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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

कहानी कैमरे की


कैमरे हमेशा से एक ऐसी प्रभावशाली मशीन रही है जिसने जीवन-नदी से यादगार पलों की बूँदों को सहेजकर रखने में हमें सक्षम बनाया है. इस अद्भुत तकनीक की कहानी भी बड़ी अद्भुत एवं पुरातन है. ईसा पूर्व ५ वीं शताब्दी में चीन के दर्शन शास्त्री मो ज़ी को बड़ी हैरानी हुई जब उन्होंने यह समझा की एक पिन जितनी छेद से अगर प्रकाश को गुजारा जाय और दूसरी तरफ एक श्याम पटल हो तो एक उलटी ही सही, तस्वीर आंकी जा सकती है. वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस तरह की नयी सोच और नयी तकनीक को अमली जामा पहनांने की ठान ली. मो ज़ी ने बड़ी मशक्कत के बाद एक ऐसी चीज़ बनायी जिसने कमेरे की तकनीक की पृष्टभूमि रखी- इसे आज भी कैमरा ओब्स्क्युरा के नाम से जाना जाता है. अरस्तु और बाद के विद्वानों ने भी अपने लेखों में इस तकनीक की पुष्टि की है.



रोचक बात यह है की काफी लम्बे समय तक इस पर शोध हुए लेकिन कोई सक्षम छायाचित्र नहीं लिया जा सका जिसे सहेजा जा सके. कई सदियों बाद सन् १८२६ में चार्ल्स और विन्सेंट शेवलिएर ने पहली बार पेरिस में एक परमानेंट छायाचित्र खींचा जिसे बनाने में उन्हें तकरीबन ८ घंटों की मशक्कत लगी. जी हाँ! १८३९ में पहली बार फ़्रांसिसी कला प्रेमी अल्फोंे गिरॉक्स ने कैमरे का औद्योगिक उत्पादन शुरू किया और यहीं से आधुनिक कैमरों की कहानी शुरू होती है. आधुनिक कैमरे से यहाँ तात्पर्य फोटोग्राफिक फिल्म वाले कैमरों से है जिन्होंने छायांकन (फोटोग्राफी) को वास्तव में लोकप्रिय बनाया. इसका श्रेय जॉर्ज ईस्टमैन को जाता है जिन्होंने सन् १८८५ में कागज़ के फिल्मों की शुरुआत करी और फिर १८८९ आते आते सिलोलाइड का इस्तेमाल फ़िल्में बनाने के लिए करने लगे. और हाँ ! इन्होने अपने कैमरे का नाम 'कोडैक' (Kodak) रखा जिसने दसकों तक फोटोग्राफी की दुनिया पर एकछत्र राज किया।


पहला कोडेक कैमरा 
कोडैक के ही एक इंजीनियर स्टीवन सेसन ने १९७५ में इमेजेज को स्टोर करने की पद्धति का आविष्कार किया और इस तरह इमेजेज को सहेजने, उन्हें वीडियो कैसेट की सहायता से टेलीविज़न स्क्रीन पर देख पाना सम्भव हुआ. और इस तरह एनालॉग कैमरे लम्बे समय तक लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित करते रहे.

