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बुधवार, 2 जनवरी 2013

अंतर्जाल के तीस साल

इन्टरनेट का इतिहास वास्तविक रूप से सफल संगणकों के विकास के साथ ही जुड़ा हुआ है जो 1950 की दसक का एक चमत्कारी आविष्कार था। स्टैनफोर्ड अनुसन्धान संस्थान, अमेरिका के उन सबसे पहली इकाइयों में से एक थी जहाँ अंतरजाल सम्बन्धी उपकरणों को न सिर्फ स्थापित किया गया बल्कि इस्तेमाल भी प्रारंभ हुआ। इस नयी तकनीक की लोकप्रियता पे किसी को कोई शक नहीं था और तुरंत ही इसने विश्वव्यापी आकार लेना शुरू कर दिया।
पहला संगणक 
अंतरजाल के इतिहास में 1973  का महत्व इस लिए बढ़ जाता है क्यूंकि इसी साल अंतरजाल ने पहली दफा अमेरिका से बाहर कदम रखा। इंग्लैंड और नार्वे को अंतरजाल से जोड़ने की कवायद इसी साल अरपानेट नामक एक बड़ी अमेरिकन कंपनी ने की थी। 1973 के शुरूआती महीनों में शुरू हुआ ये अंतर अटलांटिक प्रोजेक्ट नवम्बर 1973 तक अपना काम पूरा कर चुका था। 

अरपानेट 
 9.6kb  की क्षमता वाले एक डेडिकेटेड टेलीफोन लाइन ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन और नोर्वे की नेशनल डिफेन्स रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट को जोड़कर एक नए युग का सूत्रपात कर दिया। दीगर बात यह थी की शुरूआती सालों में अंतर्जाल के इस्तेमाल की सुविधा गिने चुने जानकार लोगों तक ही सीमित रही। सार्वजनिक तौर पर इसके इस्तेमाल की संभावनाओं पर हालांकि काफी काम होना शुरू हो गया था लेकिन एक सर्वसम्मति नहीं बन पायी थी।

1 जनवरी 1983 जिसे "फ्लैग डे" भी कहा जाता है इसी दिन से डिपार्टमेंट ऑफ़ डिफेन्स (DOD) ने डाटा पैकेट स्विचिंग की पेशकश की थी और अरपानेट की प्रोद्योगिकी को अलविदा कहा था। इन्टरनेट प्रोटोकॉल सूट  (IPS) की संचार प्रोद्योगिकी ने वर्ल्ड वाइड वेब (अंतरजाल) के चहुमुखी विकास का रास्ता साफ़ किया।   

1985 तक कुछ अमेरिकी (NSFNET) एवं ब्रिटिश (JANET) संस्थाओं ने इसका शैक्षनिक इस्तेमाल शुरू कर दिया था। बहस का मुद्दा अब ये हो रहा था के अंतरजाल कैसे एक प्रभावी जनसंपर्क माध्यम बने। नब्बे के दसक तक यह बात खुलकर सामने आ चुकी थी के अब व्यवसाय भी इसके प्रभाव से अछूता नही रहेगा।  अरपानेट जैसे बड़े खिलाडिओं का निष्क्रिय हो जाना और नयी तकनीकों के उपयोग ने इस बात का संकेत दे दिया के नयी परिभाषाएं गढ़ी जायेंगी और दृष्टिकोण में बदलाव अवश्यम्भावी होगा।
अंतरजाल 
1995 में फेडरल नेटवर्किंग कौंसिल (FNC) आधिकारिक रूप से इस नये संपर्क माध्यम का नाम इन्टरनेट रखा। इसके विकास की प्रक्रिया अब बहुआयामी हो चुकी थी जिसने हर आने वाले वर्ष में नयी उचाइयों को छुआ। पिछले दो दसकों में इस सार्वभौमिक संपर्क सूत्र ने जीवन के हर पहलू पर अपना असर छोड़ा है। चाहे विज्ञान हो या व्यवसाय, सरकारें हों या व्यक्तिविशेष हर क्षेत्र में मनुष्य ने आज अंतरजाल को आत्मसात कर लिया है।  
समग्र विकास की ओर 
इसका मतलब यह कतई नहीं है के अंतरजाल में विकास और सुधार की संभावनाएं नहीं हैं। अभी भी दुनिया के  बहुतेरे हिस्से इसकी अच्छाइयों से अपरिचित हैं। जबतक हम इसे समाज के समग्र विकास के उद्देश्य से नहीं जोड़ेंगे तबतक इसकी सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगा ही रहेगा। विज्ञान के दो पहलु होते है - सकारात्मक और नकारात्मक। अंतरजाल का विस्तार इस कदर हुआ है के इसकी कल्पना इसे बनाने वालों ने भी नहीं की थी। प्रश्न यह नहीं है के अंतरजाल का विस्तार कैसे हो, ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है के इसका सकारात्मक उपयोग कैसे किया जाए।

सही उपयोग 
 हम आज इन्टरनेट2 की बात कर रहे हैं जो शायद डाटा को और अधिक सक्रिय बनाएगा और इन्टरनेट की अगली पीढ़ी की संभावनाओं को नयी दिशा देगा। लेकिन इस बात पर नज़र रखना भी जानकारों के लिए उतना ही कठिन होगा के कैसे इसके दुरुपयोग से बचा जाए। जो प्रोद्योगिकी हमें इतनी जल्दी विकास की सीढियाँ चढ़ा सकता है उसके नतीजों और नकारात्मक पहलुओं पर विचार करना उनका निदान ढूँढना उतना ही महत्वपूर्ण होगा। 

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