है।
एप्पल ओ एस 
एप्पल ओ एस एक क्लोज्ड एंडेड ओ एस है इसका मतलब जो कंपनी ने दिया है आपको उसी से काम चलाना होगा आप एंड्राइड की तरह चीज़ों को कस्टमाइज नहीं कर सकते। इसका एक फायदा यह है की अगर कोई अपग्रेडेशन होता है तो आप इसे बिना किसी मिडिलमैन की सहायता से कर सकते है। इसके लिए आपको माइक्रो मैक्स, सैमसंग या फिर HTC के पास नहीं जाना होगा। एक और अहम् बात यह की एप्पल आज भी अपनी कीमतों की वजह से आम फ़ोन नहीं बन पाया है।

३. ब्लैकबेरी 10: यह एक ऐसा ओ एस है जिसे मल्टीटास्किंग के लिए ही बनाया गया है। वैसे भी ब्लैकबेरी ऐसे लोगों का चहेता रहा है जिन्हें कई सारे काम एक साथ ही करने होते हैं। ब्लैकबेरी हब से कई सारे अलग अलग एप्लीकेशन चाहे वह ईमेल हो या गेम्स को बिलकुल अलग अलग रखा जा सकता है इस्तेमाल किया जा सकता है। अच्छी खबर यह भी है के लांच होने के बाद ही इसके पास एक लाख से ज्यादा अप्प्स रेडी थे।
ब्लैकबेरी ओ एस 
ब्लैकबेरी ओ एस 10 फ़ोन महंगा तो है ही इसके बाकी फीचर्स, चाहे वह एंड्राइड सरीखे समुन्नत प्रोसेसर हों या स्क्रीन साइज़ अभी भी ज़माने के पीछे ही चल रहे हैं।

४ . विंडोज फ़ोन 8: फर्स्ट टाइम स्मार्ट फ़ोन इस्तेमाल करने वालों के लिए सबसे अच्छा  ओ एस है जो अपने लाइव टाइल इंटरफ़ेस से आपका मन मोह सकता है। सारे अपडेट आपको होम स्क्रीन पर बड़े बड़े चोकौर बॉक्सेस  में मिल जाते हैं। चटक रंगों के इस्तेमाल से इसका उपयोग और रोचक हो जाता है। बैटरी की खपत बाकी के सभी ओ एस से कम है।
विंडोज 8 ओ एस 
लेकिन जब हम इसकी तुलना एंड्राइड के आधुनिकतम अनुभव से करते हैं तब विंडोज ओ इस पीछे छूट जाता है। विंडोज के अप्प्स की संख्या में काफी वृद्धि हुई है लेकिन दिल्ली अभी भी दूर है।

सही स्क्रीन साइज़ का चुनाव:

स्मार्ट फोंस के स्क्रीन साइज़ दिन ब दिन बड़े होते जा रहे हैं। आप तय कर लें की आपको कौन सा साइज़ सूट करेगा। अगर एक हाथ से इस्तेमाल की सुविधा चाहते हैं तो 4 इंच यह उससे छोटे स्क्रीन से भी काम चल जाएगा लेकिन आज के समुन्नत स्मार्ट फोंस की दुनिया में चार इंच से छोटा फ़ोन लेकर फ़ोन के फीचर्स का सही मज़ा नहीं ले सकते।

चाहे गेम्स हों फिल्म हों, टाइपिंग हो या अप्प्स का प्रबंधन ४ या उससे बड़ा स्क्रीन साइज़ इस्तेमाल को आसान ही नहीं मजेदार भी बना देता है। यह एक व्यक्तिगत चुनाव का मामला है लेकिन सारे विकल्पों को जांच परख कर ही निर्णय लें।

प्रोसेसर:

