सोमवार, 21 जनवरी 2013

माइक्रोमैक्स कैनवास 116 HD

माइक्रोमैक्स ने एक बड़ा उलटफेर करते हुए एक धमाकेदार फ़ोन को भारतीय बाज़ारों में उतारा है। माइक्रोमैक्स के सीईओ श्री दीपक मेहरोत्रा ने आज प्रेस विज्ञप्ति में बताया के उनकी पूरी कोशिश होगी के 2013 में माइक्रोमैक्स 5 इंच स्मार्ट फ़ोन सेगमेंट का लीडर बने। पिछली तिमाही का हवाला देते हुए उन्होंने यह बात समझाने के भरसक कोशिश की है के सैमसंग जैसी धाकड़ खिलाडियों को भी आने वाले दिनों में और प्रतिस्पर्धी होना पड़ेगा।  आम लोगों के दिलों में घर बना चुकी देसी कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय खिलाडिओं को सीधी टक्कर देने की ठान ली है। माइक्रोमैक्स इसी साल लगभग तीस नए स्मार्ट फ़ोन मॉडल बाज़ार में उतारने की बात कर रही है। उधर कार्बन और जेन सरीखी कंपनियों के भी काफी प्रोडक्ट लांच होने वालें हैं।

बहरहाल, माइक्रोमैक्स कैनवास 116 HD एक तकनीकी रूप से सशक्त फ़ोन होगी जो पहले ही लोकप्रिय हो चुके माइक्रोमैक्स कैनवास 110 की पृष्टभूमि पर ही बनाया गया है। इसकी खसियतों में शुमार होंगा :
माइक्रोमैक्स कैनवास 116 HD
1.2 GH  का क्वैड कोर प्रोसेसर जो सबसे शक्तिशाली स्मार्ट फ़ोन प्रोसेसर में से एक है। माइक्रोमैक्स कैनवास 116 HD में पहली बार 1GH  का RAM होगा जो इसकी स्मूथनेस को और बढ़ाएगा। एंड्राइड 4.1 जेली बीन जो 4.2 में अपग्रेड किया जा सकेगा। 5 इंच का HD IPS स्क्रीन जिसका रेसोलुसन (1280x720) और 16.7 मिलियन कलर डेप्थ के साथ माइक्रोमैक्स का सबसे अच्छा स्क्रीन होगा।  इसकी पॉवरफुल बैटरी 2100 mAH की होगी। जहाँ तक कीमतों का प्रश्न है माइक्रोमैक्स ने हमेशा बाज़ार को चौकाया है और इस बार भी वह कुछ ऐसा ही करने जा रही है। माइक्रोमैक्स कैनवास 116 HD अपनी सारी खूबियीं के साथ उपलब्ध होगा लगभग रु 15,000 में।  



माइक्रोमैक्स कैनवास 116 HD की बुकिंग 26 जनवरी से शुरू होने के उन्वान हैं और फ़रवरी पहले सप्ताह से यह बाजारों में उपलब्ध होगा। ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें और सीधा  माइक्रोमैक्स वेबसाइट पर जाएँ http://www.micromaxinfo.com/mobiles/smartphones.

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

रु 10,000 से कम दामों में कुछ कड़क टेबलेट्स

हालात ऐसे हैं के टेबलेट खरीदने की सोच भर लीजिये कंपनियां आपको सूंघ लेंगी कुछ न कुछ उनके पास ऐसा होगा जो आपको थमा दिया जाएगा। बड़े शहरों की चकाचौंध में टेबलेट कारोबार फलफूल रहा है। कृत्रिम चमक में बुराइयां आसानी से छिप जाती हैं। गँवई परिवेश जहां इन मासूम संयत्रों की सहन शक्ति की परीक्षा होगी ये कहाँ तक सक्षम होंगे वक़्त ही बताएगा।  क्या टेबलेट मोबाइल जैसी सफलता दुहरा पायेगा यह कहना अभी  कठिन है।         

आधारभूत संरचनाओं की कमी किसी से छिपी नहीं है। एक तरफ जहाँ लुका छुपी खेलती चपल चंचला बिजली की लीलाएं स्तुत्य है, वहीँ ब्रॉडबैंड इयर की राह देखती आम जनता की बैंड मंहगाई ने बजा रखी है। बाज़ार पंहुचते-पंहुचते  नोटों की गड्डियाँ जेब से ऐसे हवा हो जा रही हैं जैसे गधे के सिर से सींग। सरकार का जी अभी भरा नहीं है, डीजल, गैस और पेट्रोल के दाम उन्हें फिर कम लगने लगे हैं। रेलवे भी अब आम आदमी का हाथ झटक सरकारी किलेबंदी की तरफ कूच कर रही है। जनता अब टेबलेट खा के काम पे जाए या टेबलेट समीक्षा की खुश फहमी पाले समझ नहीं पा रही।

खैर, जब तकनीक की बात हो तब सिर्फ तकनीक की ही बात की जानी चाहिए और यही उचित है। आश्चर्यजनक रूप से सारी विपदाओं आपदाओं के बावजूद भारत दुनिया के ऐसे देशों में शुमार है जिसके तकनीकी विकास का लोहा सब मानते हैं। बीते साल स्मार्ट फ़ोन की लोकप्रियता इतनी बढ़ी है के बिजली का संकट, इन्टरनेट कनेक्टिविटी की सीमायें जैसे बुनियादी सवाल बेमानी लगने लगे हैं। भारत आज स्मार्ट फ़ोन का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। इस विकास को अगर हम पृष्टभूमि माने तो यह लगने लगता है के टेबलेट जैसे समुन्नत संयंत्रों के विकास की भारत में काफी संभावनाएं हैं, सारी मूलभूत परेशानियों के बावजूद। 

