मंगलवार, 7 मई 2013

गूगल ग्लास (Google Glass)

दादाजी किसान थे और उन्हें चश्मे की जरूरत ही नहीं पड़ी। उनकी दिनचर्या निर्धारित रहती थी जिसमे रमें रहना ही उनकी ज़िन्दगी थी। सुबह चार बजे उठना बैलों को जगाना खुद के लिए कुछ करने से पहले अपने बैलों को अपने हाथों से काटी हुई कुट्टी खिलाना। दोपहर तक हल चलाकर जब आते तो उनका मिजाज़ थोडा गरम रहता कुछ गलती हुई नहीं के बरस पड़ते। खाना खाने के बाद थोडा आराम करते और फिर बैलों की खातिरदारी शुरू हो जाती। देखने में उन्हें कभी कोई दिक्कत पेश नहीं आई। वहीँ दूसरी तरफ दादी थीं के वो चश्में के बिना अधूरी थीं। इतना मोटा शीशे वाला चश्मा पहनती के जिन्हें अगर गलती से भी हम ट्राई करते तो तुरंत ही हमारी आखें दुखने लगतीं।  

चश्मा कहें, ऐनक कहें या कुछ और लोग आज भी इसे आखों के बीमारी की दवा मानते हैं। शहरों में हालाँकि इस दावे को न स्वीकारा जाये जहाँ ऐनक जीवन का हिस्सा इसलिये बने हैं क्यूंकि लोग इसकी उपयोगिता से वाकिफ हैं और सबसे जरूरी बात उनके पास खर्च करने के लिए पैसे हैं। गौर करने वाली बात यह है के गूगल सरीखी कंपनी अगर यह मानती है के उनकी नयी पेशकश गूगल ग्लास से लोगों को ऐनक के एक अनूठे प्रयोग का मौका मिलेगा तो यह बात देखने लायक होगी।

सिर पर पहनने वाले संयत्रों (HMD- Head-Mounted Display) की परिकल्पना इक्कीसवीं सदी के शुरू होते होते ही कर ली गयी थी और अगस्त २०११ में एक व्यावहारिक (प्रोटोटाइप) संयंत्र को पेश भी किया गया था हालाँकि ८ पोंड वजनी यह डिवाइस ज्यादा लोकप्रिय तो नहीं हो पाया लेकिन एक नयी शुरुआत हो चुकी थी। इस पूरे प्रयोग का मकसद था डाटा को डेस्कटॉप और लैपटॉप के शिकंजे से आज़ाद कर देना और सारी जानकारी सीधे हमारी आँखों के सामने पेश कर देना। गूगल जैसी कंपनी का इसमें शामिल हो जाना इस तकनीक के लिए जीवनदायी साबित हुआ है गूगल ग्लास प्रोजेक्ट से इस HMD तकनीक को नयी दिशा मिली है।  गूगल ग्लास बुनियादी तौर पर एक चश्मे में फिट किया हुआ कैमरा, माइक्रोफोन, डिस्प्ले, बैटरी है जो आपके मौखिक निर्देशों का पालन करता रहता है। आईये यह विडियो देखें और गूगल ग्लास को थोडा और समझने का प्रयास करें:  
                                  
पिछले साल अप्रैल में गूगल ग्लास का पहली बार परीक्षण शुरू किया गया जिसमे तकनीकी रूप से काफी नयी चीज़ों को जोड़ा गया था। गूगल इस बात के दावे पेश करता है के गूगल ग्लास की कीमतें आम स्मार्ट फ़ोन जितनी ही होगी और इसका वजन भी एक साधारण चश्मे जितना ही या फिर उससे भी कम होगा। HD विडियो प्लेयर से लैश इसमें वह सारी खूबियां होंगी जो एक अच्छे मोबाइल डिवाइस में मिलता है और शायद उससे भी अधिक।

गूगल ग्लास 
मसलन सूचनाओं के सम्प्रेषण का अनुभव एकदम जीवंत होगा। कैमरे में हूबहू आप वही तस्वीरें ले पायेंगे जो आप देख रहे होंगे। चलते फिरते बिना रुके आप मीटिंग्स का हिस्सा हो सकते है लोगो से बात कर सकते हैं उन्हें फाइल्स या सन्देश भेज सकते हैं सिर्फ बोलकर। अपने स्मार्ट फ़ोन को गूगल ग्लास से सिंक करके आप सूचनाओं का आदान प्रदान आसानी से कर पायेंगे। नए अप्प्स जो खास तौर पर गूगल ग्लास के लिए बनाये जा रहे हैं इससे इसकी उपयोगिता और बढ़ जायेगी।

"कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता ..." जी हाँ आलोचकों का मानना है के गूगल कभी भी एक डिजाईन कंपनी नहीं रही है और उससे एक बहुत अच्छे डिजाईन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की यह संयंत्र पोर्टेबल या पॉकेट फ्रेंडली तो नहीं पायेगा यहाँ मेरा मतलब कीमतें नहीं, रख रखाव की समस्या है। ऐनक भला कब और कहाँ कहाँ लगाये फिरेंगे आप। तय है के यह दुनिया से आपको जोड़े रखने में सक्षम होगा लेकिन आस पास होने वाली घटनाओं से आप पहले की तरह अपिरिचित रहेंगे। उदहारण के तौर पर सड़क पार करते समय आप आने जाने वाली गाड़ियों पर ध्यान न रखकर फेसबुक अपडेट चैक करते रहेंगे। पडोसी का हाल जानना अब भी मुश्किल है तब भी रहेगा हाँ! मौसम का हाल जानना सहज हो जाएगा। कहने का मतलब यह आपको आपके परिवेश से काट कर दुनिया से जोड़े रखेगा। अमूमन आज की सभी तकनीकें मिलजुल कर इसी जुडाव व अलगाव का खेल खेलने में व्यस्त हैं। 

अच्छा हुआ मेरे बाबा नहीं रहे वरना उन्हें भी अपने बैलों, अपने खेतों को छोड़कर विडियो चैट में व्यस्त रहना होता। दादी के मोटे चश्मे में यह तकनीक समा पाएगी या नहीं यह भी अभी तक गूगल ने बताया नहीं है।

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