स्मार्ट फ़ोन का दिल और दिमाग उसका प्रोसेसर होता है। अब मॉडल देखकर फ़ोन खरीदने के जमाने गए, फ़ोन का प्रोसेसर क्या है उसका RAM कितना है, इन सब बातों की जानकारी आवश्यक हो गयी है। अगर आपके पास क्वैड कोर कुअलकॉमं स्नेपड्रैगन 600 हो तो यह और किसी ड्यूल कोर प्रोसेसर से बहुत ज्यादा काम कम समय में कर पायेगा। गेमिंग और मल्टीटास्किंग का मज़ा ही कुछ और होगा।
हाई एंड स्मार्ट फोंस आज 2GB RAM और 16 GB स्टोरेज के साथ ही आते हैं लेकिन 1GB RAM और 8 GB स्टोरेज भी अच्छा विकल्प है। मेगापिक्सेल की माया में न फंसें और तस्वीरें खुद लेकर देखें और परखें, 5-6 मेगापिक्सेल आम उपयोग के लिए पर्याप्त है।

बैटरी :

ज़रा सोचिये! सबकुछ हाई क्वालिटी है आपका फ़ोन सबकुछ कर सकता है लेकिन लंच टाइम हुआ नहीं के बैटरी ने दांत निपोर दिया। अब भला ऐसा संयंत्र किस काम का? स्मार्ट फोंस रक्त पिपासु होते हैं और इनको जितना बैटरी पिलाइए उतना ही कम है लेकिन ऐसे भी क्या जल्दी के हम इसका उपयोग ही न करने पायें। औसतन स्मार्ट फोंस की बैटरी ६ -७ घंटे तक चला करते हैं लेकिन कुछ एक आठ घंटे तक भी चल जाते है। आपकी उपयोगिता इसका पैमाना तो है ही इसके अलावा आपका यह जानना भी जरूरी है के बैटरी की पॉवर कितनी बताई गयी है।

2000 mAH से अधिक जो हो सब अच्छा है। यह भी पता करें के पॉवर सेविंग विकल्प फ़ोन में उपलब्ध है या नहीं। आश्वस्त हो लें के बैटरी निकालने की सुविधा है या नहीं, कई उच्च स्तरिय फ़ोन बैटरी निकालने की सुविधा नहीं देते। बैटरी लाइफ स्कोर के बारे में ऑनलाइन चेक करना भी एक अच्छा हल है।

स्मार्ट फ़ोन खरीदने से पहले थोडा सा होमवर्क कर लिया जाए तो चीजें काफी आसान हो सकती हैं और  विज्ञापनों और सेल्स मैन की बातों में आने से बचा जा सकता है।

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मंगलवार, 7 मई 2013

गूगल ग्लास (Google Glass)

दादाजी किसान थे और उन्हें चश्मे की जरूरत ही नहीं पड़ी। उनकी दिनचर्या निर्धारित रहती थी जिसमे रमें रहना ही उनकी ज़िन्दगी थी। सुबह चार बजे उठना बैलों को जगाना खुद के लिए कुछ करने से पहले अपने बैलों को अपने हाथों से काटी हुई कुट्टी खिलाना। दोपहर तक हल चलाकर जब आते तो उनका मिजाज़ थोडा गरम रहता कुछ गलती हुई नहीं के बरस पड़ते। खाना खाने के बाद थोडा आराम करते और फिर बैलों की खातिरदारी शुरू हो जाती। देखने में उन्हें कभी कोई दिक्कत पेश नहीं आई। वहीँ दूसरी तरफ दादी थीं के वो चश्में के बिना अधूरी थीं। इतना मोटा शीशे वाला चश्मा पहनती के जिन्हें अगर गलती से भी हम ट्राई करते तो तुरंत ही हमारी आखें दुखने लगतीं।  

चश्मा कहें, ऐनक कहें या कुछ और लोग आज भी इसे आखों के बीमारी की दवा मानते हैं। शहरों में हालाँकि इस दावे को न स्वीकारा जाये जहाँ ऐनक जीवन का हिस्सा इसलिये बने हैं क्यूंकि लोग इसकी उपयोगिता से वाकिफ हैं और सबसे जरूरी बात उनके पास खर्च करने के लिए पैसे हैं। गौर करने वाली बात यह है के गूगल सरीखी कंपनी अगर यह मानती है के उनकी नयी पेशकश गूगल ग्लास से लोगों को ऐनक के एक अनूठे प्रयोग का मौका मिलेगा तो यह बात देखने लायक होगी।