आइये कुछ ऐसे टेबलेट्स के बात करें रु दस हज़ार से कम दामों में भारतीय बाजारों में उपलब्ध हैं:

5. माइक्रोमैक्स फन बुक टॉक P350

गूगल, एप्पल, सैमसंग, सोनी जैसी दिग्गज टेक कंपनियों का दुनियाभर में बोलबाला रहा है और यह बिलकुल अप्रत्याशित था के देसी टेबलेट निर्माता कभी अपनी पकड़ इस गला काट प्रतिस्पर्धा में बना पायेंगे। लेकिन ऐसा ही हुआ है। माइक्रोमैक्स आज यह दावा करने से गुरेज नहीं कर रही के वह एक लाख टेबलेट हर महीने बेचते हैं और इस बाज़ार में सैमसंग के बाद उनका स्थान है।


माइक्रोमैक्स फन बुक टॉक 7 इंच केटेगरी एक सक्षम टेबलेट होने का संकेत देता है। एंड्राइड 4.0, 1GHz का प्रोसेसर, 512 का RAM, 4GB की इंटरनल स्टोरेज क्षमता और 32 GB की एक्सपेंडेबल स्टोरेज कापबिलिटी इसे एक उम्दा प्रोडक्ट बनाती है। जैसा के नाम से स्पष्ट है यह टेबलेट सिम सपोर्ट करता है और आप 2G  का इस्तेमाल बखूबी कर सकते हो। सनद रहे के यह 3G सपोर्ट नहीं करता। एक बात जो इसे कम लोकप्रिय बनाती है वह है 512MB का RAM, लेकिन इसकी अन्य उपयोगिता और सबसे बड़ी बात इसकी कीमत इसे एक विजेता बनाती है। रु 7,499 में आपके पास एक बेहतरीन विकल्प है।

4. HCL ME Tablet U1

बजट टेबलेट्स की दौर में HCL का शामिल होना पिछले साल एक न्यूज़ से कम नहीं था। शुरूआती सफलता की जहाँ तक बात है उतनी उत्साहवर्धक नहीं रही लेकिन HCL के उत्पादों की गुणवत्ता हमेशा से अच्छी रही है। हालाँकि हम जिस मोडेल की चर्चा कर रहे है उसका अपडेटेड विकल्प HCL ME II भी काफी अरसे से बाज़ार की शोभा बढ़ा रहा लेकिन वह हमारी इस समीक्षा की प्राइस रेंज में नहीं आता। 


HCL ME u1
एंड्राइड ICS और 1GHz के कोर्टेक्स A8 प्रोसेसर के साथ आपको 512MB का RAM और एक 7 इंच (800x480) का बढ़िया स्क्रीन मिलता है।  3600 mAH बैटरी से आपको ज्यादा उपयोग करने की सुविधा मिल पाती है। 2MP कैमरा, 4GB की इंटरनल मेमोरी जो एक्सपेंडेबल है 32GB तक।  इसकी प्लास्टिक फील हालाँकि इसके लुक को थोडा कमतर बनाती है। रु 6998 में उपलब्ध यह मशीन एक कारगर प्रतियोगी है।

3. स्वाइप 3D Life Tab X74 3D


दस हज़ार से कम की टेबलेट्स की बात करने का यह मतलब कतई नहीं है यहाँ आपको चौंकाने वाले उत्पाद नहीं मिलेंगे। बाज़ार का जैसा मूड चल रहा हर निर्माता अब इसी फिराक में है के नया क्या किया जाये कैसे उपभोक्ताओं की नस पकड़ी जाए। स्वाइप 3D Life Tab X74 3D इस पहल का एक जीता जगता उदहारण है।



कैलिफोर्निया स्थित इस ब्रांड ने रु 5,999 में 3D फीचर के साथ यह टेबलेट बाज़ार में उतारा है। 3D ग्लासेज फ्री। एंड्राइड ICS, 1.5GH का प्रोसेसर और 512 MB का RAM इसे हमारे अन्य टेबलेट्स के समकक्ष लाते हैं। 3D की उपयोगिता इसके TFT स्क्रीन पर बहुत ख़ास नहीं है लेकिन हाँ इसे एक अलग पहचान ज़रूर देती है। परफॉरमेंस में यह थोडा स्लो रह जाता है लेकिन लुक्स अच्छे हैं। 

2. कार्बन मार्वल स्मार्ट Tab9

देसी ब्रांड कार्बन ने पिछले कुछ महीनों में ही अपनी उपस्थिति का एहसास कराया है। स्मार्ट फोंस में धीरे धीरे अपनी पकड़ मजबूत करती हुई अपने पैर टेबलेट सेगमेंट में भी जमा रही है। अच्छा प्रोडक्ट अच्छे दामों में यही शायद इनका उद्देश्य है। और पिछले कुछ दिनों में इनके बड़ी स्क्रीन वाले स्मार्ट फ़ोन ने काफी अच्छा कारोबार किया है। 


कार्बन मार्वल स्मार्ट Tab9 एक एंड्राइड ICS बेस्ड 9 इंच (800x480) टेबलेट है जिसका प्रोसेसर 1.2GB. 1.3 MP का फ्रंट फेसिंग कैमरा भी ओके है। HD आउट पुट की जहाँ तक बात है आपको एक डिसेंट एक्सपीरियंस मिलता है। 3G सपोर्ट इसे एक स्मूथ उत्पाद बनाता है। 