डिजिटल कैमरों की शुरुआत सन् २००० से होती है जब पॉइंट एंड शूट कैमरों ने फोटोग्राफी को अत्यन्त सहज बना दिया। इमेजेज का रूपांतरण एवं एडिटिंग आसान हो गया और इसी के साथ कैमरे की कहानी में एक सुखद नया अध्याय जुड़ा। डिजिटल कमरों के पॉकेट फ्रेंडली (कीमत और आकर दोनों) होना इसकी सबसे बड़ी खूबी थी और इसी सहजता ने पॉइंट एंड शूट कैमेरों को २०१० तक अत्यन्त लोकप्रय बनाए रखा. अब आप तस्वीरों को फ़्लैश ड्राइव पर सेव कर कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल अथवा टीवी पर आसानी से देख सकते थे.
शुरुआती डिजिटल कैमरा 
मुझे कैमरों का चस्का तो बहुत था और पापा से जोर ज़बरदस्ती करके एक एनालॉग कैमरा खरीद भी लिया जिसकी सबसे बड़ी खूबी थी उसका छोटा स्क्रीन जिसमे फिल्म की इमेज संख्या दिखती थी. दो सालों बाद जब अपने पैरों पर खड़ा हुआ तब एक दोस्त जो किसी काम से अमेरिका गया था उससे एक निकॉन का बेहद पॉकेट फ्रेंडली कैमरा मंगाया। दस हज़ार की कीमत जो मैंने कई किश्तों में चुकाई वह भी कम लग रही थी. उत्सुकता थी के थमने का नाम नहीं लेती थी. महज ४ मेगापिक्सेल कैमरे जिसने कम रौशनी में कभी भी अच्छी तस्वीर नहीं ली उसपे मेरा पूरा परिवार फ़िदा था. सबसे सुखद यह बात थी की सभी तस्वीरों को तुरंत ही देखा जा सकता था और प्रिंट करवाने, पैसे खर्च करके इंतज़ार करने की जरूरत नहीं रह गयी थी. डिजिटल कैमरे ने हमें पहली बार फोटोग्राफी में आत्मनिर्भर बनाया।

समय का पहिया फिर घुमा और अब हुआ यूँ है के मैंने अपने डिजिटल कैमरे का इस्तेमाल बरसों पहले छोड़ दिया है. स्मार्ट फ़ोन से ही काम चल जाता है कौन भला कैमरे की जहमत उठाये। २०१० दस के बाद डिजिटल कैमरों का सबसे बड़ा शत्रु बना स्मार्ट फ़ोन जिसने तस्वीरें खींचना ही आसान नहीं बनाया बल्कि उन्हें शेयर करना भी सहज कर दिया। यह युग कनेक्टेड कैमरे का था जहां सिर्फ छोटा और सस्ता होना काफी नहीं था, डिजिटल कैमरे इस नयी डिमांड को आत्मसात करने में पिछड़ गए. हुआ यह है की डिजिटल पॉइंट एंड शूट कैमरे अब इतिहास का हिस्सा बनने की कगार पर हैं.

स्मार्ट फ़ोन्स ने हमारे तस्वीरें लेने के उद्देश्य को ही पुनर परिभाषित किया है- यह महज एक तस्वीरें खींचने की मशीन न होकर नेटवर्क्ड डिवाइस बन गयी है. आज चाहे निकोन हो, कैनन हो, सोनी हो या सैमसंग सभी नामचीन कैमरा उत्पादक ऐसे कैमरों को बनाने की होड़ में जुटा है जो कैमरा होने के अलावा एक कनेक्टेड डिवाइस भी बन सके. वाई फाई हो यह ब्लूटूथ सब इसके अंग बनते जा रहें हैं.

देखना यह है की स्मार्ट फोन्स की सम्मुन्नत तकनीक, सहजता से कनेक्ट होने की सुविधा, कम दाम और इजी इस्तेमाल जैसी लोकप्रिय तकनीक को नए जमाने के कैमरे जिन्हे DSLR भी कहते हैं - कहाँ तक झेल पाते हैं. कहीं इन नामचीन कंपनियों का हश्र कोडक वाला न हो जाये। वही कोडक जिसने कैमरे को घर घर तक पहुँचाया, जिसके पास २००० से भी ज़्यादा फोटोग्राफी के पेटेंट थे, वे भी नयी तकनीक का बखूबी आकलन नहीं कर पाये और अंततोगतवा दिवालिया हो गये.

इतिहास का हिस्सा कौन कब बन जाए इस बदलते तकनीक और समय के दौर में, कहना मुश्किल है.

Image Courtesy: Google Images