सिर पर पहनने वाले संयत्रों (HMD- Head-Mounted Display) की परिकल्पना इक्कीसवीं सदी के शुरू होते होते ही कर ली गयी थी और अगस्त २०११ में एक व्यावहारिक (प्रोटोटाइप) संयंत्र को पेश भी किया गया था हालाँकि ८ पोंड वजनी यह डिवाइस ज्यादा लोकप्रिय तो नहीं हो पाया लेकिन एक नयी शुरुआत हो चुकी थी। इस पूरे प्रयोग का मकसद था डाटा को डेस्कटॉप और लैपटॉप के शिकंजे से आज़ाद कर देना और सारी जानकारी सीधे हमारी आँखों के सामने पेश कर देना। गूगल जैसी कंपनी का इसमें शामिल हो जाना इस तकनीक के लिए जीवनदायी साबित हुआ है गूगल ग्लास प्रोजेक्ट से इस HMD तकनीक को नयी दिशा मिली है।  गूगल ग्लास बुनियादी तौर पर एक चश्मे में फिट किया हुआ कैमरा, माइक्रोफोन, डिस्प्ले, बैटरी है जो आपके मौखिक निर्देशों का पालन करता रहता है। आईये यह विडियो देखें और गूगल ग्लास को थोडा और समझने का प्रयास करें:  
                                  
पिछले साल अप्रैल में गूगल ग्लास का पहली बार परीक्षण शुरू किया गया जिसमे तकनीकी रूप से काफी नयी चीज़ों को जोड़ा गया था। गूगल इस बात के दावे पेश करता है के गूगल ग्लास की कीमतें आम स्मार्ट फ़ोन जितनी ही होगी और इसका वजन भी एक साधारण चश्मे जितना ही या फिर उससे भी कम होगा। HD विडियो प्लेयर से लैश इसमें वह सारी खूबियां होंगी जो एक अच्छे मोबाइल डिवाइस में मिलता है और शायद उससे भी अधिक।

गूगल ग्लास 
मसलन सूचनाओं के सम्प्रेषण का अनुभव एकदम जीवंत होगा। कैमरे में हूबहू आप वही तस्वीरें ले पायेंगे जो आप देख रहे होंगे। चलते फिरते बिना रुके आप मीटिंग्स का हिस्सा हो सकते है लोगो से बात कर सकते हैं उन्हें फाइल्स या सन्देश भेज सकते हैं सिर्फ बोलकर। अपने स्मार्ट फ़ोन को गूगल ग्लास से सिंक करके आप सूचनाओं का आदान प्रदान आसानी से कर पायेंगे। नए अप्प्स जो खास तौर पर गूगल ग्लास के लिए बनाये जा रहे हैं इससे इसकी उपयोगिता और बढ़ जायेगी।

"कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता ..." जी हाँ आलोचकों का मानना है के गूगल कभी भी एक डिजाईन कंपनी नहीं रही है और उससे एक बहुत अच्छे डिजाईन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की यह संयंत्र पोर्टेबल या पॉकेट फ्रेंडली तो नहीं पायेगा यहाँ मेरा मतलब कीमतें नहीं, रख रखाव की समस्या है। ऐनक भला कब और कहाँ कहाँ लगाये फिरेंगे आप। तय है के यह दुनिया से आपको जोड़े रखने में सक्षम होगा लेकिन आस पास होने वाली घटनाओं से आप पहले की तरह अपिरिचित रहेंगे। उदहारण के तौर पर सड़क पार करते समय आप आने जाने वाली गाड़ियों पर ध्यान न रखकर फेसबुक अपडेट चैक करते रहेंगे। पडोसी का हाल जानना अब भी मुश्किल है तब भी रहेगा हाँ! मौसम का हाल जानना सहज हो जाएगा। कहने का मतलब यह आपको आपके परिवेश से काट कर दुनिया से जोड़े रखेगा। अमूमन आज की सभी तकनीकें मिलजुल कर इसी जुडाव व अलगाव का खेल खेलने में व्यस्त हैं। 

अच्छा हुआ मेरे बाबा नहीं रहे वरना उन्हें भी अपने बैलों, अपने खेतों को छोड़कर विडियो चैट में व्यस्त रहना होता। दादी के मोटे चश्मे में यह तकनीक समा पाएगी या नहीं यह भी अभी तक गूगल ने बताया नहीं है।

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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

बिग डेटा (BIG Data)