1. Acer Iconia B1

16 जनवरी 2013 को एसर ने अपना यह मॉडल भारतए बाजारों में पेश किया है जिसको हाथों हाथ लिया जा रहा है। चाहे आप इसके स्क्रीन की बात करें या इसकी कार्यकुशलता की यह एक बड़ा उलट फेर करने में सक्षम है। जिस प्राइस रेंज की बात हम यहाँ कर रहे हैं उसमे ऐसे उत्पाद के आगमन से प्रतिस्पर्धा और गरमाएगी इसमें कोई शक नहीं।

Acer Iconia B1  7 इंच का टेबलेट है जिसका 1024x600p का स्क्रीन इसे दस हज़ार से कम दामों में उपलब्ध टेबलेट्स का सबसे बढ़िया स्क्रीन है। बात यही ख़तम नहीं होती यह एक एंड्राइड जेली बीन टेबलेट है जो इस प्राइस रेंज में सबसे पहले टेबलेट्स में से एक है। 8GB की इंटरनल मेमोरी जो 32GB तक एक्सपेंडेबल है एक स्टैण्डर्ड फीचर है। 1.2GH  का ड्यूल कोर प्रोसेसर इसे एक फ़ास्ट टेबलेट बनाता है। Wi-Fi, ब्लूटूथ 4.0 इत्यादि इसके अन्य स्टैण्डर्ड फीचर हैं।
इसकी डाउनसाइड की बात करें तो इसकी 2,710mAh की बैटरी और 512 MB का RAM से मन थोडा छोटा हो जाता है। लेकिन इस प्राइस रेंज के सबसे समुन्नत टेबलेट्स में यह बेशक शुमार है। इसकी कीमत रु 7,999 रखी गयी है।

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रविवार, 13 जनवरी 2013

मेघ संगणना (क्लाउड कंप्यूटिंग) के मिथक


पचास के दशक से ही मेघ संगणना (क्लाउड कंप्यूटिंग) के बारे में जानकारों ने सोचना शुरू कर दिया था। कंप्यूटर को एक्सटर्नल टर्मिनल से जोड़ने की पहल हो या थिन क्लाइंट को उपयोग में लाने जाने वाली संभावनाओं की बात  क्लाउड कंप्यूटिंग शुरू से ही कंप्यूटर विशेषज्ञों के लिए रोमांच का विषय रहा है। मेघ संगणना (क्लाउड कंप्यूटिंग) जुमले का उपयोग कैसे शुरू हुआ इसकी तिथि अज्ञात है लेकिन क्लाउड को इन्टरनेट का संकेत के रूप में पहचान 1994 में ही मिल चुकी थी।  मेघ संगणना की परिभाषा विकिपीडिया इस प्रकार देता है:

"क्लाउड कम्यूटिंग (Cloud Computing) या मेघ संगणना वास्तव में इंटरनेट-आधारित प्रक्रिया और कंप्यूटर ऐप्लीकेशन का इस्तेमाल है। गूगल एप्स क्लाउड कंप्यूटिंग का एक उदाहरण है जो बिजनेस ऐप्लीकेशन ऑनलाइन मुहैया कराता है और वेब ब्राउजर का इस्तेमाल कर इस तक पहुंचा जा सकता है।

इंटरनेट पर सर्वरों में जानकारियाँ (अनुप्रयोग, वेब पेजेस, प्रोग्राम इत्यादि सभी) सदा सर्वदा के लिए भंडारित रहती हैं और ये उपयोक्ता के डेस्कटॉप, नोटबुक, गेमिंग कंसोल इत्यादि पर आवश्यकतानुसार अस्थाई रूप से संग्रहित रहती हैं। इसे थोड़ा विस्तारित और सरल रूप में कहें तो सीधी सी बात है कि अब तक जो सॉफ्टवेयर प्रोग्राम आप स्थानीय रूप से अपने कम्प्यूटर और लैपटॉप-नोटबुक पर संस्थापित करते रहे थे, अब इनकी कतई आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि ये सब सॉफ्टवेयर अब आपको वेब सेवाओं के जरिए मिला करेंगी। यही नहीं, गूगल गियर जैसे अनुक्रमों के जरिए आपको इस तरह की बहुत सारी सुविधाएं ऑफ़लाइन भी मिला करेंगीं।"



तकनीक जगत पिछले कुछ सालों में मेघ संगणना को लेकर काफी उत्साहित रहा है। कॉर्पोरेट जगत  ने जिस तरह इस नयी तकनीक को स्वीकारा है मेघ संगणना के आयाम ही बदल गए हैं। आने वालों सालों में यह एक ताकतवर तकनीक बनकर उभरेगा इसकी संभावनाएं प्रबल हैं। इसकी खूबियों पे अगर नज़र डालें तो बतौर विकिपीडिया क्लाउड कंप्यूटिंग कंपनियों के प्रौद्योगिकी खर्च में कमी लाता है, क्योंकि इसे संबद्ध ऐप्लीकेशन सदस्यता शुल्क चुका कर ऑनलाइन के जरिये किराए पर लिया जा सकता है। क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक समय की बचत, इन्फ्रास्ट्रक्चर लागत में कमी, डाटा भंडारण में सुगमता, ऐप्लीकेशन प्रबंधन खर्च आदि में अहम भूमिका निभाती है। क्लाउड कम्प्युटिंग के किराये का मॉडल भी बहुत सुविधाजनक है। यहां तक कि इसे एकाध घंटे के लिये किराये पर लिया जा सकता है।

भविष्य में मेघ संगणना से काफी अपेक्षाएं लगई जा रही हैं और आम ज़िन्दगी में इसकी छाप पड़ेगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसकी सुविधा-सीमाओं का आकलन करें तो पता लगता है के जबतक इसकी खामियों का सही अंदाजा न हो  मेघ संगणना की उपयोगिता का सही आकलन सम्भव नहीं। पिछले दिनों खबर यह आई के नकली क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विसेज से कई बड़ी कंपनिया सकते में है। ओरेकल के लार्री एल्लिसन ने क्लाउड मेघ संगणना की अहमियत पर सवालिया निशान लगाते हुए इसे अप्रासंगिक और फ़ालतू "complete gibberish" करार दिया। उन्हें इस पूरी प्रक्रिया को दुबारा निरिक्षण की आवश्यकता महसूस हुई जिसे क्लाउड वाशिंग का नाम दिया गया।


बीते साल (2012) की प्रगति का आकलन करें तो मेघ संगणना के कई मिथक टूटे और कई नयी परिभाषाओं का जन्म हुआ जैसे हाइब्रिड क्लाउड कंप्यूटिंग की पहल हुई। जहाँ एक तरफ amazon.com, HP और Google सरीखी कंपनियों  ने इसे लोकप्रिय बनाने में मदद की वहीँ उपभोक्ताओं द्वारा भी इसे एक सरल और सापेक्षिक होने के कारण स्वीकारा गया।  मेघ संगणना  के सबसे बड़े मिथक इस प्रकार सामने आये:

मेघ संगणना सुरक्षित नहीं है: इस बात की आशंका शुरू से ही थी डाटा संग्रह अगर अपने वश में नहीं होगा तो सुरक्षा की सीमाओं का निर्धारण भला कैसे हो? मेघ संगणना  की सुविधा देने वाली कंपनियों को यह समझाने में हमेशा परेशानी होती है। यथार्थ यह है के जिस तरह के सुरक्षा उपाय हम पारंपरिक कंप्यूटर सुविधाओं के लिए करते हैं बस उतनी ही सुरक्षा मेघ संगणना के लिए भी पर्याप्त होगी। इसमें सुविधाएं अधिक है लागत कम और जोखिम भी अपेक्षाकृत कम हैं। 

डाटा पर कंट्रोल नहीं:  यह समस्या बहुत हद तक पहली समस्या के साथ ही शुरू होती है। सच्चाई इसके उलट है, डाटा की पंहुच लगभग सार्वभौम हो जाती है और भोगोलिक सीमाओं का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। क्लाउड होस्टिंग प्रोवाइडर के द्वारा ही आपको सारी तकनीकी सपोर्ट भी मिलता है जो सुवधाओं को स्मूथ बनाने में आपकी मदद करता है। डाटा का एन्क्रिप्टेड और सेगमेंटेड होने से बड़े साइज़ के डाटा को भी सुचारू रूस से इस्तेमाल आसान हो जाता है। हाँ जहाँ तक सुविधाओं की फ्लेक्सिबिल्टी की बात है अभी और काम होना बाकी है।

कार्य संपादन- गति सुस्त: क्लाउड होस्टिंग अगर सही तरीके से डेप्लोय की जाए तो कार्य सम्पादन की गति को नियंत्रित करना बिलकुल कठिन नहीं है। समुन्नत Cisco UCS जैसे क्लाउड सर्वर इस पूरी परिक्रिया को काफी सुचारू और सुसंगठित तरीके से चलाने में सक्षम हैं। डेटाबेस का सही फ्रेगमेंटेशन और सही क्लाउड सर्वर का चुनाव यहाँ बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

भारतीय मोबाइल बाज़ार: बदलते मायने

सुखद बात यह है की सारे कयासों के बावजूद दुनिया दिसम्बर 2012 में ख़तम नहीं हुई और हमें अपने भविष्य के पुनरवलोकन का मौका मिला। पूरा 2012 भविष्यवाणियों का साल रहा जो पृथ्वी के विनाश की संभावनाओं के इर्द गिर्द घूमती रही।  नवाज़ भाई जो मेरे ऑफिस के पास केले बेचता था बेचारा उसने भी इस क़यामत की आहट को गंभीरता से लिया। उसने सारे केले 21 दिसम्बर के पहले ही बेचकर जो जी में आया उसपे खर्च किया, फिल्मे  देखीं, दोस्तों के साथ घुमा वगैरह, वगैरह। मुझसे जब उसकी मुलाकात जनवरी में हुई तो मैंने पूछा के आप तो दिखते ही नहीं हो आजकल। मैंने अनजाने में ही उसके दुखते रग पे कदम रख दिया था, उसने अपनी सारी  दास्तान खोल कर रख दी। नवाज़ भाई के  हिसाब से ये सारी ग़लती अमेरिका की थी उसी ने दुनिया को बरगलाया हुआ है और लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है वरना उसे पैसे उधार लेकर धंधा करने की नौबत नहीं आती। उसका गुस्सा उसकी भाषा के साथ टपका जा रहा था। देर न हो जाए का भान मुझे हुआ, मैंने सहानुभूति दिखाई और खिसकने में ही अपनी भलाई समझी।