सन १६१३ में जब रिचर्ड ब्रैथ्वैत ने अपनी किताब में पहली दफा कंप्यूटर शब्द का इस्तेमाल किया था उस समय इसके मायने बिलकुल इतर थे। कंप्यूटर से उन्होंने तात्पर्य ऐसे मशीन से निकाला था जो गणनाएं करने में निपुण था।  हिंदुस्तानी भाषा में कमोबेस मुनीम शब्द इसके बिलकुल करीब बैठता है। रोचक बात यह है के २०वीं  शताब्दी के शुरुआत तक कंप्यूटर के शब्दार्थ में कोई बदलाव नहीं आया। डाटा का संवहन और सञ्चालन बड़े स्तर पर कंप्यूटर (संगणकों) द्वारा ही सम्भव हुआ जो कालांतर में इतना विकसित हुआ है के आज हमें बिग डाटा को समझने और उसका सुचारू ढंग से उपयोग की जुगत ढूंढनी पड़ रही है।    

बड़ा डाटा या बिग डाटा से तात्पर्य डाटा के ऐसे प्रबल प्रवाह से है जो समय के साथ गुणात्मक वृधि करता हुआ असीमित हो चला है। किलो बाइट (kb) से शुरू हुआ डाटा ट्रान्सफर का सफ़र अब एक्सा बाइट तक पहुँच चुका है। साल २०१२ में ही अगर हम कुल डाटा प्रवाह की गणना करें तो यह एक्सा बाइट में जाता है। दूसरे शब्दों में मानव सभ्यता के विकास से लेकर २०११ तक के कुल डाटा को भी अगर हम इकठ्ठा करें तो यह साल २०१ २  के डाटा प्रवाह से कई गुणा कम साबित होगी। विश्व भर में प्रति व्यक्ति डाटा खपत में बहुत बड़ा बदलाव आया है और अब समस्या यह है की इस डाटा दानव को वश में कैसे किया जाए।  

विज्ञान हमेशा से हमें आगाह करता रहा है की इसका उपयोग वरदान और अभिशाप दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है और बिग डाटा के सम्बन्ध में भी यह बात सौ प्रतिशत सही साबित होती है। बिग डाटा का आकार बड़ा होना ही इसकी सबसे बड़ी खूबी  है इसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करके हम दुनिया का नक्शा ही बदल दे सकते है। चाहे कला हो या विज्ञान अगर हमारे पास सूचनाओं का विस्तृत भण्डार होगा तब हम न सिर्फ वर्तमान बल्कि भविष्य का आकलन भी सटीकता से कर पायेंगे। चाहे किसी उत्पाद सम्बंधित राय शुमारी हो या मौसम की पेचीदगी का आकलन, हमारे पास ऐसे बहुत सारे सवालों के सटीक जवाब मिलने शुरू हो जायेंगे जिनके विषय में आज हम सिर्फ कयासों की भाषा बोलते हैं। 

दूसरी तरफ इसके सबसे बड़े दुष्परिणामों में भी शुमार होगा इसकी व्यापकता जिसपे हमारा संपूर्ण नियंत्रण नहीं होगा। डाटा में गलतिओं की संभावनाएं ज्यादा होंगी और इसके दूरगामी असर होंगे। बीग डाटा हमारे जीवन का हिस्सा बना जा रहा है और हमें ऐसे जानकारों की बड़ी संख्या में आवश्यकता होगी जो इसका सार्थक विश्लेषण कर सकें और इसके बुरे प्रभाओं से हमें आगाह कर सकें।


वैल्यू 
मैट्रिक्स 
1000
k
किलो 
10002
M
मेगा 
10003
G
जिगा 
10004
T
टेरा 
10005
P
पेटा 
10006
E
एक्सा 
10007
Z
जेट्टा 
10008
Y
योट्टा 