बहरहाल, अगर हम 2012 के मोबाइल बाज़ार का आकलन करें तो कुछ चीज़ें स्पष्ट सामने आतीं हैं। मसलन, स्मार्ट फ़ोन का जितना विकास 2012 में हुआ अबतक कभी नहीं हुआ। फीचर फ़ोन का ज़माना लद रहा था और भारतीय बाज़ारों में बजट स्मार्ट फोंस की बाढ़ दिखी। भारतीय मोबाइल निर्माताओं के लिए गुजरा साल काफी उत्साहित करने वाला था जहाँ उन्होंने न सिर्फ विकल्पों की भरमार लगायी बल्कि उपभोक्ताओं के पाई-पाई का हिसाब दिया। एक सामानांतर व्यवस्था के रूप में उभरी। वहीँ दूसरी ओर नोकिया और मोटोरोला जैसे दिग्गजों की मिटटी पलीद हुई। अन्तर्राष्टीय मोबाइल निर्माताओं में सैमसंग छाया रहा। इन आंकड़ों को पृष्टभूमि मानकर आइये 2013 में होने वाले परिवर्तनों की बात करें।



भारत आज चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा हैंडसेट बाज़ार है और लगभग 12 प्रतिशत के सालाना विकास के साथ इस बाज़ार के त्वरित विकास की तीव्र संभावनाएं हैं। 2012 के मूड को ध्यान में रखते हुए 2013 मोटे तौर पे बजट स्मार्ट फोंस का साल रहेगा। रु 5000/- से रु 10,000/- तक स्मार्ट फोंस 3G से लैश होंगे और इनकी कार्यकुशलता काफी भरोसेमंद होगी। 3G की लोकप्रियता का सीधा मतलब है उपभोक्ताओं की अभिरुचि डाटा में बढ़ेगी और इन्टरनेट की पंहुच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक होगी।
मोबाइल के लिए 2013 एक अन्वेषण का साल रहेगा जहाँ जरूरतों के हिसाब से परिवर्तन होते रहेंगे जैसे वायरलेस चार्जिंग लोकप्रिय हो जाएगी, मोबाइल एप्लीकेशन की भरमार होगी, 4G तकनीक की दस्तक सुनाई पड़ेगी और डाटा ट्रान्सफर की रफ़्तार नयी उचाइयां छुएगा। मोबाइल सॉफ्टवेर और ज्यादा समुन्नत होंगे जो  बैटरी कम खर्च करेंगे, उपयोग में और सुविधाजनक होंगे और जिनका रख रखाव भी आसान होगा। कुल मिलाकर तकनिकी रूप से मोबाइल हमारे सबसे उन्नत उपकरणों में शुमार होगा।




एक बड़ा उलटफेर यह होगा के आज के फीचर फोंस बेचारे कहीं के नहीं रहेंगे, स्मार्ट फोंस की चकाचौंध में इनके गुम हो जाने की पूरी संभावना है। सस्ते स्मार्ट फोंस की उपलब्धता, उनकी कार्यकुशकता, अंतरजाल से जोड़ने की उनकी ताकत फीचर फोंस पे कहर बरपाएगी। अनुमान यह लगाया जा रहा है के सिर्फ 2013 में लगभग 25 करोड़ स्मार्ट फ़ोन बिकेंगे और इसकी हिस्सेदारी के लिए दुनिया की लगभग सभी नामी गरामी कंपनियां बाज़ार में उतरेंगी। इससे उपभोक्ताओं की चांदी तो होगी ही साथ ही स्मार्ट फोन इन्टरनेट से जुड़ने का प्राथमिक जरिया भी हो जाएगा। 

जहाँ तक अपेक्षाओं का सवाल है हैंडसेट बनाने वाली कंपनियां ये चाहेंगी के 3G नेटवर्क का विस्तार हो और इसे और भरोसेमंद बनाया जाये। मोबाइल सुविधा शुल्कों का भी ख़याल रखा जाए जिससे उपभोक्ता 3G के इस्तेमाल में रूचि दिखाएँ जो अबतक उत्साहवर्धक नहीं रहा है। 3G आज भी आम उपभोक्ताओं से काफी दूर है। रोमिंग शुल्कों को खतम करना भी एक सकारात्मक कदम होगा जिसपे सरकार को काफी काम करना है। 2013 के अंत तक दुनिया के लगभग 60 फ़ीसदी नेटवर्क पे 4G लांच हो जायेगा और इस विषय में हमारे देश में भी पहल करने का वक़्त आ चुका है। 

  

स्मार्ट फोंस के लिए एक सुचारू परितंत्र बनाने की पहल होनी चाहिए जिसमे सरकार की नीतियां, मोबाइल सुविधा देनेवाली कंपनियां और मोबाइल निर्माताओं में आपसी समन्वय आवश्यक होगा।

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

लुमिया सीरीज: नो किया फिर एस किया

आप एक अच्छे खिलाडी है आपका रिकॉर्ड अच्छा रहा है और निरन्तर आपने जीत हासिल की है। आपने एक और जीत हासिल कर ली। अच्छी कहानी है लेकिन मुझे ऐसी कहानी कुछ सिखा नहीं पाती, प्रेरित नहीं कर पाती। मुझे प्रेरणा मिलती है ऐसी कहानियों से जो दृढ निश्चय के साथ प्रारंभ हुआ और तमाम असफलताओं के बावजूद कहानी थमी नहीं आगे बढती रही। जिस तरह का साहस पिछले कुछ महीनों में नोकिया ने दिखाया है वह वाकई प्रेरणादायक है। ख़बरें आ रही थीं की बाज़ार में अपनी पकड़ कायम रखने के लिए उसे अपना फ़िनलैंड स्थित मुख्यालय भी बेचना पड़ा, कर्मचारिओ को निकालना पड़ा इत्यादि। 


नोकिया लुमिया 920


एप्पल और खासकर सैमसंग की तरफ से आ रही सीधी चुनौती का सामना करने के लिए यह क्या सही कदम था? इस बात का सारा दारोमदार उसकी लुमिया और आशा सीरीज के स्मार्ट फोंस पे होगा। इन दोनों सीरीज ने गत वर्ष लोगों में काफी उत्सुकता पैदा करने में सफलता पायी थी। इस नए वर्ष में क्या नोकिया के लिये लुमिया सीरीज एक गेम चेंजर बन पाएगा? आइये कुछ ख़बरों को इसका पैमाना मानते हुए इसका आकलन करें:
  • 2012 के आंकडों के अनुसार फ़िनलैंड में नोकिया लुमिया पूरी तरह सफल रही और ऐसे अनुमान लगाये जा रहे हैं के नए विकल्पों (820 और 920 सीरीज) के साथ यह अपने ट्रेंड को 2013 में कायम रखने में सफल होगा।  
  • 1 जनवरी 2013 को शंघाई के बाजारों में पेश की गयी नोकिया लुमिया 920 का सारा स्टॉक दो घंटे के अन्दर खरीदा जा चुका था। 


नोकिया लुमिया 920
  • नोकिया लुमिया 920 ने लन्दन में धूम मचाते हुए RIM (रिसर्च इन मोशन) की ताज़ातरीन पेशकाश ब्लैकबेरी 10 को पछाड़ा।
  • इ-कॉमर्स में दुनिया की अग्रणी कंपनी अमेज़न.कॉम (amazon.com) ने नोकिया लुमिया 920 को AT&T बेस्ट सेलर का ख़िताब दिया 
  • नोकिया लुमिया 920 दुनिया के सबसे अच्छे पांच स्मार्ट फोंस में अपनी जगह बनायी।
जहाँ तक भारतीय बाजारों की बात है लुमिया सीरीज की 820 और 920 को शायद 15 जनवरी को बाज़ार में उतारेगी। लोगों की उत्सुकता यह साफ़ दर्शा रही है के यह फ़ोन भारतीय बाजारों में भी सफल होगा, लेकिन यह उत्सुकता कैसे बिक्री में बदल पाएगी इसके विषय में नोकिया वालों को मनन करना पड़ेगा। ऐसा इसलिए के भारतीय उपभोक्ताओं की अपेक्षाएं जरूरी नहीं के बाकी देशों से मेल खाए। 
i फ़ोन 5, सैमसंग गैलेक्सी sIII और नोकिया लुमिया 920
भारत एक संवेदनशील बाज़ार रहा है और कीमतों का ख़याल रखना सबसे अहम् होगा। एप्पल ने दुनिया में चाहे जितनी सफलता पायी हो लेकिन जब भारतीय बाजारों से इसकी प्रतिक्रिया जाने तो यह उतनी सकारात्मक नहीं रही है। इसके कई कारण गिनाये जा सकते हैं लेकिन छप्पड़ फाडू कीमत एक बड़ा कारण है। नोकिया ने इस बात का शायद ख़याल रखा है और लगभग 35 हज़ार में यह फ़ोन अपनी सारी खूबियों के साथ आपका हो सकता है। इसके समकक्ष आने वाले फ़ोन चाहे नेक्सस 4 हो, HTC 8X हो, सैमसंग गैलेक्सी SIII या फिर i-फ़ोन5 सभी की कीमतें नोकिया लुमिया 920 के आस पास ही हैं और इनको टक्कर देना आसान नहीं होगा। ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें:
http://www.nokia.com/in-en/switchtolumia/?cid=ncomprod-fw-afc-na-nokialumia920_0x0-nokialumia-google-in-en-1todtmxa7ecd5

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बुधवार, 2 जनवरी 2013

अंतर्जाल के तीस साल

इन्टरनेट का इतिहास वास्तविक रूप से सफल संगणकों के विकास के साथ ही जुड़ा हुआ है जो 1950 की दसक का एक चमत्कारी आविष्कार था। स्टैनफोर्ड अनुसन्धान संस्थान, अमेरिका के उन सबसे पहली इकाइयों में से एक थी जहाँ अंतरजाल सम्बन्धी उपकरणों को न सिर्फ स्थापित किया गया बल्कि इस्तेमाल भी प्रारंभ हुआ। इस नयी तकनीक की लोकप्रियता पे किसी को कोई शक नहीं था और तुरंत ही इसने विश्वव्यापी आकार लेना शुरू कर दिया।
पहला संगणक 
अंतरजाल के इतिहास में 1973  का महत्व इस लिए बढ़ जाता है क्यूंकि इसी साल अंतरजाल ने पहली दफा अमेरिका से बाहर कदम रखा। इंग्लैंड और नार्वे को अंतरजाल से जोड़ने की कवायद इसी साल अरपानेट नामक एक बड़ी अमेरिकन कंपनी ने की थी। 1973 के शुरूआती महीनों में शुरू हुआ ये अंतर अटलांटिक प्रोजेक्ट नवम्बर 1973 तक अपना काम पूरा कर चुका था। 

अरपानेट 
 9.6kb  की क्षमता वाले एक डेडिकेटेड टेलीफोन लाइन ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन और नोर्वे की नेशनल डिफेन्स रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट को जोड़कर एक नए युग का सूत्रपात कर दिया। दीगर बात यह थी की शुरूआती सालों में अंतर्जाल के इस्तेमाल की सुविधा गिने चुने जानकार लोगों तक ही सीमित रही। सार्वजनिक तौर पर इसके इस्तेमाल की संभावनाओं पर हालांकि काफी काम होना शुरू हो गया था लेकिन एक सर्वसम्मति नहीं बन पायी थी।