रविवार, 28 अप्रैल 2013

तकनीक की दुनिया और हिंदी लेखन

तकनीक पर आधारित लेखों का सरस होना इसकी आवश्यक आवश्यकताओं में शुमार नहीं है। यह अपेक्षा की जाती है के विज्ञान तथ्यों की भाषा बोले और यह भाषा अगर बेरहम भी हो तो मान्य होगी। इस परंपरागत सोच में बदलाव के बीज बोये जा रहें हैं और इसका श्रेय आज के सम्मुन्नत माध्यमों को मिलना चाहिए जिसने लेखक और पाठक दोनों को बड़ी तेजी से आपस में जोड़ने का काम किया है। अंग्रेजी भाषा में लिखे गए आज के तकनीकी या समालोचनात्मक लेखों ने एक नयी सरस विधा को जन्म देने का संकेत दिया है। जिसके बड़े सार्थक परिणाम सामने आये हैं। फ्रेंच, स्पेनिश और अन्य पाश्चात्य भाषाएँ बड़ी तेजी से इसका अनुकरण कर रहीं हैं और लोगों का रुझान इस बात का संकेत देता है की विज्ञान और कला का अगर सही मिश्रण किया जाए तो तकनीकी लेखन में अपार संभावनाएं हैं।

विश्वजाल पर हिंदी लेखन की परंपरा का विकास अब शुरू हो रहा है और जरूरत इस बात की है की हम भी इस लोकप्रिय एवं सार्थक लेखन पर गहराई से विचार करें जहाँ विज्ञान और कला क्रियात्मक रूप से एक दूसरे के पूरक बने। तकनीक सम्बन्धी हिंदी लेखन को हाशिये पर रख कर हम न सिर्फ हिंदी भाषा बल्कि उससे प्रभावित होने वाले करोडो लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे।



4G तकनीक का आगमन हमारी ज़िन्दगी पर गहरा प्रभाव डालने वाला है। जीवन का कोई पक्ष इससे अछूता नहीं रहेगा चाहे शिक्षा का माध्यम हो सरकार की नीतियां, चाहे टेलिकॉम सेक्टर हो या सामाजिक ढांचा सब तरफ  इसके  बहुआयामी असर होंगे। आवश्यकता इस बात की है की लोगों के पास पंहुच रही त्वरित सूचनाएँ उनकी भाषा में पंहुचे ताकि सूचनाओं का आदान प्रदान भी त्वरित हो। 

दुनिया में लगभग ६० करोड़ लोग हिंदी जानते समझते हैं जिसमे ५० करोड़ से ज्यादा भारत में है। विकिपीडिया यह कहता है के हिंदी एक विश्व भाषा बनने की तरफ अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकोंका मानना है के आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। कटु सत्य यह है की जैसे जैसे इन्टरनेट अपने पावं फैला रहा है और जिस रफ़्तार से इन्टरनेट पर हिंदी भाषा पढने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है उस हिसाब से हिंदी भाषा में सृजन और लेखन नहीं हो रहा। तकनीक सम्बन्धी लेखन की हालत तो और खस्ता है।

समय आ गया है जब विश्वजाल पर हिंदी लेखन को गंभीरता से लिया जाए और सृजन को बढ़ावा दिया जाये। हिंदी को नीरस अनुवादकों के चंगुल से निकालना भी एक चुनौती है जो हमारे सामने मुंह बाए खड़ी है। आइये विकिपीडिया के निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करते हुए हिंदी लेखन की परंपरा की नयी शुरुआत का शंखनाद करें जहाँ तकनीक की पेचीदगी को अपनी भाषा में सरलता से आम जन तक पंहुचाया जा सके :


"हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति

हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि - 

 - संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है
 - वह सबसे अधिक सरल भाषा है
 - वह सबसे अधिक लचीली भाषा है
 - वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं
 - वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है
 - हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।
 - हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्दरचनासामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं      अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि  
 हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
 - हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।
 - हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।
 - हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मुहताज नहीं रही।"

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

तकनीक का तड़का

दसवीं कक्षा में एक श्लोक पढ़ा था जिसमे यह समझाने का प्रयास किया गया था के मनुष्य को पहले निश्चित की तरफ देखना चाहिए, अनिश्चित तो अनिश्चित ही रहने वाला है:
     
     यो ध्रुवानि परितज्य अध्रुवानी निषेवते।
     ध्रुवानि तस्य नश्यन्ति, अध्रुवम नष्टमेव हि।।