1 जनवरी 1983 जिसे "फ्लैग डे" भी कहा जाता है इसी दिन से डिपार्टमेंट ऑफ़ डिफेन्स (DOD) ने डाटा पैकेट स्विचिंग की पेशकश की थी और अरपानेट की प्रोद्योगिकी को अलविदा कहा था। इन्टरनेट प्रोटोकॉल सूट  (IPS) की संचार प्रोद्योगिकी ने वर्ल्ड वाइड वेब (अंतरजाल) के चहुमुखी विकास का रास्ता साफ़ किया।   

1985 तक कुछ अमेरिकी (NSFNET) एवं ब्रिटिश (JANET) संस्थाओं ने इसका शैक्षनिक इस्तेमाल शुरू कर दिया था। बहस का मुद्दा अब ये हो रहा था के अंतरजाल कैसे एक प्रभावी जनसंपर्क माध्यम बने। नब्बे के दसक तक यह बात खुलकर सामने आ चुकी थी के अब व्यवसाय भी इसके प्रभाव से अछूता नही रहेगा।  अरपानेट जैसे बड़े खिलाडिओं का निष्क्रिय हो जाना और नयी तकनीकों के उपयोग ने इस बात का संकेत दे दिया के नयी परिभाषाएं गढ़ी जायेंगी और दृष्टिकोण में बदलाव अवश्यम्भावी होगा।
अंतरजाल 
1995 में फेडरल नेटवर्किंग कौंसिल (FNC) आधिकारिक रूप से इस नये संपर्क माध्यम का नाम इन्टरनेट रखा। इसके विकास की प्रक्रिया अब बहुआयामी हो चुकी थी जिसने हर आने वाले वर्ष में नयी उचाइयों को छुआ। पिछले दो दसकों में इस सार्वभौमिक संपर्क सूत्र ने जीवन के हर पहलू पर अपना असर छोड़ा है। चाहे विज्ञान हो या व्यवसाय, सरकारें हों या व्यक्तिविशेष हर क्षेत्र में मनुष्य ने आज अंतरजाल को आत्मसात कर लिया है।  
समग्र विकास की ओर 
इसका मतलब यह कतई नहीं है के अंतरजाल में विकास और सुधार की संभावनाएं नहीं हैं। अभी भी दुनिया के  बहुतेरे हिस्से इसकी अच्छाइयों से अपरिचित हैं। जबतक हम इसे समाज के समग्र विकास के उद्देश्य से नहीं जोड़ेंगे तबतक इसकी सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगा ही रहेगा। विज्ञान के दो पहलु होते है - सकारात्मक और नकारात्मक। अंतरजाल का विस्तार इस कदर हुआ है के इसकी कल्पना इसे बनाने वालों ने भी नहीं की थी। प्रश्न यह नहीं है के अंतरजाल का विस्तार कैसे हो, ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है के इसका सकारात्मक उपयोग कैसे किया जाए।

सही उपयोग 
 हम आज इन्टरनेट2 की बात कर रहे हैं जो शायद डाटा को और अधिक सक्रिय बनाएगा और इन्टरनेट की अगली पीढ़ी की संभावनाओं को नयी दिशा देगा। लेकिन इस बात पर नज़र रखना भी जानकारों के लिए उतना ही कठिन होगा के कैसे इसके दुरुपयोग से बचा जाए। जो प्रोद्योगिकी हमें इतनी जल्दी विकास की सीढियाँ चढ़ा सकता है उसके नतीजों और नकारात्मक पहलुओं पर विचार करना उनका निदान ढूँढना उतना ही महत्वपूर्ण होगा। 

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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मोबाइल कॉमर्स: एक नयी उड़ान



मोबाइल कॉमर्स की शुरुआत सन 1997 से हो गयी थी जब फ़िनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में कोको कोला ने मोबाइल मेसेज के द्वारा पेमेंट करने की सुविधा अपने स्वचालित दुकानों में कराई। इसी साल मेरिट बैंक ऑफ़ फ़िनलैंड ने भी मोबाइल बैंकिंग के शुरुआत का प्रस्ताव रखा।  


मोबाइल कॉमर्स एक अनोखी पहल 
1998 तक मोबाइल फोंस में डाउनलोड करने की काबिलियत आ गयी थी। सन 2000 तक मोबाइल कॉमर्स नए पायदान चढ़ चुका था जहाँ मोबाइल  ट्रेन टिकट से लेकर मोबाइल पार्किंग पेमेंट तक की बातें आम हो रही थीं। M-कॉमर्स पर पहला पाठ्यक्रम ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय 2003 में शुरू हो जाना एक बड़ा कदम था। इस तरह इस सदी के शुरुआत में ही दुनिया के विकसित देशों ने मोबाइल कॉमर्स एक मजबूत ज़मीन तैयार करनी शुरू कर दी थी। दीगर बात यह थी अभी भी यह समग्र विकास की संभावना से काफी दूर था।

विकासशील देश हमेशा की तरह बड़े अनमने ढंग से इस तकनीक को अपना रहे थे। आशंकाओं और अपेक्षाओं से घिरी सरकारें यह समझ नहीं पा रही थी के इसका स्वागत किया जाए या विकसित देशों की साजिश मान कर पल्ला झाड़ लिया जाए। भारत में उस समय टेलीफोन लाइन की अर्जी देने और फ़ोन का वास्तव में इस्तेमाल करने में कम से कम छः महीने लगते थे। पासपोर्ट बनवाना और फ़ोन कनेक्शन पाना संभ्रांत लोगों के चोंचले थे। हमारे गाँव में दो हज़ार की आबादी थी उस वक़्त, लोगो के पास पैसे भी थे लेकिन कुल मिलकर तीन लैंडलाइन कनेक्शन हुआ करता था। और जिसके पास फोंस थे उनके रिश्ते गाँव के सभी लोगों के साथ आश्चर्य जनक रूप से काफी अच्छे थे। या कहिये रखना पड़ता था। गाँव में एक बार भी फ़ोन इस्तेमाल करने का मौका तो नहीं मिल पाया लेकिन शौक ने घर कर लिया था।