आधुनिक जीवन और खास तौर से आज के तकनीक पर आधारित जीवन को अगर उपरोक्त श्लोक की तराजू पर तोला जाए तो एक बदलाव जो स्पष्ट दिखता है वो है निश्चितता और अनिश्चितता के बीच की धूमिल होती  दूरी। हर पखवाड़े बदल रही मोबाइल की दुनिया ने बदलाव की एक नयी परिभाषा गढ़ने का संकेत दिया है। बेहतर तकनीक का आना इसका सकारात्मक पहलू है वहीँ सहज ही दिग्भ्रमित हो जाना इसका नकारात्मक संकेत। भविष्य का आकलन तिमाहीयों में करके हम किस तरफ जा रहे हैं इसका जवाब अभी मिलना कठिन है लेकिन इस त्वरित बदलाव की दुनिया को इसके दुष्परिणामों से भी सतर्क रहना होगा।

आइये दर्शन दीर्घा से आगे बढे और देखें की मोबाइल ने कितनी नयी संभावनाओं को हवा दी है।लन्दन स्थित इनफोर्मा टेलिकॉम के हाल के सर्वेक्षण की अगर माने तो इसी साल के आखिर तक भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या १.१५ बिलियन से ऊपर हो जाएगी और इस तरह चीन को पटखनी देते हुए हम दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल बाज़ार बन जायेंगे। अब भला इस बहती गंगा में कौन सी कंपनी अपना हाथ गीला करने से बाज आएगी? इसका सीधा असर यह हुआ है भारत आज मोबाइल बाजार का केंद्र बिंदु बना बैठा है।

मोबाइल तकनीक की संभावनाओं की अगर हम बात करें तो यह तय है की आने वाले महीनों में इस पर हमारी निर्भरता और बढ़ जायेगी। 4G तकनीक जो धीरे धीरे अपने पाँव पसारने वाला है के आगमन के पश्चात बड़ी डाटा का ट्रान्सफर त्वरित और आसान हो जाएगा जिसके फलस्वरूप सूचनाओं का आदान प्रदान भी अत्यंत तीव्र और प्रभावशाली हो जाएगा। आम ज़िन्दगी पर इसका बड़ा गहरा प्रभाव पड़ेगा, रिच मीडिया जैसा के तस्वीर, विडियो, बड़े ऑनलाइन फाइल्स इत्यादि को ट्रान्सफर करने के लिए एक्सटर्नल हार्डवेयर ढोने की बातें पुरानी पड़ जाएगी। एक और सुखद बात यह होगी के डाटा स्टोरेज की आज की पद्दति में भी आमूलचूल बदलाव आ जाएगा। मेघ संगणना (cloud computing) यह सम्भव कर देगा की आप हमेशा अपने डाटा अथवा सूचना से जुड़े रहेंगे और इससे जुड़ने का सबसे सरल माध्यम मोबाइल होगा। यह समझना भी अब मुश्किल नहीं है के दफ्तर के काम काज बड़े पैमाने पर और बड़ी सहजता के साथ मोबाइल की समुन्नत तकनीक के द्वारा सम्भव हो जाएगा।

हमें इस बात के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा की बड़ी सुविधाएं लेकर आती इन तकनीकों के साथ बड़ी समस्याएँ भी आएँगी। मसलन डाटा को सुनियोजित करना एक बड़ी कठिनाई होगी, डाटा की सुरक्षा, सूचनाओं के महाजाल में कौन सी सूचनाएं हमारे काम की हैं यह समझना आसान नहीं होगा। इसकी गंभीरता शायद अभी हमें पता नहीं चल पा रही लेकिन यकीन मानिए बड़ी डाटा (Big Data) जिसकी परिकल्पना लगभग एक दशक पहले की गयी थी इतनी बड़ी दुविधाओं का पिटारा खोलेगा के सबकुछ गड-मड हो जाएगा। बिग डाटा क्या है इसके विषय में हम अगले ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करेंगे।

मोबाइल तकनीक जितनी तेजी से अपने रूप बदल रहा है इससे यह बात साफ़ हो जाती है  के इस सम्बन्ध में बहुत दूर की भविष्यवाणी सम्भव नहीं। लेकिन वर्तमान में हो रहे बदलाओं के आधार पर अगले कुछ तिमाहियों के सम्बन्ध में अटकलें जरूर लगाईं जा सकती है।