पहली बार जब मैंने फ़ोन किया था उस समय कलकत्ता में था  समझ में नहीं आ रहा था के पप्पा से बात कैसे की जाए अपनी देसी बोली बज्जिका में बात करें या खड़ी हिंदी में। पता नहीं कोई सुन रहा हो तो क्या सोचेगा भला। एक रूपये का फ़ोन किया था और यकीन  मानिए चोगा हिलाने पे चार पांच सिक्के भरभरा के गिर पड़े थे। दोस्तों के साथ हमने वो पैसे उडाये थे। रोमांच था के कम ही नहीं होता था और कई दिन तक हम कम से कम एक बार वहां जाकर लोगो को फ़ोन पर बाते करते देख आते थे। हमारे घर लैंडलाइन फ़ोन कभी नहीं आया। मैंने मोबाइल लिया था 2004 में जब मैं स्नातकोत्तर की पढाई रबिन्द्र भारती विश्वबिद्यालय से कर रहा था। अब इसके क्या मायने थे मेरी ज़िन्दगी में इसकी चर्चा अलग से करनी होगी। 


बहरहाल, सन 1997 में ही भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की भी स्थापना हुई जिसे स्वायत्तता और सुविधा दोनों दी गयी ताकि देशहित को ध्यान में रखते हुए दूरसंचार जैसी संवदनशील 

विभाग की नीतियों को ज्यादा पारदर्शी बनाया जा सके। 


निर्वाण की ओर मोबाइल के साथ 
मार्च 2000 तक सरकार ने इस क्षेत्र को पर्याप्त प्रोत्सान देते हुए 74% तक के विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी। विदेशी निवेश के कारण प्रतिस्पर्धा बढी, कॉल दरों में कमी आनी शुरू हुई और 2001 तक भारत में तीन करोड़ से भी ज्यादा मोबाइल सेट्स की बिक्री हो चुकी थी। आज भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 80 करोड़ से ज्यादा है जो विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक है, वहीँ मोबाइल सेवाओं की दरें दुनिया में सबसे कम है।


मोबाइल एक जनमाध्यम 
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की सफलता पूरी तरह इस बात पर टिकी है के मोबाइल एवं टेबलेट की पँहुच कैसे ज्यादा से ज्यादा बढाई जा सके। इस कोशिश का सीधा असर मोबाइल कॉमर्स की लोक्रियता निर्धारित करेगा। इतने सारे सार्थक कदमो के बावजूद मोबाइल कॉमर्स की वृधि दर अपेक्षा से काफी कम रही है। बोस्टन कंसल्टिंग सरीखे बडे प्रेक्षकों का दावा है की भारत में मोबाइल कॉमर्स की प्रचुर संभावनाएं हैं और पक्के तौर पर इसके द्वारा 2015 तक 4.5 बिलियन डॉलर का कारोबार  होगा। मोबाइल उपयोगी वेबसाइट बनाने वाली अग्रणी कमर्शियल प्लेयर्स में शामिल snapdeal.com के VP-प्रोडक्ट अंकित खन्ना कहते हैं के मोबाइल साईट (msite) बनाने और उसे चलाने में उन्हें काफी परेशानियाँ आईं मसलन उपभोक्ताओं का भरोसा जीतना, क्रेडिट कार्ड की कमी, इन्टरनेट का स्लो होना इत्यादि। लेकिन ये सारी समस्याएँ मूल रूप से इ-कॉमर्स की ही है और रोचक बात यह है के इन सब नकारात्मकता के बावजूद इ-कॉमर्स का विस्तार होता ही चला जा रहा है। 


अंतरजाल 
तकनीक की अगर बात करें तो मोबाइल ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है कंप्यूटर की अपेक्षा और यह माध्यम आज जन माध्यम बन चूका है। इसमें नयी पहल की आवश्यकता है, नए विचारों की जरूरत है, नया दृष्टिकोण चाहिए होगा ताकि जहाँ भरोसे की बात आये वहां भी मोबाइल कॉमर्स खरा  उतरे। 
मोबाइल कॉमर्स: बढ़ता दायरा 
हमारी दिलचस्पी जितनी बढ़ेगी इसका उपयोग भी उतनी जल्दी परवान चढ़ेगा। समग्र विकास का सपना देश इस माध्यम के द्वारा देख सकता है। सरकारी अनुदान जैसी आवश्यक पहल में बिचौलियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। मोबाइल कॉमर्स और मोबाइल बैंकिंग के द्वारा इसपे अंकुश लगाया जा सकता है।
भविष्य की चाबी 
ब्रॉडबैंड और अंतरजाल की सुविधा अबतक देश के ज्यादातर हिस्से में नहीं पंहुच पायी है लेकिन यह समस्या मोबाइल के साथ नहीं है। 21वीं सदी में हमारा भविष्य बहुत कुछ मोबाइल और इससे जुडी तकनीकों से जुडा रहेगा।

आइये रिकैप करें मोबाइल की लोकप्रियता और उसकी पंहुच को एक इन्फोग्रफिक के जरिये। नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें: मोबाइल की लोकप्रियता 2012.